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कोविड-19 लॉकडाउन : गुजरात में प्रवासी मज़दूरों पर दर्ज मामले ‘मानव अधिकारों का उल्लंघन हैं’

-न्यूजक्लिक,

18 मई को, गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में 35 प्रवासी श्रमिकों को कथित तौर पर दंगा, पथराव और बर्बरता का तांडव करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। करीब 100 प्रवासी मज़दूर लॉकडाउन में घर वापस भेजने के इंतजाम की मांग करते हुए पुलिस से भिड़ गए थे। उनमें से पैंतीस मज़दूरों को महामारी रोग अधिनियम और आपदा प्रबंधन अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए हिरासत में ले लिया गया था। एक महीने की जेल काटने के बाद, अंतत उन्हें 23 जून को जमानत मिली।

गिरफ्तार करने के बाद, उनमें से 33 को साबरमती सेंट्रल जेल में भेज दिया गया था। अन्य दो को  करीब दो सप्ताह तक संगरोध सुविधा में रखा गया था क्योंकि वे नोवेल कोरोनावायरस की जांच में पॉज़िटिव पार गए थे।  ठीक होने के बाद, उन्हें भी 1 जून को जेल में डाल दिया गया था।

जमानती आदेश ने इस बात को नोट किया कि प्रवासी श्रमिक "पीड़ित अधिक हैं और निश्चित रूप से अपराधी नहीं हैं"। उन्होंने कहा, "लॉकडाउन में, जब आवेदक बिना काम के थे, बिना किसी पैसे के थे और यहां तक कि बिना किसी भोजन के रह रहे थे और ऐसी परिस्थितियों में, उन्हे उनके घर वापस जाने की व्यवस्था करने के बजाय, उन्हें जेल भेज डाल दिया जाता है," आदेश में कहा गया कि "उन्हें हिरासत में रहने की जरूरत नहीं है।" बिना किसी शर्त के, उन्हे व्यक्तिगत बांड के एवज़ में तुरंत रिहा किया जाए।”

9 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को "आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 के तहत अभियोजन/ शिकायतों की वापसी पर विचार करने को कहा और प्रवासी मज़दूरों के खिलाफ दर्ज अन्य संबंधित अपराधों पर पुन: विचार करने के लिए कहा, जिन पर लॉकडाउन के उपायों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था"।

हालाँकि, गुजरात सरकार ने मामलों को वापस नहीं लिया है, और यह कुछ ऐसी बात है जिससे श्रमिकों को निकट भविष्य में जूझना पड़ेगा। उनके लिए जमानत हासिल करने वाले वकील नीरव मिश्रा ने कहा कि श्रमिकों को उनके गृह राज्य में वापस जाने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन मुकदमा शुरू होने पर उन्हें अहमदाबाद में मौजूद रहना होगा। "यह तब तो ठीक है अगर वे काम के लिए वापस अहमदाबाद आते हैं," उन्होंने कहा। “लेकिन तब क्या होगा जब उन्हे काम के लिए मुंबई जाना पड़े? या क्या होगा अगर वे अपने गांव में रहने का फैसला कर लेते हैं? ये ऐसा वैधानिक तकनीकी मामला हैं, जिसे राज्य द्वारा मुकदमों को वापस नहीं लेने पर बहुत सारी समस्याओं का सामना करना होगा।”

मनोज के छोटे भाई 28 वर्षीय अरविंद ठाकुर, जो कि 35 वर्ष के हैं, ने कहा कि प्रवासी श्रमिक 18 मई को सड़कों पर उतरे गए थे क्योंकि वे अपने घर जाने के लिए बेताब हो रहे थे, लेकिन उन्हे इसकी अनुमति नहीं दी जा रही थी। उन्होंने कहा, ''कंपनी ने उनके झारखंड वापस जाने के लिए किसी भी तरह के परिवहन की व्यवस्था नहीं की थी।'' “लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से उन्हे कोई वेतन भी नहीं दिया गया था। मेरे भाई ने एक महीना जेल में बिताया है। हमारे माता-पिता, उनकी पत्नी, हम सभी चिंतित हैं।”

भारत के अधिकांश प्रवासी मज़दूरों की तरह, मनोज पूरी तरह से मज़दूरी पर निर्भर है क्योंकि उसके पास जोतने के लिए कोई खेत नहीं हैं। अरविंद ने कहा कि, "हम हमेशा से सड़क पर रहे हैं और शहरों में काम करते हैं।" “हम प्रति माह 10,000-12,000 रुपए कमाते हैं। हम इसमें से कुछ पैसा अपने लिए रखते हैं, और कुछ घर भेज देते हैं।”

मनोज और अरविंद दोनों अहमदाबाद में मज़दूरों के रूप में काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद  अरविंद सौभाग्य से घर लौट गया। "एक आपात स्थिति थी," अरविंद ने कहा, इस बात का खुलासा नहीं किया उसे वापस क्यों जाना पड़ा। “मैं घर वापस चला गया जबकि मनोज यहाँ काम करता रहा। फिर लॉकडाउन हो गया और वह फंस गया। हम साल के एक बड़े हिस्से में काम करने की वजह से अपने परिवारों से दूर रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान कोई काम नहीं था और खाने के लिए बहुत कम था, इसलिए वह वापस जाना चाहता था और अपने परिवार को देखना चाहता था।”

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