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शुगर इंडस्ट्री और गन्ना किसान एथनॉल क्रांति के जरिये बना रहे भारत में एक ‘मिनी ब्राजील’

-रूरल वॉइस,

हरियावां, हरदोई, उत्तर प्रदेश

अक्सर राजनीति के केंद्र में रहने वाला चीनी उद्योग और गन्ना उत्पादक किसान मिलकर एक नई इबारत लिख रहे हैं और तेजी से एक महत्वपूर्ण मुकाम की ओर बढ़ रहे हैं। वह मुकाम है एथनॉल उत्पादन के जरिये क्लीन इनर्जी के मामले में देश को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाना, बशर्ते कि केंद्र और राज्य सरकारें नीतियों और कर व्यवस्था के मामले में दीर्घकालिक सोच पर अमल करें। अगर यह गति बरकरार रहती है तो साल 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी एथनॉल की ब्लैंडिंग का लक्ष्य हासिल करना संभव है। चालू सीजन (2020-21)  में एथऩॉल ब्लैंडिंग का स्तर 8.5 फीसदी रहेगा जबकि उत्तर प्रदेश में यह दस फीसदी हो चुका है।  कुछ साल पहले यह असंभव सा लगता था क्योंकि 2017-18 में देश में पेट्रोल में एथनॉल की ब्लैंडिंग का स्तर मात्र 4.2 फीसदी था। लेकिन बढ़ती उत्पादन क्षमता, एथनॉल की डिफरेंशियल प्राइसिंग, इंडस्ट्री को मिलने वाले रियायती कर्ज और डिस्टीलरी प्रोजेक्ट्स को तेजी से मिलने वाली क्लियरेंस जैसे कदमों के चलते चीनी उद्योग एथनॉल की उत्पादन क्षमता में भारी बढ़ोतरी कर रहा है। चालू सीजन (2020-21) में चीनी उद्योग करीब 325 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन करेगा जबकि चीनी उत्पादन करीब 300 लाख टन होगा। 20 लाख टन से ज्यादा चीनी उत्पादन के बराबर गन्ने के जूस को सीधे एथनॉल उत्पादन में उपयोग किया जाएगा। 

चीनी की देश में खपत से काफी ज्यादा उत्पादन के चलते कीमतों में गिरावट और उसके चलते गन्ना किसानों को होने वाले बकाया भुगतान के अक्सर खड़े होने वाले संकट को खत्म करना है तो हमें ब्राजील को उदाहरण के रूप में रखकर काम करना होगा। इस साल ब्राजील भी करीब 300 लाख टन चीनी उत्पादन करेगा लेकिन हमसे दस गुना से अधिक एथनॉल का उत्पादन करेगा। वहां तमाम ऑटो कंपनियां फ्लेक्सी फ्यूअल वाली गाड़ियां बनाती हैं जो सौ फीसदी तक एथनॉल से चलती हैं। ब्राजील में एथनॉल की 26 फीसदी की न्यूनतम ब्लैंडिंग है। इन ब्लैंड्स को ई-100 और ई-26 कहते हैं। यानी पूरी तरह एथनॉल की श्रेणी और दूसरी पेट्रोल में 26 फीसदी एथनॉल ब्लैंडिंग की श्रेणी। इसकी वजह 65 फीसदी गन्ने के जूस से सीधे एथनॉल बनाने की ब्राजील की चीनी मिलों की नीति है। जबकि हम अब गन्ने के जूस से सीधे एथनॉल बनाने की ओर बढ़ रहे हैं।

हमारे पास उत्तर प्रदेश,  महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक को मिनी ब्राजील बनाने के मौका है। लेकिन यहां नीतिगत स्तर पर कुछ व्यवहारिक दिक्कतें भी हैं और इस मौके को हासिल करने के लिए उनको दूर करना होगा। सरकार ने पेट्रोल में एथनॉल ब्लैंडिंग का लक्ष्य पूरे देश के लिए तय किया है लेकिन इसका उत्पादन चुनिंदा राज्यों में होता है। उसके चलते एथनॉल को दूसरे राज्यों में ट्रांसपोर्ट किया जाता है। बेहतर होगा कि उत्पादक राज्यों में ही ब्लैंडिंग का स्तर बढ़ाकर इसकी खपत वहीं ज्यादा की जाए। मसलन उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ब्लैंडिंग का स्तर बढ़ाकर 15 फीसदी या उससे अधिक किया जा सकता है। ब्लैंडिंग डिपो के स्तर पर होती है इसिलए डिपो में ब्लैंडिंग की क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। उत्पादक राज्यों से सभी राज्यों में एथनॉल भेजे जाने को तर्कसंकत नहीं ठहराया जा सकता है। असल मकसद पेट्रोलियम उत्पादों का आयात घटाना, ग्रीन फ्यूएल का उपयोग बढ़ाना और लागत में कमी करना है। इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि उत्पादक राज्यों में अधिक ब्लैंडिंग करने से ट्रांसपोर्टेशन जैसे खर्चों में कमी के साथ ही यह चीनी उद्योग के लिए भी अधिक सुविधाजनक होगा।

चालू सीजन में पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों द्वारा चीनी मिलों से 283 करोड़ लीटर एथनॉल खऱीदा जाएगा जिसकी कीमत करीब 15800 करोड़ रुपये होगी। इस तरह से  चीनी उद्योग के लिए एथनॉल से होने वाली कमाई गन्ना किसानों को भुगतान बड़ा राजस्व स्रोत बन रही है।

सरकार की 2018 की नीति में एथनॉल ब्लैंडिंग को बढ़ावा देने से डिस्टिलरी क्षमता को बढ़ावा देने और पेट्रोल की 90 रुपये लीटर से ज्यादा की मौजूदा कीमतों ने उद्योग और किसानों के लिए एक नया मौका तैयार किया है। साथ ही सी-मोलेसेस (सामान्य शीरा), बी-हैवी मोलेसेस और गन्ने के जूस से सीधे बनने वाले एथनॉल के लिए अलग दाम तय किये हैं। चीनी उत्पादन की सामान्य प्रक्रिया में एक टन गन्ने से चीनी मिल को 115 किलो चीनी और उससे निकलने वाले शीरे से बनने वाले एथनॉल की मौजूदा कीमतों पर कमाई 4167.51 रुपये बनती है। वहीं बी-हैवी मोलेसेस की स्थिति में चीनी घटकर 100 किलो रह जाती है लेकिन एथनॉल की मात्रा 19.42 लीटर हो जाती है। इस एथनॉल की अधिक कीमत से चीनी मिल की कमाई 4318.79 रुपये हो जाती है। गन्ने के जूस (सीरप) से सीधे एथनॉल बनाने की प्रक्रिया में एक टन गन्ने से 76 लीटर एथनॉल मिलता है। इसकी कीमत सरकार ने 62.65 रुपये प्रति लीटर रखी है, इस प्रक्रिया में मिल की कमाई की स्तर 4761.40 रुपये पर पहुंच जाती है। यानी यह विकल्प चीनी मिलों की आय का नया रास्ता खोल रहा है, जिसमें मिल को चीनी बनाने की जरूरत ही नहीं है। सरकार द्वारा तय कीमतों के अनुसार चीनी मिलों को सी मोलेसेस से बनने वाले एथनॉल के लिए 45.69 रुपये प्रति लीटर, बी-हैवी मोलेसेस से बनने वाले एथनॉल के लिए 57.61 रुपये प्रति लीटर और गन्ने के जूस से सीधे बनने वाले एथनॉल की कीमत 62.65 रुपये प्रति लीटर मिलेगी।

चालू सीजन (दिसंबर, 2020 से नवंबर 2021) में पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियां करीब 283 करोड़ लीटर एथनॉल खरीदेंगी। इसके पहले साल (2019-20) में पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों ने 167 करोड़ लीटर, 2018-19 में 179 करोड़ लीटर, 2017-18 में 150.50  करोड़ लीटर एथनॉल खरीदा था।  साल 2013-14 में पेट्रोलियम कंपनियों ने ब्लैंडिंग के लिए केवल 38 करोड़ लीटर एथनॉल खरीदा था।

चीनी उद्योग के मुताबिक चालू सीजन (2020-21) में  283 करोड़ लीटर एथनॉल में से चीनी मिलें 59.7 करोड़ लीटर का उत्पादन सी मोलेसेस से करेंगी। बी-हैवी मोलेसेस से 181 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन करेंगी और 42.2 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन सीधे गन्ने के जूस से करेंगी। बेहतर कीमत के चलते चीनी मिलों का फोकस गन्ने के जूस से सीधे एथनॉल बनाने पर बढ़ रहा है।

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