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2जी घोटाला : नाकाम एजेंसियां-- आशुतोष चतुर्वेदी

पिछले दिनों एक चौंकाने वाला फैसला आया. अब तक जिस मामले को देश के इतिहास का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला माना जा रहा था, उसमें कोई दोषी साबित नहीं हुआ. सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

विशेष अदालत ने कहा कि सरकारी वकील आरोप साबित करने में नाकाम रहे. इसके पहले तत्कालीन लेखा महानियंत्रक विनोद राय ने स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया में देश को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने का आकलन किया था.

उनका कहना था कि अगर लाइसेंस नीलामी के आधार पर दिये जाते, तो देश के खजाने को कम-से-कम एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये आते. उसके बाद यह मामला सुर्खियों में आया. सुप्रीम कोर्ट ने 2जी मामले में सवाल खड़े होने पर 122 स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द कर दिये थे. साथ ही पूरे मामले की जांच के लिए विशेष अदालत गठित करने का निर्देश दिया था. डीएमके नेता और मनमोहन सरकार के दूरसंचार मंत्री ए राजा और डीएमके की राज्यसभा सदस्य एवं तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की बेटी कनिमोझी को आरोपों के कारण जेल भी जाना पड़ा था. विशेष अदालत ने अपने फैसले में ए राजा, डीएमके सांसद कनिमोझी समेत सभी 17 आरोपियों को बरी कर दिया.

सीबीआई की विशेष अदालत के जज ओपी सैनी ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बातें कहीं. उन्होंने कहा कि वह पिछले सात साल से सभी कामकाजी दिनों में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक ओपन कोर्ट में बैठे और इसका इंतजार किया कि कोई कानूनी तौर पर मान्य प्रमाण पेश करेगा.

लेकिन यह कोशिश बेकार गयी. जज की यह टिप्पणी बेहद गंभीर है और सीबीआई को कटघरे में खड़ा करती है. आप गौर करें कि ऐसे अनेक उदाहरण हैं. जब भी किसी मामले में नामीगिरामी लोग फंसे हैं, हमारी जांच एजेंसियां सबूत जुटाने में अक्सर असफल हो जाती हैं. यह गंभीर चिंता का विषय है. आर्थिक अपराधों के लिए सजा दिलाने में हम अक्सर नाकाम हो जाते हैं.

इस मामले में भी तमिलनाडु के प्रभावशाली नेता और बड़े कारोबारी लपेटे में आ रहे थे और इस मामले का हश्र क्या हुआ, यह हम सबके सामने है.

इस मामले में जो बरी हुए हैं, वे हैं पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए राजा, करुणानिधि की बेटी और राज्यसभा सदस्य कनिमोझी, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, ए राजा के निजी सचिव आरके चंदोलिया, स्वॉन टेलिकॉम के प्रबंध निदेशक रहे शाहिद बलवा, उनके भाई आसिफ बलवा, स्वॉन टेलिकॉम के निदेशक विनोद गोयनका, यूनिटेक के प्रबंध निदेशक रहे संजय चंद्रा, राजीव अग्रवाल और सिनेयुग मीडिया और एंटरटेनमेंट के निदेशक करीम मोरानी और अनिल अंबानी समूह के अधिकारी गौतम दोषी, सुरेंद्र पिपारा और हरी नायर.

इस पूरे मामले को समझने की आवश्यकता है कि आखिर मामला क्या था? तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा ने 2008 में स्पेक्ट्रम लाइसेंसों का आवंटन 2001 में निर्धारित दरों पर ‘पहले आओ-पहले पाओ' नीति के आधार पर कर दिया था. आरोप था कि आवंटन में उनकी पसंदीदा कंपनियों को तरजीह दी गयी थी.

तत्कालीन लेखा महानियंत्रक विनोद राय का कहना था कि नीलामी न होने के कारण सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ. आरोपों के कारण ए राजा जेल चले गये और लगभग 15 महीनों तक जेल में रहने के बाद उन्हें हाल ही में जमानत मिली. इन लोगों के खिलाफ धारा-409 के तहत आपराधिक विश्वासघात और धारा 120बी के तहत आपराधिक षडयंत्र के आरोप लगाये गये थे. लेकिन अदालत के समक्ष पर्याप्त सबूत नहीं आये.

यह मामला यूपीए सरकार के दौरान का है और इसने एक बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले लिया था. 2014 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के पास भ्रष्टाचार यूपीए सरकार के खिलाफ सबसे बड़ा अस्त्र था. अब भी इस मामले पर खूब राजनीति हो रही है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ओर से इसको लेकर खूब बयानबाजी चल रही है. कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने इस मामले पर खुशी जताते हुए मौजूदा मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की है.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि यह फैसला अपने आप ही सब कुछ बोल रहा है. मैं खुश हूं कि कोर्ट ने साफ तौर पर कह दिया है कि यूपीए के खिलाफ जो दुष्प्रचार किया जा रहा था, उसका कोई आधार नहीं था. उधर भाजपा नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पलटवार किया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में ही यह कह दिया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की 2जी नीति भ्रष्ट थी और इसी आधार पर कोर्ट ने सारे आवंटन रद्द कर दिये थे.

कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि प्रधानमंत्री को संसद में आकर इस मामले में स्पष्टीकरण देना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह सरकार इस आधार पर बनी थी कि यूपीए की सरकार 2जी और दूसरे घोटालों में शामिल थी. लेकिन अब यह साबित हो गया है कि यह सब विपक्ष का झूठ था. भाजपा को देश से माफी मांगनी चाहिए. 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को यूपीए ने घोटाला नहीं माना था. तब तत्कालीन दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि जीरो लॉस है, यानी कोई नुकसान नहीं हुआ है. भाजपा ने इस पर खूब छींटाकशी की थी. यूपीए सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री रहे मनीष तिवारी ने कहा कि पूर्व सीएजी को देश से माफी मांगनी चाहिए.

यह सच है कि इस घोटाले ने यूपीए की साख को समाप्त कर दिया था. भ्रष्टाचार पर अभी तक कांग्रेस का रवैया रक्षात्मक रहा है. लेकिन इस फैसले के बाद कांग्रेस को भाजपा से मुकाबला करने का नैतिक आधार मिल सकता है.

दूसरी ओर यूपीए के कार्यकाल में जब यह मामला सीबीआई के पास गया था, तब डीएमके नेता कांग्रेस से खफा हो गये थे. डीएमके को लग रहा था कि कांग्रेस के नेताओ ने डीएमके को बचाने की कोशिश नहीं की.

फैसले के बाद दोनों दल के बीच दूरियां कम हो सकती हैं. इस मामले के दो पहलू हैं- एक नीतिगत और दूसरा प्रक्रियागत. विशेष अदालत का फैसला नीति के बारे में नहीं, बल्कि कथित घपले के बारे में आया है, जो साबित नहीं हो पाया. लेखा महानियंत्रक ने अपनी रिपोर्ट का आधार प्रक्रियागत रखा था. मौजूदा स्थिति में कहा जा सकता है कि आवंटन में पक्षपात हो सकता है, मगर उसके लिए पैसे का लेनदेन हुआ, इसको सबूतों के अभाव में अदालत ने खारिज कर दिया है.