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उपभोग की आदतों में बदलाव से हो सकती है भू-मंडल और जीव-मंडल की रक्षा!

-न्यूजक्लिक,

पिछले कुछ महीनों से हममें से उन लोगों को जिनके पास कई चीजों के उपभोग कर सकने लायक पर्याप्त क्रय शक्ति मौजूद है, उन्हें इस तथ्य के प्रति अवगत कराया होगा कि वे इसे कम करके भी जी सकते हैं। अब वे उत्पाद “फिलहाल उपलब्ध” टैब के साथ एक बार फिर से वापस आ चुके हैं, तो क्या ऐसे में हमें फिर से पुरानी आदतों को अपना लेना चाहिये? आख़िरकार ऐसा करने से अर्थव्यवस्था को मदद ही मिलने जा रही है। किसी भी सूरत में पृथ्वी की जलवायु और जैव-विविधता कभी भी स्थिर नहीं रही है। विकास की प्रकृति ही कुछ ऐसी रही है कि जो खुद को इसके अनुकूल ढाल लेंगे, वही फलते-फूलते रहेंगे।

किसी समय पृथ्वी एक गर्म चिपचिपा ग्रह हुआ करती थी, जिसमें 4.5 से 4 अरब वर्ष पहले न तो कोई जीवन ही था और न ही ऑक्सीजन। पानी तत्काल वाष्पीकृत होकर गैसीय मुद्रा में तब्दील हो जाती थी। पृथ्वी के इस नारकीय और जानलेवा बचपन के दिनों को ध्यान में रखकर इसका नामकरण, अंडरवर्ल्ड के ग्रीक देवता हादेस के नामपर हदेन एइओन नाम बिलकुल सटीक रखा गया था। हकीकत तो यह है कि यहाँ से पृथ्वी खुद को रूपांतरित कर परोपकारी मां गैया में बदल सकती है, जो किसी जादुई कारनामे के प्रदर्शन से कम नहीं है।

लेकिन रूपांतरण की यह प्रक्रिया मंथर गति से चली थी, जो कि फीडबैक के सतत विकासात्मक नेटवर्क पर आधारित है।

आखिरकार पृथ्वी ठंडी हुई और उसने एक ठोस पपड़ी विकसित की - जिस पर पानी के अणु जमा होकर सागर और नदियों के निर्माण को साकार रूप प्रदान कर सके। इस सीमित ऑक्सीजन वाले वातावरण में साइनोबैक्टीरीया के पनपने की जगह बनी, जिसने धीरे-धीरे प्रकाश-संश्लेषण के माध्यम से और अधिक ऑक्सीजन निर्मित करना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया में अंततः बड़े पौधे पनपने शुरू होने लगे, नतीजे के तौर पर ग्रह ऑक्सीजन युक्त हो चला जिसने जीव-जंतुओं के विकसित होने और उन्हें अतिरिक्त ऑक्सीजन के उपभोग में मदद की।

जेम्स लवलॉक जो कि एक ब्रिटिश रसायनज्ञ हैं ने 1971 में गैया सिद्धांत (Gaia theory) को प्रतिपादित किया था, जिसके दृष्टिकोण में पृथ्वी एक स्व-नियामक जीव के तौर पर है, एक जैविक स्वरूप जो कि आपस में जुड़े हुए जैविक चक्र के एक जाल से बना है, जिसमें नाना प्रकार के पौधे और जानवरों की प्रजातियाँ एक दूसरे पर भरोसा करते हैं, फीडबैक लूप्स के माध्यम से और इस प्रक्रिया में एक ऐसे जलवायु और वातावरण को निर्मित कर देते हैं जो कि उनके निरंतर विकास के लिए सर्वथा उपयुक्त है।

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