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84 घंटे बाद आई आवाज, मैं जिंदा हूं

हादसे को पांच दिन हो गए। पांच दिन बाद भारी-भरकम मलबे के नीचे किसी के जिंदा होने की कल्पना भी असंभव सी लगती है, लेकिन अचानक घटना के 84 घंटे बाद मलबे से आई एक पांच सैकेंड की फोन कॉल ने कई श्रमिकों के परिजनों के हृदय में वह आस जगा दी है, जिसे वह पूरी तरह छोड़ चुके थे।

एनडीआरएफ की टीम घटनास्थल पर काम कर रही थी। इस बीच दोपहर करीब 12 बजे मयंक नामक एक श्रमिक भागते हुए घटनास्थल पर पहुंचा। उसने हांफते हुए कहा कि उसे अभी अंदर से फोन आया है। तीन नंबर मशीन के पास उसका एक साथी जिंदा है। इस बीच सेना और एनडीआरएफ ने मिल कर उस मशीन के पास की संभावित लोकेशन ट्रेस की। दो लेंटर काट कर जगह बनाई गई। इसके बाद मयंक को साथ लेकर सेना लेंटर के अंदर चली गई। उसकी बताई गई लोकेशन पर सेना ने अपना काम तेजी से शुरू कर दिया। मयंक ने बताया कि पांच सैकेंड में कॉल कट गई और उसने इतना ही कहा कि वे तीन नंबर मशीन के पास फंसे है। ऐसे में आशंका है कि उसके साथ और लोग भी जिंदा हो सकते हैं।

पांच दिन से मलबे में दबे होने के कारण बैटरी खत्म हुआ मोबाइल कुछ सैकेंड के लिए ऑन हो गया। इन कुछ सैकेंडों को 'जिंदगी' में बदलने के लिए एनडीआरएफ की टीम एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। मौके पर अपने साथियों की तलाश में आए मुकेश ने बताया कि यदि नितेश जिंदा निकल सकता है और अंदर से फोन आ सकता है तो उसके साथी भी जिंदा हो सकते हैं। उसने बताया कि उसके साथी प्रमोद, राधा मोहन और हरि राम अभी भी मलबे में है। उसे उम्मीद है कि नितेश के तरह वे भी मौत को मात देकर जिंदा निकलेंगे। इसी तरह अपने बेटे की तलाश में बिहार के आरा जिले से जालंधर पहुंचे वृद्ध हीरा लाल ने कहा कि उसका बेटा राहुल अंदर मलबे में दबा है। छह माह पहले ही वह यहां काम करने आया था। मगर उसे उम्मीद है कि उसके बुढ़ापे की लाठी टूटेगी नहीं। अपने भाई के जिंदा होने की उम्मीद लिए दिनेश ने कहा कि यदि किस्मत ने उसे मलबे से निकाला है तो उसका भाई भी निकलेगा, क्योंकि मशीनों का सहारा कई श्रमिकों को मिला है।