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यूपी में गन्ना किसानों को न दाम का पता, न भुगतान का

-रूरल वॉइस,

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार राज्य के गन्ना किसानों के लिए नये कीर्तिमान बनाने के दावे कर रही है। राज्य की 120 चीनी मिलों को चालू सीजन (अक्तूबर,2020 से सितंबर, 2021) के लिए पेराई शुरू किये हुए दो माह से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन उत्तर प्रदेश के करीब 40 लाख गन्ना किसानों को अभी तक न तो यह पता है कि इस सीजन में उन्हें गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) कितना मिलेगा और न ही यह पता कि उसे भुगतान कब होगा। यही नहीं सरकार के तमाम दावों के उलट राज्य के कुछ किसानो का पिछले सीजन का भी करीब 40 फीसदी तक गन्ना मूल्य भुगतान बकाया है। यह स्थिति तब है जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी बनाने के  लिए पिछले 40 दिन से अधिक समय से लाखों किसान दिल्ली के बार्डरों पर आंदोलन कर रहे हैं जबकि गन्ने के मामले में फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) की कानूनी गारंटी पहले से ही है और इसके भुगतान की भी आपूर्ति के 14 दिन बाद अनिवार्यता है। उसके बाद बकाया पर ब्याज भुगतान का प्रावधान है। इसके पहले उत्तर प्रदेश में एसएपी की घोषणा में सबसे अधिक देरी अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार में हुई थी जब  2016 में 18 जनवरी को एसएपी की घोषणा की गई थी। है। अभी तक चीनी मिलों को किसानों द्वारा गन्ना की जो आपूर्ति की जा रही है उसकी पर्ची पर न तो गन्ने का एसएपी लिखा जा रहा है और न ही आपूर्ति किये गये गन्ने का कुल मूल्य।

वैसे अखिलेश यादव सरकार और मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार में गन्ना किसानों के मामले में कई समानताएं हैं। मसलन अखिलेश सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में केवल दो बार गन्ना के एसएपी में बढ़ोतरी की थी और तीन साल उसे फ्रीज रखा था। उसी तरह योगी सरकार ने भी पिछले तीन सीजन में केवल एक बार मात्र 10 रुपये प्रति क्विटंल  बढ़ोतरी की है और चौथे सीजन के एसएपी की घोषणा का अभी तक इंतजार है। इसके अलावा अखिलेश यादव सरकार ने देरी से गन्ना मूल्य भुगतान पर चीनी मिलों द्वारा दिये जाने वाले ब्याज को ‘जनहित’ में माफ कर दिया था। वहीं मौजूदा योगी सरकार न्यायालय के आदेश के बावजूद अभी तक किसानों को देरी से हुए गन्ना भुगतान पर चीनी मिंलों से ब्याज नहीं दिलवा पाई है।

यह स्थिति तब है राज्य सरकार गन्ना किसानों के हित में कदम उठाने के दावे करते नहीं थकती है। लेकिन इस समय उसकी चिंता कुछ दूसरी भी है। सूत्रों के मुताबिक यह चिंता केंद्र  सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ  40 दिन से अधिक समय से दिल्ली के बार्डरों पर चल रहा किसान आंदोलन है। इनमें दिल्ली- उत्तर प्रदेश का गाजीपुर बार्डर पर चल रहा आंदोलन भी शामिल है। राज्य सरकार को आशंका है कि अगर दाम में बढ़ोतरी नहीं की गई या कम बढ़ोतरी की गई तो किसानों के आंदोलन में गन्ना मुख्य मुद्दा बन सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश के अधिकांश किसानों के लिए गन्ना सबसे अहम फसल है और तीन साल से एसएपी न बढ़ने का मामला गरमा सकता है। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार आंदोलन के परिणाम को देखना चाहती है। वैसे यह आंदोलन लंबा खिंच रहा है और ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार के पास एसएपी पर फैसला टालने का बहुत अधिक समय नही है। हालांकि आंदोलन में अब इस मुद्दे पर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि सरकार अगर दाम नहीं बढ़ाती है तो लखनऊ में भी आंदोलन होगा। इसके अलावा 8 जनवरी के बाद गांव-गांव जनजागरण के कार्यक्रम में गन्ना का मुद्दा लोगों के बीच ले जाया जाएगा। वैसे भी गाजीपुर धरने में आये अधिकांश किसान गन्ना उत्पादक किसान हैं और उनमें एसएपी में बढ़ोतरी नहीं होने और भुगतान में देरी को लेकर भारी गुस्सा है। यह चौथा सीजन है जब उत्तर प्रदेश में गन्ने का एसएपी 325 रुपये प्रति क्विटंल है जबकि पिछले दिनों ही पड़ोसी राज्य हरियाणा ने इसे बढ़ाकर 350 रुपये प्रति क्विटंल कर दिया है।

राज्य सरकार के गन्ना आयुक्त कार्यालय के मुताबिक 1 जनवरी, 2021 तक 317.43 लाख टन गन्ने की खरीद की गई थी। जो पूरे साल में होने वाली पेराई की करीब एक तिहाई है। ऐसे में करीब 35898 करोड़ रुपये के पिछले सीजन (2019-20) के कुल गन्ना खरीद मूल्य  को आधार बनाया जाए तो पुराने एसएपी पर ही इस गन्ने का मूल्य दस हजार करोड़ रुपये  से अधिक बैठता है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले सीजन का 2470 करोड़ रुपये का गन्ना भुगतान बकाया है। हालांकि गन्ना आयुक्त कार्यालय गन्ना मूल्य बकाया के आंकड़े जारी नहीं कर रहा है। इसकी वजह दाम का तय नहीं होना है ऐसे में बकाया की गणना व्यवहारिक नहीं है। हालांकि चालू सीजन के लिए चीनी मिलों ने भुगतान जरूर शुरू किया है। चीनी उद्योग के सूत्रों ने रुरल वॉयस  को बताया कि हम पिछले सीजन के दाम के आधार पर भुगतान कर रहे है और अधिकांश मिलों ने 30 फीसदी तक भुगतान कर दिया। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक चालू सीजन में 5 जनवरी, 2021 तक केवल 2427 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है जबकि आपूर्ति किये गये गन्ने का मूल्य पिछले साल की कीमत पर ही करीब 11 हजार करोड़ रुपये बैठता है।

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