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यूपी: सबसे ज़्यादा UAPA के तहत गिरफ़्तारियां, क्या विरोधी आवाज़ों को दबाने की कोशिश है?

-सोनिया यादव,

"संयुक्त प्रवर समिति को एक गधा सौंपा गया था और समिति का काम था उसे घोड़ा बनाना लेकिन परिणाम यह निकला है कि वह खच्चर बन गया है। अब गृह मंत्रालय का भार ढोने के लिए तो खच्चर ठीक है लेकिन अगर गृहमंत्री यह समझते हैं कि वह खच्चर पर बैठकर राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता की लड़ाई लड़ लेंगे, तो उनसे मेरा विनम्र मतभेद है।"

ये बातें साल 1967 में अटल बिहारी वाजपेयी ने तब कही थीं जब तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार यूएपीए क़ानून पारित करने की तैयारी में थी। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने इस बिल का जमकर विरोध किया था और इसकी तुलना एक ऐसे 'गधे' से की थी जिसे 'घोड़ा' बनाने की कोशिश की गई हो लेकिन वो 'खच्चर' बन गया हो।

हालांकि ये विडंबना ही है कि अब अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी बीजेपी की ही सरकारें इस कानून का जमकर प्रयोग कर रही हैं। केंद्र में मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद बरसों पुराने राजद्रोह और यूएपीए के कानून फिर से सुर्खियों में आ गए। देश भर में कई मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और छात्रों को इन कानूनों के जरिए गिरफ्तार किया गया, जिनमें अभी भी कई लोग जांच के नाम पर सालों से सलाखों के भीतर हैं। इस कानून के उपयोग से ज्यादा आज-कल दुरुपयोग की खबरें सामने आ रही हैं। कई बार अदालतें खुद भी इन कानून के तहत दर्ज मुकदमों और गिरफ्तारियों पर चिंता जाहिर कर चुकी हैं।

बात अगर यूएपीए की करें, तो देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बेहतर कानून व्यवस्था और न्यूनतम अपराध के नाम पर 2017 में योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार बनने के बाद इस कानून के तहत 313 केस दर्ज हुए हैं और 1397 लोगों की गिरफ्तारी हुई। जबकि साल 2015 में गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत सिर्फ छह केस दर्ज किए गए थे जिनमें 23 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी।

बता दें कि बुधवार, 1 दिसंबर को राज्यसभा में दिए गए एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि साल 2020 में यूएपीए के तहत यूपी में 361 गिरफ्तारियां हुई हैं जबकि जम्मू कश्मीर में 346 और मणिपुर में 225 लोग इस कानून के तहत गिरफ्तार हुए हैं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में हुई हैं। यानी इस मामले में योगी सरकार ने जम्मू कश्मीर को भी पीछे छोड़ दिया है। इस लिस्ट में जम्मू कश्मीर दूसरे स्थान पर है जबकि तीसरे स्थान पर उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर है।

क्यों बना यूएपीए का कानून?

साल 1967 में इंदिरा सरकार ने कहा था कि देश में कुछ अलगाववादी ताक़तें काम कर रही हैं और भारत की अखंडता की रक्षा के लिए इस क़ानून की ज़रूरत बताई थी। तब आज से करीब 54 साल पहले कई राजनीतिक पार्टियों ने इस क़ानून का जमकर विरोध किया था और आशंका जताई थी कि यूएपीए का इस्तेमाल विरोधी आवाज़ों को दबाने के लिए किया जाएगा। आज 54 साल बाद इतिहास जैसे ख़ुद को दोहरा रहा है। आज भी विपक्षी दल और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों का आरोप है कि सरकार असहमति के स्वरों को दबाने के लिए इस कानून का बेजा इस्तेमाल कर रही है।

दरअसल, राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से जुड़ी समस्याओं का हवाला देकर साल 1967 में लाए गए यूएपीए क़ानून में कई बार संशोधन हुए हैं और हर संशोधन के साथ ये ज़्यादा कठोर होता गया है। अगस्त 2019 के संशोधन के बाद इस कानून को इतनी ताकत मिल गई कि किसी भी व्यक्ति को जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है।

इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है और इसके तहत पुलिस ऐसे अपराधियों या अन्य लोगों को चिन्हित करती है जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। इस मामले में एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को काफी शक्तियां होती हैं।

कानूनी जानकारों के मुताबिक, यूएपीए के तहत जमानत पाना बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि जांच एजेंसी के पास चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिन का समय होता है और जेल में बंद व्यक्ति के मामले की सुनवाई मुश्किल हो जाती है। यूएपीए की धारा 43-डी (5) में कहा गया है कि यदि न्यायालय को किसी अभियुक्त के खिलाफ लगे आरोप प्रथमदृष्टया सही लगते हैं तो अभियुक्त को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा।

एक नज़र में यूएपीए 

 1967: यूएपीए प्रभाव में आया। राष्ट्रीय अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा से जुड़े मसलों से निपटने का मक़सद।

 2001: संसद पर आतंकी हमले के बाद वाजपेयी सरकार ने आतंक विरोधी क़ानून प्रिवेंशन ऑफ़ टेररज़िम एक्ट (POTA) लागू किया।

 2004: यूपीए सरकार ने POTA के दुरुपयोग की बात कहते हुए इसे निरस्त किया और POTA के कई प्रावधानों को यूएपीए में जोड़ दिया। यह पहली बार था जब यूएपीए में ऐसे प्रावधान जोड़े गए।

• 2011: मुंबई में हमलों के बाद आतंकी गतिविधियों के संदिग्ध अभियुक्तों को बिना चार्ज़शीट दायर किए, लंबे समय तक जेल में रखे जाने के प्रावधान जोड़े गए। ज़मानत की शर्तों को और कठोर कर दिया गया।

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