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5 साल में किसानों की आमदनी दुगुना, विकास का कसीनो मॉडल तो नहीं

बजट 2016 में केंद्र सरकार ने गांव और किसानों को तवज्जो दी गयी है इसके विषय में कई बाते कहीं जा रही है। कोई इसे ग्राम देवता का बजट बता रहा है तो ​कोई किसान देवता का। लेकिन विशेषज्ञ सरकार के गांवो में प्रति समर्पित बजट के सवाल पर बंटे हुए हैं। योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजित सेन कहते हैं कि वित्त मंत्री अरूण जेटली को अपने बजट मे नये वेतन आयोग और फिजिकल डेफिसिट का ध्यान देना है इसके बाद खेती को देखना था। वे कहते हैं इस बजट में 2014-15 के बजट से तुलना करें तो 9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। नाबार्ड को जो 6000 करोड़ दिया गया, वो प्लान आउटले है, जिसे कि खेती में दिखाया गया। जिसे कृषि का बजट कहा जा रहा है वह तीन मंत्रालयों ग्रामीण विकास, कृषि पर सिचाई का बजट है। इन तीनो मंत्रालयों को मिलाकर वर्ष २०१४-१५ में १ लाख २० हजार करोड़ आवंटन था, जबकि इस साल १ लाख १० हजार करोड़। प्रो अभिजित सेन ने ये बातें भारत कृ​षक समाज द्वारा आयोजित परिचर्चा ‘बजट 2016-द फार्म सेक्टर'नामक परचिर्चा में ये बातें कही।

वरिष्ट पत्रकार प्रांजय गुहा ठकुराता ने परिचर्चा का संचालन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ये इंप्रेशन देने की कोशिश कर रही है कि वे देश के किसानों और ग्रामीण भारत के विकास के प्रति काफी सचेत हैं। जबकि विशेषज्ञ इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या वे अपना वादा निभायेंगे जैसा कि उन्होने वादा किया है कि आगामी 5 वर्ष में किसानों की आमदनी दुगुना कर देंगे। इस देश में ज्यादातर ऐसे किसान है जिनकी आमदनी 500-600 रूपये प्रतिमाह है, जबकि कुछ ऐसे भी किसान हैं जिनकी आमदनी काफी ज्यादा, ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि सरकार किसकी आमदनी दुगुने किये जाने की बात कह रही है। सरकार द्वारा नये सिंचाई योजनाओं के तहत कुछ पुराने कुछ नयी योजनाओं जैसे मनरेगा के तहत तालाब खोदने की बात कहना। असल में घोषणा करना और आउटले को पूरा करना और बात। सरकार खाद्य सुरक्षा से आमदनी सुरक्षा तक की बात हो रही है, लेकिन इसे पूरा कैसे करेंगे इस पर चर्चा किये जाने की जरूरत है। खाद्यान्न सब्सिडी सामान्यत कम हो गयी है। जिस सब्सिडी की घोसहना भी की जाती है उसका भी बकाया बना रहता है। मंरेगा के विषय में प्रधान मंत्री ने क्या कहा था हम सब अवगत हैं। आज स्थिति यह है की अधि से ज्यादा कृषि भूमि वाले इलाको में सूखा है, किशन आत्महत्या कर रहे हैं। जबकि सरकार दावा कर रही है की सबसे ज्यादा आवंटन कृषि चेत्र को किया गया है, लेकिन रूककर हमें पिछले साल के ब्क्लोग को देखना होगा की यह कहाँ पहुँचता है।

एफसीआई के पूर्व चेयरमैन एवं एमडी अलोक सिन्हा का मानना है की बजट सिर्फ एकाउंटिंग से ज्यादा कुछ नहीं। उन्होने 5 साल में किसानों की आमदनी दुगुना कर देने के बयान को कसीनो अप्रोच बताया जिसमें रात में पैसा लेकर बैठे और सुबह तक दुगुना। लेकिन खेती में यह कैसे संभव है यह सरकार ही बता पायेगी। अभी कृषि ग्रोथ .02 फीसदी है और कृषि साख 6 लाख करोड की बात हो रही है। केवल क्रेडिट देने से बात नहीं बनेगी मार्केटिंग और खाद्य प्रसंस्करण पर ध्यान नहीं दिया जायेगा तो कृषि का विकास कैसे संभव है। हालांकि सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमती दी है। सरकार ने खेती को जो 15,000 करोड़ देने की बात कही है लेकिन इसमें 18,000 हजार करोड़ क्रेडिट सब्सिडी का है। सरकार आन लाईन प्रोक्योरमेंट की बात कह रही है लेकिन मैं नहीं समझ पा रहा है कि बिना खाद्यान्न देखे कैसे कोई प्रोक्योर करने को तैयार होगा। हालाकि सरकार ने ग्रामीण सड़को के लिए आवंटन बढाया है इससे किसानो को फायदा मिलेगा। वहीं मनरेगा में आंवटन से यूपी झारखंड,बिहार आदि में श्रमिकों की आय बढ़ेगी। स्मॉल फार्मस,एग्री बिजनेस कॉनसोरटियम के पूर्व चेयरमैन प्रवेश शर्मा ने कहा कि सरकार की नयी फसल बीमा योजना अच्छी है, लेकिन बंटाई पर कृषि करने वाले आखिर इस बीमा योजना का लाभ कैसे लेगें। जबकि देश में 86 फीसदी किसान छोटे और सीमांत किसान हैं। जो बंटाईदार है उन्हें तो कोई कानूनी अधिकार नहीं।

आल इंडिया किसान सभा के प्रभाकर केलकर ने कहा कि सरकार का ग्रामीण भारत के प्रति यूटर्न नकारात्मक भी है और सकारात्मक भी। सरकार ने बजट ​के जरिए किसान भाई को चलों गांव की ओर के लिए प्रोत्साहित किया है। लेकिन ​यह प्रोत्साहन से किसान इसके लिए तैयार होगा इसमें संदेह है। ​सवाल है कि किसान बजट से क्या चाहता है? वह चाहता है कि उसके फसल का उसे लाभकारी मूल्य मिले,और उसके फसल की खरीदी की व्यवस्था हो। सरकार की समृद्ध भारत, समृद्ध किसान की मंशा दिखती है,लेकिन यह मंशा कितनी वास्तविक है यह देखना होगा। सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण में 100 फीसदी एफडीआई की बात कही है,लेकिन हम उससे सहमत नहीं है। सरकार का किसानों के पलायन और रोजगार की दिशा में कोई बृहतर संकल्प हो ऐसा नहीं दिखता।