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सबक़ : एक बे‘बस’ प्रदेश, जहां सरकारी बसों पर सबसे पहले लगा था ब्रेक

-न्यूजक्लिक,

पिछले दिनों उत्तर-प्रदेश सड़क राज्य परिवहन निगम के कर्मचारियों ने सरकार द्वारा की जा रही रोडवेज के निजीकरण की प्रक्रिया का विरोध किया था। इन कर्मचारियों ने अलग-अलग संगठनों के बैनर तले मुखर होकर सरकार के खिलाफ कई स्थानों पर प्रदर्शन भी किया था और जल्द ही एक बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी थी। दूसरी तरफ, भले ही एक तबका निजीकरण को समस्या के समाधान के रूप में देख रहा हो, लेकिन असल में यह संकट की नींव पर एक और संकट की ऐसी आधारशिला है जिससे न सिर्फ कर्मचारी बल्कि एक बड़ी आबादी प्रभावित हो सकती है। इस मामले में पड़ोसी राज्य मध्य-प्रदेश से सबक लिया जा सकता है जहां पंद्रह साल पहले राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों पर ब्रेक लगा दिया गया था।

दरअसल, मध्य प्रदेश में सड़क परिवहन निगम की बसों का बंद होना आर्थिक अनियमतिता की ऐसी कहानी है जिसने नेताओं के लिए करोड़ों रुपये के मुनाफे का एक नया रास्ता खोला। इसके पीछे की कहानी बताती है कि एक राज्य में कैसे करोड़ों की आबादी के लिए हर दिन लुटने की परिस्थितियां भी पैदा कर दीं है।

मध्य प्रदेश के बारे में यह जानकारी कई लोगों को हैरत में डाल सकती है कि यह देश का ऐसा प्रदेश है जहां सरकार ने परिवहन निगम की बसों को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। अपने विस्तृत क्षेत्रफल और रेल लाइनों के कम घनत्व के बावजूद राज्य सरकार ने जनता को प्राइवेट बस ऑपरेटरों के सहारे छोड़ दिया है। इस सरकारी कवायद का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हर दिन लाखों यात्रियों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है। दूसरी तरफ, राज्य सेवा बंद होने के बाद यहां निजी बस मालिकों को सीधा आर्थिक लाभ मिल रहा है।

मध्य प्रदेश में प्राइवेट बसें ही चलती हैं।

बता दें कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से गांवों की ओर प्रतिदिन करीब 450 बसें चलती हैं। लेकिन, यह संख्या तब छोटी लगने लगती है जब यह राज्य के पचास जिलों से जुड़ने की बात तो कोसों दूर चंद कस्बों तक भी बमुश्किल ही पहुंच पाती है। राज्य के तीन लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक और ऊंट के आकार के क्षेत्रफल के भीतर फैले निमाड़ और मालवा के कई इलाकों तक रेल-लाइन नहीं पहुंची हैं। लिहाजा यहां बसों को यात्रा के आखिरी उपाय के रुप में देखा जाता है। लेकिन, बसों की संख्या कम पड़ने से यात्री ट्रैक्टर की ट्रॉली जैसे मालवाहनों में जबरदस्ती लदने को बेबस हो गए हैं।

गणेश पाटीदार को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 350 किलोमीटर दूर बड़वानी पहुंचने में कोई 8 घंटे का समय लगना चाहिए, लेकिन सफर 12 घंटे से भी ज्यादा समय में पूरा होता है। वे बताते हैं, "प्रदेश में पहले राज्य परिवहन की बसों से घर तक पहुंचने की गारंटी तो होती थी, लेकिन प्राइवेट बस पता नहीं कब आपको पर्याप्त यात्री न होने की बात कहकर बीच रास्ते में छोड़ दें। भोपाल से बड़वानी पहुंचने के लिए दो-दो प्राइवेट बसें बदलनी पड़ती हैं। बस मालिक मनमर्जी से किराया वसूलने के बावजूद समय पर नहीं चलते।"

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