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ला नीना के बावजूद इतिहास का सबसे गर्म वर्ष बन सकता है 2020: डब्ल्यूएमओ

-डाउन टू अर्थ,

विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने हाल ही में ला नीना के बारे में नई जानकारी साझा की है। जिसके अनुसार 2020 में इस घटनाक्रम के मध्यम से मजबूत रहने की सम्भावना है। डब्ल्यूएमओ के क्लाइमेट डिपार्टमेंट से जुड़े मैक्स डिले ने बताया कि ला नीना में तापमान सामान्य से 3 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो जाता है। इसके बावजूद अनुमान है कि 2020 इतिहास का सबसे गर्म साल होगा। जबकि 2016 से 2020 के बीच की पांच सालों की अवधि के रिकॉर्ड गर्म रहने की उम्मीद है। 

गौरतलब है कि इससे पहले आखिरी बार मजबूत ला नीना की घटना 2010-2011 में घटी थी, जबकि 2011-2012 में यह मध्यम स्तर का रिकॉर्ड किया गया था। इस घटना के चलते दुनिया के कई हिस्सों में तापमान, वर्षा और तूफान के पैटर्न पर असर पड़ेगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ला नीना की यह स्थिति जनवरी 2021 तक बनी रहेगी। 

क्या होता है ‘ला नीना’

ला नीना जिसे स्पेनिश भाषा में ‘छोटी बच्ची’ भी कहते हैं, चूंकि इसका प्रभाव एल नीनो के विपरीत होता है इसलिए इसे प्रति एल नीनो भी कहा जाता है। एल नीनो और ला नीना प्रशांत महासागर से जुड़ी प्रक्रियाएं हैं। यह मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में घटने वाली घटना है जो बड़े पैमाने पर मौसम और जलवायु को प्रभावित करती हैं। जहां एल नीनो के चलते समुद्र का तापमान 2 से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है और उसके चलते गर्म हवाएं चलती हैं। जबकि इसके विपरीत ला नीना के चलते पूर्वी प्रशांत महासागर का तापमान सामान्य से 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है। जिस वजह से सर्द हवाएं चलती हैं और वैश्विक तापमान में कमी आ जाती है। 

भारत पर क्या पड़ेगा इसका असर 

भारत के लिए ला नीना का मतलब है, सामान्य से ज्यादा बारिश होना। यहां तक की इसके चलते बाढ़ भी आ सकती है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार इस साल सर्दी के मौसम में ला नीना का प्रभाव देखने को मिलेगा, जिसके चलते सामान्य से ज्यादा ठंड रहेगी। अनुमान है कि इस साल शीत लहर भी चलेगी, जिसके पीछे भी ला नीना के असर को जिम्मेवार माना जा रहा है। डब्ल्यूएमओ के अनुसार ला नीना का असर दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय चक्रवात के मौसम पर भी पड़ेगा, जिससे चक्रवातों की तीव्रता कम हो सकती है। 

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