Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/Tragedy-Playing-with-the-mountains-of-Uttarakhand.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | त्रासदी: उत्तराखंड के पहाड़ों से खिलवाड़! | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

त्रासदी: उत्तराखंड के पहाड़ों से खिलवाड़!

-न्यूजक्लिक,

धौलीगंगा रुष्ट हो गईं और उन्होंने भारी विनाश कर दिया। चमोली स्थित तपोवन विष्णुगाड का पॉवर प्लांट तहस-नहस हो गया। और उसकी टनल्स में मौजूद क़रीब डेढ़ सौ लोगों का अभी तक पता नहीं चला है। जबकि इस हादसे को दो हफ़्ते से ऊपर हो चुके हैं। आईटीबीपी और एनडीआरएफ एवं एसडीआरएफ की टीमों ने खूब प्रयास किया लेकिन लापता लोगों में से कुल 40 शव ही ढूँढ़ सकी। तपोवन हाइडिल परियोजना और उसके समीप बना डैम सब तबाह हो गए।

सात फ़रवरी की सुबह सवा दस बजे एक धमाका हुआ और उसके बाद पानी और मलबे का जो बीस फुट ऊँचा सैलाब उमड़ा, उसने जोशीमठ से ऊपर के इलाक़े के गाँव, पुल, सड़क और पॉवर प्लांट्स आदि सबको नष्ट कर दिया। इस हादसे के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का एक विचित्र बयान आया कि चमोली में आई इस विपदा को मैन-मेड विपदा न बताया जाए। यह एक प्राकृतिक आपदा है। उनका कहना था कि इसे मैन-मेड हादसा बताने से उत्तराखंड के विकास कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।

लेकिन मुख्यमंत्री महोदय यह स्पष्ट नहीं कर सके, कि कभी कोई प्राकृतिक हादसा स्वतः नहीं होता, उसके पीछे मनुष्यों के अपने कर्म होते हैं। लाखों वर्ष से पहाड़ ऐसे ही खड़े हैं। बारिश, तूफ़ान और क्लाउड बर्स्ट (बादल फटना) को झेलते हुए। और इसकी वजह रही कि पहाड़ की वनोपज का संतुलन कभी नहीं बिगड़ा। यानी पहाड़ की जैव विविधता व प्राकृतिक संतुलन से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। लेकिन जैसे ही पहाड़ों का व्यापारिक लाभ के लिए दोहन शुरू हुआ, उसका संतुलन गड्ड-मड्ड हो गया। एक दशक के भीतर यह दूसरा बड़ा हादसा था। अगर छोटे-मोटे भूकंपों को छोड़ दिया जाए तो भी 2013 और 2021 में इतना बड़ा हादसा हुआ, जिसकी मिसाल ढूँढ़नी मुश्किल है। इन दोनों ही हादसों को मिलाकर कई हज़ार जानें गईं।

उत्तराखंड में पिछले 2016 के बाद से इस तेज़ी से उत्खनन हुआ है, कि हिमालय के कच्चे पहाड़ लगभग रोज़ ही दरकते हैं। ख़ासकर गढ़वाल रीज़न में चार धाम परियोजना के तहत 900 किमी तक 15 मीटर चौड़ी सड़क बनाने का लक्ष्य है। ये सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बनवाएगा। यह सड़क दो लेन की होगी और बद्रीनाथ-केदारनाथ तथा यमुनोत्री-गंगोत्री को परस्पर जोड़ेगी। ज़ाहिर है, इसके लिए पहाड़ों को खोदा जा रहा है। ऊपर से पत्थर सड़क पर न गिरें इसलिए 15-20 फ़िट ऊँची पत्थरों की दीवाल बनाई जा रही है और इस ऊँचाई के ऊपर लोहे के तारों का जाल। एक नज़र में यह परियोजना बड़ी अच्छी लगती है। पहाड़ों की यात्रा सुगम और सरल हो जाएगी तथा पत्थरों के गिरने का ख़तरा भी कम होगा। ऋषिकेश से चंबा तक का क़रीब 68 किमी की सड़क इस परियोजना के तहत बन चुकी है और यह दूरी अब मात्र सवा घंटे में पूरी हो जाती है, जिसे तय करने में पहले दो-ढाई घंटे लगते थे। मगर इसके लिए जिस तरह पहाड़ों का स्वरूप बिगाड़ा गया है, उनकी हरियाली नष्ट की गई है तथा पानी बाहर जाने के रास्ते बंद हो चुके हैं, उससे ये चमाचम सड़कें कितने दिन चल पाएँगी, यह कहना बहुत कठिन है।

यात्री तो आया और चला गया। किंतु वहाँ के गाँवों और क़स्बों का क्या हाल होगा, इसकी चिंता सरकारों को नहीं होती। क्योंकि राजनेताओं को कमीशन मिलता है और इज़ारेदार कारपोरेट घरानों को व्यापार की सुविधा। बर्बाद हो जाते हैं वहाँ के रहवासी। सात फ़रवरी को जो हादसा हुआ उससे चमोली ज़िले का रेणी गाँव पूरी तरह समाप्त हो गया। उसको जोड़ने वाला पुल भी। हिमालय का एक ग्लेशियर शिखर से टूट कर ऋषिगंगा में गिरा और उसके बाद जो भयानक पानी उमड़ा वह धौलीगंगा के संगम पर जाकर बीस फुट ऊँचा हो गया। इसके बाद उछाल मारते हुए इस पानी ने अपने साथ आसपास के पहाड़ों से गिरे मलबे को लपेटे में लिया। तेज़ी से हरहराता हुआ यह पानी तपोवन पहुँचा। वहाँ पर डैम के गेट बंद थे। इस पानी ने डैम के किनारों को तोड़ते हुए उससे कुछ दूरी पर स्थित पॉवर प्लांट के टनल्स पर निशाना साधा। पंद्रह फुट ऊँचे गेट वाले इन टनल्स के भीतर पानी और मलबा घुस गया। इनमें से टनल नंबर एक ज़्यादा लम्बी है और नंबर दो कम। लेकिन लोग दोनों टनल्स के अंदर थे। उनकी निकासी का दरवाज़ा बंद हो गया। इसी के साथ ऑक्सीजन जाने का रास्ता भी। कुछ ही लोग बचाए जा सके।

इस हादसे को प्राकृतिक कैसे माना जाए? प्राकृतिक कह देना तो भोलेपन की निशानी है। अगर इसे प्रकृति का कोप भी मानें तो यह तय है कि प्रकृति किसी वजह से कुपित हुई होगी। यह वजह मनुष्य निर्मित ही रही होगी, वर्ना जाड़े में ग्लेशियर नहीं गिरते। और वह भी लाखों टन वज़नी ग्लेशियर। हालात ये हैं, कि यदि आप ऋषिकेश से जोशीमठ की तरफ़ जाने वाली रोड पर बढ़ें तो देवप्रयाग तक के पूरे रास्ते पर तोड़-फोड़ जारी है। दासियों ज़ेसीबी लगी हैं, जो पहाड़ खोद रही हैं। जगह-जगह ऊपर से पत्थर गिर रहे हैं। देव प्रयाग से रुद्र प्रयाग तक चार धाम परियोजना की सड़क बन गई है। मगर आगे कर्ण प्रयाग और नंद प्रयाग तक हाल वैसा ही ख़राब है। इतनी ऊँचाई पर पहाड़ काटने का मतलब प्रकृति को बर्बाद करना ही है।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.