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7.16 लाख बेटियों को नसीब नहीं शिक्षा

जयपुर. राजस्थान में 6 से 14 साल की 7.16 लाख बेटियों को प्राथमिक शिक्षा नसीब नहीं हो पा रही। इनमें 4.14 लाख बच्चियां तो एक बार भी स्कूल नहीं गईं, जबकि 3,02479 बच्चियां पढ़ाई छोड़कर मजदूरी सहित अन्य काम करने को मजबूर हैं। प्रारंभिक शिक्षा परिषद के चाइल्ड ट्रेकिंग सर्वे (सीटीएस) की इसी सप्ताह जारी रिपोर्ट ने राज्य में बेहतर शिक्षा के दावों पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।

शिक्षाविदों ने बेटियों की प्राथमिक शिक्षा के लिए आगामी बजट में विशेष प्रावधान की जरूरत बताई है। रिपोर्ट ने बेटे और बेटियों के बीच के परंपरागत फासले को भी उजागर किया है। राज्य में जहां 6-14 साल तक के 64.48 लाख लड़के हैं, वहीं 55.21 लाख बेटियां हैं। स्थिति उलट यहां है कि स्कूल नसीब नहीं होने वालों में 7.16 लाख बेटियां हैं, जबकि लड़कों की संख्या 4.94 लाख है। एक बार भी स्कूल नहीं जाने वालों में लड़के महज 2.82 लाख है, जबकि बेटियों की संख्या इनसे दुगुने से भी ज्यादा 4.14 लाख है।

बाड़मेर में सर्वाधिक 57,004 बच्चियां स्कूल नहीं जा पा रही हैं तो जोधपुर, जालौर, उदयपुर में भी हालात बेहद खराब हैं। प्रदेश में इस आयु वर्ग के 12.10 लाख बच्चे स्कूलों से बाहर हैं। शिक्षाविद एवं राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के.एल. कमल का मानना है कि बेटा-बेटी में फर्क को लेकर स्थिति में भले ही काफी कुछ सुधार आया है, लेकिन अभी मानसिकता बदलने के लिए काफी प्रयासों की जरूरत है। जब तक बेटियों को प्राथमिक शिक्षा नहीं मिलेगी, राज्य विकास की पटरी पर नहीं आ पाएगा। ह्यूमन रिसोर्स इंस्टीट्यूट के विजय गोयल अपने सर्वे का हवाला देते हुए बताते हैं, ग्रमीण क्षेत्र में महिला शिक्षकों की कमी भी बेटियों की शिक्षा की दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार है।

राज्य में प्राथमिक शिक्षा का ढांचा बेहद कमजोर है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति खराब है। राज्य सरकार को अपने बजट का अधिकतम भाग प्राथमिक शिक्षा पर ही लगाना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो परिणाम की उम्मीद करना बेमानी होगा। - सुमतिलाल बोहरा, शिक्षाविद एवं पूर्व सचिव राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड

देश के सबसे बड़े राज्य में बेटियों की शिक्षा सबसे बड़ी चिंता का विषय है। राज्य सरकार को आगामी बजट में इस पर विशेष ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आंकड़ों की बजाय ग्राउंड लेवल पर काम होना चाहिए। राज्य स्तर पर बेटियों के लिए स्कॉलरशिप भी शुरू करनी चाहिए। - गिरिजा व्यास, अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग

योजना का अभाव: राज्य में स्कूली शिक्षा पर मौजूदा वित्तीय वर्ष में 12,000 करोड़ रु. का बजट है। शिक्षाविदों की मानें तो ठोस योजनाएं तैयार नहीं हो पाने के कारण बालिका शिक्षा में राज्य पिछड़ेपन से उबर नहीं पा रहा है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम को क्रियान्वित करने की बात तो दूर विभाग नियम-कायदे तक तैयार नहीं कर सका है। गरीब एवं पिछड़े तबके के बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर प्रवेश की योजना भी इस बार अमल में नहीं आ सकी।

कमजोर पक्ष दूर करेंगे: सीटीएस रिपोर्ट के बाद बालिका शिक्षा पर ज्यादा फोकस किया जाएगा। पहले से चल रही विभिन्न योजनाओं के कमजोर पक्षों को दूर किया जाएगा। शिक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा बजट की उम्मीद है। - मास्टर भंवरलाल, शिक्षामंत्री