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सीएए आंदोलन के अखिल गोगोई को क्यों जेल में रखना चाहती है सरकार?

-सत्यहिंदी,

7 अगस्त, 2020 को एनआईए अदालत ने असम के नागरिकता संशोधन अधिनियम(सीएए) विरोधी आंदोलन के नेता और कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के प्रमुख  अखिल गोगोई की ज़मानत याचिका खारिज कर दी। 
विशेष एनआईए अदालत ने गोगोई के ख़िलाफ़ एकत्र किए गए सबूतों पर भरोसा किया और कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि एनआईए के बयान के अनुसार आरोप पूरी तरह से अनुचित हैं। इसके बाद केएमएसएस ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की बात कही है।
 
सीएए का विरोध
असम में मूल निवासी अपनी पहचान खोने और आबादी में होने वाले बदलाव की आशंका को देखते हुए सीएए का विरोध करते रहे हैं। अखिल गोगोई की अगुआई में ही पिछले साल नवंबर में प्रबल विरोध प्रदर्शन समूचे असम में शुरू हुआ था। विरोध की चिंगारी निकली थी वह समूचे देश में फैलती चली गई थी। असम में बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ आक्रोश का वातावरण निर्मित हो गया था और दमन की नीति अपनाते हुए सरकार ने अखिल गोगोई को हिंसा भड़काने का आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया था।  

सीएए के ज़रिये पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए ग़ैर-मुसलिम  शरणार्थियों को धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भारत की नागरिकता देने का प्रावधान रखा गया है। 1985 के असम समझौते में विदेशियों को नागरिकता देने की अंतिम तारीख़ 24 मार्च 1971 निर्धारित की गई थी, जिसे इस विधेयक में बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है। 
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही बीजेपी को इस तरह पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में हिन्दू वोट बैंक मजबूत होने का लाभ दिखाई दे रहा है। असम के मंत्री हिमन्त बिस्व सर्मा खुलकर कहते रहे हैं कि इस विधेयक के लागू होने पर असम मुसलिम बहुल राज्य बनने से बच जाएगा और हिंदुओं का वर्चस्व कायम हो सकेगा।

सांप्रदायिक नज़रिया
बीजेपी भले ही घुसपैठ की समस्या को धार्मिक नजरिए से देखती है, लेकिन असम के नागरिक इस समस्या को धार्मिक नजरिए से नहीं देखते। उनका मानना है कि घुसपैठिए हिन्दू हों या मुसलिम, उनको निकाला जाना चाहिए। असम की जनता बंग्लाभाषी घुसपैठियों को अपनी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के लिए ख़तरा मानती है। 

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