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22575 करोड़ का हिसाब नहीं

पटना : राज्य सरकार ने पिछले नौ वर्षो में खर्च किये गये 22575 करोड़ रुपये का हिसाब महालेखाकार को नहीं दिया है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने इसे गंभीर बताया है.

सीएजी ने करीब 8466 करोड़ रुपये के खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं मिलने पर भी नाराजगी जाहिर की है. 31 मार्च, 2011 को समाप्त होनेवाले वित्तीय वर्ष के लिए सीएजी की रिपोर्ट मंगलवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश की गयी.

रिपोर्ट में राजकोषीय अनुशासन बनाये रखने के लिए राज्य सरकार की तारीफ की गयी है, तो 409 करोड़ रुपये के गबन व चोरी के लंबित मामलों में कोई कार्रवाई नहीं किये जाने पर सरकार की आलोचना भी की गयी है.

पांच से 10 वर्षो के बीच गबन के सबसे ज्यादा 716 मामले ग्रामीण विकास विभाग के हैं. इनमें 328 करोड़ रुपये की राशि शामिल है. विधानसभा में इस रिपोर्ट को पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव ने पेश किया.

कमजोर वित्तीय प्रबंधन

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2002-03 से 2010-11 तक 83542 एसी (एब्सट्रेक्ट कंटीजेंट) बिल पर 25331 करोड़ रुपये की निकासी गयी. उनमें से केवल 2755.68 करोड़ के लिए 9425 डीसी (डिटेल कंटीजेंट) बिल महालेखाकार (बिहार) को सौंपे गये.

14 सितंबर, 2011 तक 74117 एसी बिल पर निकासी किये गये 22575.37 करोड़ रुपये के डीसी बिल नहीं दिये गये. गंभीर मामला यह है कि वर्ष 2010-11 के दौरान एसी बिल पर निकाले गये 7015.37 करोड़ रुपये में से 2749.82 करोड़ रुपये की निकासी वित्तीय वर्ष के अंतिम चार दिनों (28 मार्च से 31 मार्च 2011) में की गयी.

यह कुल राशि का 39 फीसदी है. सीएजी ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि वित्तीय वर्ष के अंतिम चार दिनों में बहुत बड़ी राशि की निकासी सिर्फ कमजोर वित्तीय प्रबंधन को ही नहीं, बल्कि राशि के दुर्विनियोजन के जोखिम को भी दरसाती है.

योजना नार्थ-इस्ट की, चली बिहार में

बिहार के लिए जो योजना उपयुक्त नहीं थी, उसे न केवल मंजूरी मिली, बल्कि इस पर 20 करोड़ रुपये खर्च भी कर दिये गये. सीएजी ने यह गड़बड़ी पकड़ी है. ग्रामीण विकास मंत्रलय की रुफ टॉप हाव्रेस्टिंग योजना उन राज्यों (नॉर्थ-इस्ट व साउथ) के लिए है, जो जहां साल के ज्यादातर महीनों में वर्षा होती है.

2006-07 से 2010-11 की अवधि में पीएचइडी ने 23 जिलों में 50.35 करोड़ रुपये की लागत पर 3215 योजनाओं की स्वीकृति दी. स्वीकृति के पहले तकनीकी उपयुक्तता विश्लेषण भी नहीं कराया गया. मार्च, 2011 तक 1070 पूर्ण एवं 2145 अपूर्ण योजनाओं पर 19.75 करोड़ रुपये खर्च हुए.

एजी ने जब सरकार से जवाब तलब किया, तो पीएचइडी के सचिव ने कहा कि रेन वाटर हाव्रेस्टिंग संरचना पूरे देश में चलायी जा रही है. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इस जवाब को खारिज करते हुए कहा है कि इस योजना को स्वीकृत किया जाना ही अनियमित है, इसलिए इस पर हुआ खर्च भी अनियमित है.

जानिए एसी, डीसी बिल को

तत्काल छोटी-मोटी जरूरतों के लिए एसी बिल (सार आकस्मिक व्यय विपत्र) के आधार खजाने से राशि की निकासी होती है. खर्च की गयी राशि का विस्तृत हिसाब डीसी बिल (विस्तृत आकस्मिक व्यय विपत्र) के माध्यम से दिया जाता है.

नियमत: सभी एसी बिलों पर निकाली गयी एडवांस राशि का समायोजन निकासी की तिथि से छठे माह के भीतर होना चाहिए. इसके लिए एजी (लेखा व हकदारी) को डीसी बिल सौंपना होता है.