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बजट 2022-23: कैसा होना चाहिए महामारी के दौर में स्वास्थ्य बजट

-न्यूजक्लिक,

विगत दो वर्षों से दुनिया महामारी का दंश झेल रही है। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश होने के कारण इस कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से चौतरफा संकटों से घिरा हुआ है। देश में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संकटों ने यहां के नागरिकों को भविष्य के प्रति आशंकित कर रखा है। अभी भी महामारी का खतरा गया नहीं है और स्वस्थ्य की कई चुनौतियां लोगों के जीवन को प्रभावित किए हुए है।

इसी पृष्ठभूमि में महज कुछ ही दिनों बाद देश की वित्तमंत्री वर्ष 2022-23 का आम बजट पेश करने वाली है। यह मौजूदा एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का चौथा बजट होगा। आने वाले बजट में देश के विभिन्न तबके और क्षेत्र की अपनी अपनी उम्मीदें हैं लेकिन मौजूदा दौर में स्वास्थ्य का क्षेत्र सबसे अहम है और यह समय का तकाजा भी है कि बजट में स्वास्थ्य के विषय को विशेष क्षेत्र के रूप में चिह्नित कर उस पर गम्भीरता से काम किया जाए।

स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े संगठन और कम्पनियों की मांग है कि स्वास्थ्य का बजट बढ़े और सरकार स्वास्थ्य ढांचे को और मजबूत करे। चर्चा है कि सरकार आगामी बजट में स्वास्थ्य पर आबंटन को 40-50 फीसद तक बढ़ा सकती है। वर्ष 2021-22 की बात करें तो सरकार ने स्वास्थ्य के लिये लगभग 2.38 लाख करोड़ रुपये आबंटित किये थे।

पिछले बजट में ही सरकार ने कोरोनावायरस संक्रमण से बचाने के लिये 14,000 करोड़ रुपये खासकर वैक्सीन निर्माण के लिये आबंटित किये थे। हो सकता है आगामी बजट में इन रकम में वृद्धि हो लेकिन सवाल है कि स्वास्थ्य बजट तो आबंटित हो जाएंगे लेकिन यह रकम खर्च कैसे होती है? यह मूल्यांकन न तो गम्भीरता से होता है और न सरकार इसमें रुचि लेती है।

यदि इन खर्चों को देखें तो ये कुल जीडीपी का मात्र 1.3 फीसद है, जबकि इसे 3 से 5 फीसद होना चाहिए। विगत दो वर्षों से देश में कोरोनावायरस के आतंक के दौरान सबने देखा कि सबसे बुरी हालत मेहनतकश, गरीब लोगों की थी। सरकारी अस्पताल लगभग नकारा थे।

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 85 फीसद अस्पताल और उपचार केन्द्र धन के अभाव में महज ढाँचे के रूप में खड़े हैं। कोरोना की दूसरी लहर में हुई बड़े पैमाने पर मौतों का तो ठीक से आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है। लेकिन यह तो आम लोगों तथा मीडिया को भी पता है कि कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोगों के मौत का आंकड़ा सरकारी रजिस्टर में दर्ज नहीं है।

जन्ममृत्यु निबंधक, श्मशान और कब्रिस्तान के रिकार्ड तथा बीमा के क्लेम आदि के हवाले से भारत में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 30-35 लाख का हो सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि आगामी बजट में से क्या प्रावधान किए जाएं कि लोगों को बीमारी/महामारी के मौत से बचाया जा सके।

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