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एक नागरिक के तौर पर प्रवासी

-न्यूजक्लिक,

हम अपने देश के इतिहास में सबसे डरावनी घटना के गवाह बने हैं। इस डरावनी घटना को एक राज्य से दूसरे राज्यों में अपने घरों में वापस लौटते मज़दूरों के दृश्य बयां कर रहे हैं। अनुमान है कि लॉकडाउन के चलते 2,71,000 फैक्ट्रियों और साढ़े छ: से सात करोड़ लघु और सूक्ष्म धंधे रुक गए, जिसके चलते करीब़ 11 करोड़ चालीस लाख नौकरियां चली गईं। इसमें 9 करोड़ 10 लाख रोजाना मज़दूरी करने वाले और एक करोड़ सत्तर लाख वैतनिक कर्मचारी थे, जिन्हें काम से निकाल दिया गया।

प्रवासी मज़दूर कौन है? क्यों उन्हें संविधान, कानून और अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के तहत अधिकार प्राप्त नागरिक मानने के बजाए बाहरी माना जाता है।

आज के हालातों में मज़दूर जिस राज्य में प्रवास करते हैं और उनके गृह राज्यों में उनकी आजीविका के प्रबंधन के लिए हस्तक्षेप करना जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सुरक्षित प्रवास की अवधारणा को विकसित कर रही हैं। हमें अपनी पृष्ठभूमि में इसके बारे में ज़्यादा गहराई से देखने की जरूरत है:

1) प्रवासी और प्रवास

कितने प्रवासी भारतीय देश के बाहर और देश में काम कर रहे हैं, इसके लिए कोई भरोसेमंद आंकड़ा नहीं है। लेकिन जो भी आंकड़े उपलब्ध हैं, उनसे इस मुद्दे की गंभीरता का आकलन हो जाता है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मुताबिक़ भारत प्रवासियों के उद्गम और इनके प्रवास वाला बड़ा देश है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रवासियों के लिए भारत काम करने की एक लोकप्रिय जगह है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, विदेशों में करीब 3 करोड़ भारतीय रहते हैं, इनमें से करीब 90 लाख भारतीय मूल के लोग GCC क्षेत्र (जिसे अब कोऑपरेशन काउंसिल फॉर द अरब स्टेट्स ऑफ गल्फ कहते हैं) के देशों में रहते हैं। 90 फ़ीसदी से ज़्यादा भारतीय प्रवासी खाड़ी क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया में काम करते हैं, इनमें से ज़्यादातर कम और अर्द्ध कुशल कामग़ार हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रवास का एक विश्लेषण बताता है कि भारत में आधिकारिक आंकड़े बेहद सीमित हैं। आंकड़े केवल उन्हीं प्रवासियों के उपलब्ध हैं, जो ''इमिग्रेशन चैक रिक्वॉयर्ड (ECR)'' पासपोर्ट पर, 18 ECR देशों में शामिल किसी देश में प्रवास करते हैं।

इंटरनेशनल ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ माइग्रेंट (IOM) का आकलन है कि 2019 में पूरी दुनिया में करीब 27 करोड़ 16 लाख प्रवासी हैं। 1951 में स्थापित IOM प्रवास के क्षेत्र में अग्रणी अंतर्सरकारी संस्थान है, जो सरकारों, अंतर्सरकारों और गैर-सरकारी साझेदारों के साथ नजदीकी गठबंधन में काम करता है।

IOM के मुताबिक़ ''प्रवासी'' शब्द एक वृहत्तर शब्दावली है, जिसे अंतरराष्ट्रीय कानून में परिभाषित नहीं किया गया है। आम समझ के मुताबिक़, कोई व्यक्ति जो आमतौर पर जहां रहता है, उसे अलग-अलग वजहों से, स्थाई या अस्थाई तौर पर, देश या विदेश जाने के लिए छोड़ता है, तो वो प्रवासी कहलाता है। इस शब्द में कानूनी तौर पर परिभाषित कई वर्ग के लोगों को शामिल किया जाता है, जैसे प्रवासी कामग़ार; जिनका खास किस्म का आवागमन कानूनी तौर पर परिभाषित है, जैसे तस्करी कर लाए गए प्रवासी। लेकिन प्रवासी शब्द में ही कई ऐसे वर्ग शामिल हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय कानूनों में विशेषत: परिभाषित नहीं किया गया है। जैसे: अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी।

यह भी गौर करने वाली बात है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रवासी शब्द की कोई भी सर्वमान्य परिभाषा मौजूद नहीं है।

2) भारत में प्रवासी मज़दूर कौन है?

जनगणना के मुताबिक़ प्रवासी व्यक्ति वह है, जो ''जनगणना में अपने जन्म से इतर दूसरी जगह पाया गया है, वह प्रवासी है।'' ग्रामीण भारत में लाखों महिला और पुरुष काम के लिए प्रवास करते हैं। यह साल के कुछ विशेष मौसम में और भी ज़्यादा होता है। अनुमान है कि करीब़ 12 करोड़ या इससे ज़्यादा लोग ग्रामीण भारत से शहरी श्रम बाज़ारों, उद्योगों और खेतों में काम करने के लिए प्रवास करते हैं।

भारत में बड़े प्रवासी कॉरिडोर, जहां से बड़े पैमाने पर कामग़ारों का प्रवास होता है, उन्हें नीचे नक्शे में दिखाया गया है। उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों को दशकों से ग्रामीण प्रवास के लिए जाना जाता है। लेकिन ओडिशा, मध्यप्रदेश, राजस्थान और हाल में उत्तर-पूर्व जैसे राज्य भी नए कॉरिडोर बन रहे हैं, अब यह हाथ से काम करने वाले लोगों की आपूर्ति के बड़े स्त्रोत् वाले राज्य हैं।

प्रवासी मज़दूर को सबसे ज़्यादा रोज़गार, निर्माण क्षेत्र (4 करोड़), घरेलू नौकर के तौर पर ( 2 करोड़), कपड़ा उद्योग में (एक करोड़ दस लाख), ईंट भट्टे (एक करोड़) में, यातायात, खदानों और कृषि में मिलता है। बीस सालों में देश के भीतर होने वाला प्रवास दोगुना हो गया है। 1991 में 22 करोड़ लोग देश के भीतर प्रवास करते थे, 2011 में यह आंकड़ा 45 करोड़ 40 लाख हो गया।

2011 की जनगणना के मुताबिक़, भारत में करीब 55 लाख लोगों ने अपने निवास स्थल देश के बाहर बताया है। यह कुल आबादी का करीब़ 0।44 फ़ीसदी हिस्सा है। इनमें से 23 लाख बांग्लादेश और 7 लाख पाकिस्तान से हैं। अफ़गानिस्तान से आने वाले प्रवासियों की संख्या 6,596 है।

इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में ऐसी आबादी जिसने अपना निवास स्थल देश के बाहर बताया है, उसका 55 फ़ीसदी हिस्सा बांग्लादेश और पाकिस्तान से है। जनगणना के आंकड़ों से हमें यह भी पता चलता है कि यह प्रवासी कितने वक़्त से भारत में रह रहे हैं। सबसे बड़ा प्रवास विभाजन के दौरान और विभाजन के बाद, फिर 1971 में बांग्लादेश की आजादी के युद्ध में हुआ।

देश के भीतर प्रवासियों की आवाजाही

3) प्रवासियों के लिए कानूनी और संवैधानिक सुरक्षा

महामारी के दौरान जिस स्तर पर प्रवासियों को सड़कों पर आना पड़ा, उस पृष्ठभूमि में प्रवासी कामग़ारों की कानूनी सुरक्षा की बात करने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन हमें इन कानूनों को जानना जरुरी है, ताकि हम पूछ सकें कि इनकी मौजदूगी के बाद भी प्रवासियों को अपने कानूनी और संवैधानिक अधिकारों को अपनाने का मौका क्यों नहीं मिला।

अपनी स्थापना के साथ ही ILO ने 181 कंवेशन और 188 रिकमेंडेशन को माना है, जिनके ज़रिए पूरी दुनिया में श्रम मानकों को सुधारा जा सके। इनमें 8 मुख्य श्रम मानक है। चार अहम वर्ग हैं: 1) संगठित होने और सामूहिक मोल-भाव करने का अधिकार 2) जबरदस्ती श्रम का खात्मा अधिकार 3) बालश्रम का खात्मा 4) पेशे और वैतनिक भेदभाव में का खात्मा।

प्रवासी कामग़ार, जो भारत के नागरिक हैं, उनके भारतीय संविधान के तहत कुछ मौलिक अधिकार हैं।

साथ में कामग़ारों को सुरक्षित रखने के लिए श्रम कानून हैं, जैसे न्यूनतम भत्ता कानून, 1948। चार श्रम न्यायालय भी मौजूद हैं, लेबर कमिश्नर भी हैं और एक सिस्टम है, जो सभी कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।

साथ में इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (रेगुलेशन ऑफ एंप्लायमेंट एंड कंडीशन ऑफ सर्विस) एक्ट, 1979 है, जिसे 40 साल पहले बनाया गया था।

2012 में UNICEF द्वारा बनाई गई रिपोर्ट में कहा गया कि इस कानून में सुधार करने की जरूरत है:

इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमैन (रेगुलेशन ऑफ एंप्लायमेंट एंड कंडीशन ऑफ सर्विस) एक्ट और इन खामियों पर दोबारा विचार करने की जरूरत है।

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