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बिहार के खुले में शौच से मुक्त होने के दावे पर सवाल, एक भी गांव का नहीं हुआ दोबारा सत्यापन

-द वायर,

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग पूरी हो चुकी है और बाकी के दो चरणों का मतदान अभी बाकी है.

इस बीच जहां एक तरफ विपक्ष के नेता अपनी रैलियों में सरकार की नाकामियां गिनाकर वोटरों को लुभाना चाह रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने दावा किया है कि पिछले 15 सालों में राज्य में खूब विकास हुआ है और यदि उन्हें मौका मिलता है तो आगे भी इसी तरह से विकास करेंगे.

भाजपा और जदयू अपनी उपलब्धियों में मुख्य रूप से बिजली, पानी, शौचालय जैसे कार्यों को गिना रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साल 2015 में घोषित अपने ‘सात निश्चय‘, जिसके तहत पेयजल, शौचालय, महिला रोजगार समेत कुल सात क्षेत्रों में विकास कार्य किए जाने थे, को सफल घोषित करके अगले कार्यकाल के लिए ‘सात निश्चय पार्ट-2’ की घोषणा की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अन्य भाजपा नेता केंद्र की योजनाओं का बखान करके वोटरों को अपनी ओर करना चाह रहे हैं. यहां पर बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई इन योजनाओं को जमीन पर उचित तरीके से लागू किया गया है, या फिर इनका महिमामंडन नेताओं की बयानों में ही है.

सरकार के ही आंकड़े इसकी एक अलग चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं.

द वायर  यहां पर नरेंद्र मोदी की बेहद महत्वाकांक्षी और नीतीश कुमार के ‘सात निश्चय’ में शामिल योजनाओं में से एक ‘शौचालय निर्माण या ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के क्रियान्वयन का विश्लेषण पेश कर रहा है.

शौचालय निर्माण, घर का सम्मान
नीतीश कुमार के ‘शौचालय निर्माण, घर का सम्मान’ निश्चय को लागू करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण विकास विभाग एवं शहरी क्षेत्रों में नगर विकास एवं आवास विभाग द्वारा ‘लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान’ के तहत योजना लागू की जा रही है.

इस अभियान के तहत राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों को खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे केंद्र के स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और राज्य की लोहिया स्वच्छता योजना के प्रावधानों से पूरा किया जाना था.

वैसे तो स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के आंकड़ों में पूरे भारत समेत बिहार को खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया है. हालांकि यदि हम सत्यापित किए गए शौचालयों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं, तो सरकार के इन दावों पर सवालिया निशान खड़े होते है.

कई ऐसा रिपोर्ट सामने आई हैं, जिनमें खुले में शौच से मुक्त किए जाने के दावे को चुनौती देते हुए शौचालयों की जर्जर स्थिति, सभी को शौचालय न मिल पाने, शौचालयों का आधा-अधूरा निर्माण, शौचालय का इस्तेमाल अन्य कार्यों के लिए किए जाने जैसे ढेरों प्रमाण पेश किए गए हैं.

यह स्थिति नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा की भी है.

इस तरह की समस्या का समाधान करने और शौचालय निर्माण को पुष्ट करने के लिए केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने तीन सितंबर 2015 को एक दिशानिर्देश जारी कर कहा था कि किसी भी गांव या ग्राम सभा को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) का दावा करने के लिए कम से कम दो बार इसका सत्यापन कराया जाना चाहिए.

दिशानिर्देशों में कहा गया, ‘ओडीएफ स्थिति को सत्यापित करने के लिए पहला सत्यापन घोषणा के तीन महीने के भीतर किया जा सकता है. इसके बाद ओडीएफ की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पहले सत्यापन के लगभग छह महीने बाद एक और सत्यापन किया जा सकता है.’

मंत्रालय ने कहा कि ओडीएफ की घोषणा एक बार का काम नहीं है, इसका बार-बार सत्यापन होना चाहिए. बिहार सरकार की गाइडलाइन में भी कहा गया है कि निर्मित शौचालयों का भौतिक सत्यापन आवेदन प्राप्ति के दस दिनों के अंदर किया जाना चाहिए.

हालांकि स्वच्छ भारत मिशन के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार के 1,374 गांवों में बने शौचालयों का एक बार भी सत्पायन नहीं हुआ है. राज्य में कुल 38,691 गांव हैं, जिसमें से 37,317 गांवों का स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत एक बार सत्यापन हुआ है.

हैरानी की बात ये है कि बिहार के किसी भी गांव में शौचालय निर्माण के कार्य का दूसरी बार सत्यापन नहीं हुआ है. नतीजन यह खुले में शौच से मुक्त होने के सरकारी दावों पर सवालिया निशान खड़े करता है.

बिहार के अलावा चंडीगढ़, गोवा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, लक्षद्वीप, महाराष्ट्र, मणिपुर, नगालैंड, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु के गांवों में बने शौचालयों का दूसरी बार सत्यापन नहीं कराया गया है.

यदि राष्ट्रीय औसत देखें, तो स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण के तहत देश में घोषित सभी ओडीएफ गांवों का करीब-करीब एक बार सत्यापन कराया जा चुका है. हालांकि महज 30 फीसदी गांवों का दूसरी बार सत्यापन किया गया है.

स्वच्छ भारत मिशन के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार के अररिया जिले 730 ओडीएफ गांवों में से 21 गांवों का एक बार भी सत्यापन नहीं किया गया है. इसी तरह बांका जिले के 1610 गांवों में से 346 गांवों का शौचालय निर्माण को लेकर एक बार भी सत्यापन नहीं हुआ है.

बक्सर जिला के 825 गांवों में से 158 गांव का एक बार भी सत्यापन नहीं हुआ है. इसी तरह गोपालगंज के पांच, कटिहार के 10, खगड़िया के 46, लखसराय के 23 और मधेपुरा के 20 गांवों का ‘खुले में शौच मुक्त’ को लेकर एक बार भी सत्यापन नहीं हुआ है.

यदि अन्य जिलों को देखें, तो मधुबनी के 1,007 गांवों में से 202 गांवों में शौचालय निर्माण का एक बार भी सत्यापन नहीं कराया गया है. इसी तरह मुजफ्फरपुर के 18, नालंदा के 90, सहरसा के चार, सासाराम (रोहतास) के 10 और वैशाली जिला के 22 गांवों का खुले में शौच से मुक्त होने को लेकर कोई सत्यापन नहीं कराया गया है.

पूर्णिया जिला के 1,111 गांवों में से 399 गांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण का कोई सत्यापन नहीं हुआ है.

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