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‘नेता पुल बनवा देंगे कहकर वोट ले जाते हैं और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं’

-द वायर,

पश्चिम चंपारण के ठकराहा प्रखंड के धूमनगर गांव के भरपटिया टोले के पास दो दर्जन लोग गंडक नदी के किनारे नाव का इंतजार कर रहे हैं. शाम का गहराने लगी है.

एक छोटी नाव अभी कुछ देर पहले छह-सात लोगों को लेकर निकली है. ग्रामीण नविक से जल्दी लौटने का आग्रह करते हैं ताकि सूरज डूबने के पहले अपने गांव तक पहुंच जाएं. घाट पर दो और नावें हैं, जो मछुआरे मछली पकड़ने के लिए उपयोग करते हैं.

घाट पर खड़े लोगों के घर गंडक नदी के पूरब में दो किलोमीटर दूर हैं. ये सभी लोग नदी पार कर बिहार-यूपी बॉर्डर पर बाजार करने आए थे.

धूमनगर के हदीस अंसारी कहते हैं, ‘हम लोगों के लिए रोज की यह कहानी है. नाव कम है. इस पार से उस पार जाने में आधे घंटे से अधिक लगते हैं. जब तक नाव वापस लौटकर नहीं आती हमें यहां बैठकर इंतजार करना होगा. हम लोगों ने अधिक संख्या में नाव इसलिए नहीं रखी है कि यहां से कुछ दूर दूसरे घाट पर 15 अक्टूबर से पीपा का पुल लगना था, लेकिन अभी तक वो नहीं लगा है इसलिए अपने गांव जाने का एकमात्र सहारा नाव ही है.’

यह गांव उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर है. यह पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र का आखिरी गांव है. धूमनगर ग्राम पंचायत में चार गांव- भरपटिया, धूमनगर, खरखूंटा और कुसहां हैं.

धूमनगर, खरखूंटा और कुसहां नदी पार पूरब हैं जबकि एक टोला भरपटिया नदी के इस पार तटबंध के किनारे है. गंडक नदी के पश्चिम ठकरहा से धनहा तक उत्तर दिशा में एक तटबंध बना है तो दक्षिण-पूर्व दिशा में भी एक तटबंध है.

तटबंध से सटे भरपटिया गांव में सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 60 परिवार रहते हैं, हालांकि बहुत कम घर यहां दिख रहे हैं.

राजभर जाति के लोगों की अधिकता के कारण इस टोले का नाम भरपटिया पड़ा लेकिन लगातार बाढ़ और कटान के कारण लोग यहां से विस्थापित होते जा रहे हैं. कई लोगों ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के बरवा पट्टी थाना क्षेत्र के रामपुर बरहन गांव में घर बना लिया है.

भरपटिया में उच्चतर माध्यमिक स्कूल है. तटबंध से करीब 100 मीटर तक सीमेंट ईंट का खड़ंजा बिछा है. चुनाव की घोषणा के एक महीने पहले भरपटिया में 28 अगस्त को मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल निश्चय योजना के तहत जलापूर्ति शुरू हुई है.

जलापूर्ति होने से कांति देवी जैसी महिलाओं को काफी राहत हुई है. उनके घर के पास पानी की टोंटी लगी है और वह बाल्टी में पानी भर रही हैं.

वे कहती हैं कि अब चापाकल से पानी भरने की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन उनके घर से बमुश्किल 600 मीटर दूर विधवा रमावती के घर के पास न चापाकल है न जलापूर्ति का पाइप.वे कहती हैं, ‘इहां एक ठो चापाकल लग जाइत तो स्कूल से पानी भर के नाहीं लावे के पड़त.’

जलापूर्ति के संचालन की जिम्मेदारी गांव के ही एक शख्स बिहारी यादव को मिली है. वे बताते हैं, ‘इस काम के लिए एक हजार रुपये देने की बात कही गई है. अभी तक एक भी महीना का पैसा मिला नहीं है.’

कांति देवी के घर के पास स्थित सामुदायिक शौचालय बेहद खराब हालत में है. इसका कोई उपयोग नहीं करता है. कांति देवी बताती हैं, ‘दस-बारह वर्ष पहले बना था. बाढ़ का पानी यहां तक आ गया था, तो सीट धंस गया. तबसे यह इसी हालत में है.’

गंडक नदी और इस गांव के बीच सिवान में कुछ जगह गन्ने की फसल दिखती है. धान की फसल कहीं नहीं दिख रही है.

बिहारी यादव कहते हैं, ‘जो भी खाली प्लाट देख रहे हैं, वहां धान की फसल थी, इस बार एक दाना अनाज नहीं मिला है.’

नदी उस पर 200 से अधिक परिवार रहते हैं. नदी पार और इस पार के चारों गांवों में कुल 582 मतदाता हैं.

साल 1979 में बाढ़ और कटान के कारण धूमनगर ग्राम पंचायत के तीनों गांव-धूमनगर, खरखूंटा और कुसहां खत्म हो गए. गांव में नदी की धारा बहने लगी. यहां के लोग विस्थपित हो गए.

विस्थापित परिवार भरपटिया, ठकरहा सहित यहां से 20 से 25 किलोमीटर की दूरी यूपी में बस गए, जिनको कहीं ठौर नहीं मिला वे नदी के दियारे में ही रहने लगे.

विस्थापित परिवारों को पुनर्वास नहीं मिला. तमाम लोगों ने यूपी और बिहार के हिस्से में जमीन खरीदी. आजीविका का कोई और प्रबंध न होने के कारण इन लोगों ने नदी उस पार अपने खेतों को एक बार फिर बड़ी मेहनत से तैयार किया और खेती करने लगे.

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