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बिहार में सोशल मीडिया की ताकत के बूते चुनावी एजेंडा सेट करने में आगे बीजेपी

-कारवां,

25 सितंबर को भारतीय निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव 28 अक्टूबर से 7 नवंबर के बीच तीन चरणों में कराए जाने की घोषणा की. इससे पहले आयोग ने कोविड-19 महामारी में चुनाव करवाने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए थे और बिहार के लिए कुछ खास सिफारिशें की थीं. ये सिफारिशें फिजिकल प्रचार अभियान को बहुत हद तक प्रतिबंधित करती हैं. इन नियमों के बाद बिहार में राजनीतिक दल प्रचार के लिए डिजिटल चुनाव प्रचार और सोशल मीडिया पर निर्भर हैं.

चुनाव की घोषणा के पांच दिन पहले इंडिया टुडे समूह के एक हिंदी ऑनलाइन समाचार पोर्टल ने बिहार के उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सदस्य सुशील मोदी का साक्षात्कार किया था. दो घंटे से अधिक समय तक चली उस बातचीत में मोदी ने कोविड-19 में माल और सेवा कर और विकास के संबंध में अपनी सरकार के काम के बारे में बताया. मोदी ने बिहार के सबसे बड़े विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव के बारे में भी बात की. उसी दिन मोदी ने अपने ट्विटर अकाउंट से इस ​इंटरव्यू की एक क्लिप ट्वीट की. उस दिन उन्होंने दो प्रेस नोट भी ट्वीट किए. दोनों को ही दैनिक समाचार पत्रों ने कवर किया. इन्हें मोदी ने प्रेस पिकअप के रूप में रिट्वीट किया.

मोदी के सोशल मीडिया के उपयोग और मुख्यधारा के मीडिया में इसकी फीडिंग बिहार में एक खास पैटर्न की तरफ इशारा करता है जो बीजेपी को चुनाव के मीडिया नैरेटिव को तैयार करने में दूसरों से आगे कर देता है. पिछले पांच सालों में बीजेपी ने अपना सोशल मीडिया ढांचा तैयार किया है जो मान्यता, पहुंच और प्रभाव के मामले में सबसे बड़ा है. इसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बड़ी संख्या में ब्लू टिक वाले या सत्यापित नेता और व्हाट्सएप का बड़ा नेटवर्क शामिल है. बीजेपी और उसकी सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) भी सरकारी विज्ञापनों के वित्तीय प्रोत्साहन का उपयोग कर यह सुनिश्चित कर पाए हैं कि मुख्यधारा की मीडिया उनके बारे में सकारात्मक रिपोर्ट दे. बीजेपी सोशल मीडिया विज्ञापनों पर अन्य राजनीतिक दलों से ज्यादा खर्च नहीं करती है लेकिन वह तीसरी पार्टी द्वारा तैयार कंटेंट का भी लाभ उठाती है जो पार्टी के अनुरूप नैरेटिव बनाते हैं. डिजिटल अभियान भारत के अभियान वित्त कानूनों में कई प्रमुख बदलावों पर प्रकाश डालता है.

सोशल मीडिया पर बीजेपी के प्रभुत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के कम से कम 23 बीजेपी नेताओं ने ट्विटर और फेसबुक अकाउंट ब्लू टिक वाले हैं. इसमें सुशील मोदी, संजय जायसवाल, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और सांसद गिरिराज सिंह एवं राज्य मंत्रिमंडल के कई सदस्य शामिल हैं. अपनी प्रामाणिकता के चलते एक सत्यापित अकांउट के सोशल मीडिया में भारी संख्या में फॉलोवर होते हैं. यह राजनीतिक नैरेटिव को आकार देने में अधिक प्रभावी है. इन 23 बीजेपी नेताओं की फेसबुक और ट्विटर पर फॉलोइंग करोड़ों में है.

सोशल और मुख्यधारा की मीडिया के बीच फीडबैक लूप यह सुनिश्चित करता है कि बीजेपी नेताओं के सत्यापित अकाउंटों से हुई पोस्ट मुख्यधारा की मीडिया द्वारा उठाई गई हैं जिन्हें बदले में इन अकाउंटों से प्रेस पिकअप के रूप में फिर से पोस्ट किया जाता है. यह एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है जहां बीजेपी अपने चुनावी कवरेज में मुख्यधारा के मीडिया द्वारा चर्चा किए जाने वाले एजेंडे को निर्धारित करने में काफी प्रभाव डालती है.

इसके विपरीत बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी आरजेडी के केवल पांच वरिष्ठ नेताओं के ट्विटर और फेसबुक अकाउंट ही सत्यापित हैं. ये पांचों लालू प्रसाद यादव के परिवार के सदस्य हैं. संजय यादव, तनवीर हसन, शैलेश कुमार और नवल किशोर जैसे अन्य राजद नेताओं में से कुछ के ट्विटर तो नहीं लेकिन फेसबुक अकाउंट सत्यापित हैं. इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार, एकमात्र जेडी (यू) नेता हैं जिनके दोनों अकाउंट सत्यापित हैं. यहां तक ​​कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं. जैसे पार्टी अध्यक्ष बशिष्ठ नारायण सिंह के पास सत्यापित अकाउंट नहीं हैं. विपक्षी दलों के महागठबंधन की सदस्य पार्टी कांग्रेस की हालत भी ऐसी ही है. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा, अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया पैनलिस्ट चंदन यादव ही उन वरिष्ठ नेताओं में हैं जिनके फेसबुक और ट्विटर दोनों पर सत्यापित अकाउंट हैं.

यह स्पष्ट नहीं है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की तरफ से बिहार के राजनीतिक परिदृष्य में सत्यापित अकाउंटों का असमान वितरण जानबूझकर किया गया है या राजनीतिक संदेश के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने में बीजेपी की शुरूआती बढ़त और अनुकूल स्थिति का परिणाम है. ट्विटर का अकाउंट सत्यापित करने का कार्यक्रम फिलहाल रुका हुआ है. सत्यापित अकाउंटों के असमान वितरण के बारे में पूछे जाने पर ट्विटर के एक प्रवक्ता ने कहा, "हमारे उत्पाद और नीतियां कभी भी राजनीतिक विचारधारा के आधार पर विकसित या कार्यांवित नहीं की जाती हैं ... हम उम्मीदवारों, निर्वाचित नेताओं और संबंधित पार्टी के अधिकारियों को सत्यापित करने के लिए उन सभी भारतीय राजनीतिक दलों के साथ काम करते हैं जिनके अकाउंट सक्रिय होते हैं." इस सवाल का जवाब फेसबुक के प्रवक्ता ने स्पष्ट नहीं दिया.

डेटा विश्लेषक शिवम शंकर सिंह, जो पहले बीजेपी के लिए काम करते थे, और अब महागठबंधन के लिए काम करते हैं ने मुझे बताया, ''सोशल मीडिया से मुख्यधारा की मीडिया में रूपांतरण ट्विटर पर बीजेपी के लिए काफी प्रभावी है और बिहार में कोई अन्य मुख्यधारा का नेता इसे प्रभावी रूप से नहीं कर रहा है. सुशील मोदी कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हैं और मीडिया इससे अपनी स्टोरी तैयार करता है. बाकी सभी को इसे संपादक को भेजना पड़ता है, फिर उसे कॉल करना और कहना पड़ता है.”

बिहार में कांग्रेस के नेताओं को भी लगता है कि सोशल मीडिया पर उनकी सापेक्षिक अनुपस्थिति के अलावा उन्हें मुख्यधारा के मीडिया में कम कवरेज मिल रहा है. "अगर मीडिया भी सुनने को तैयार नहीं है तो किन्हीं मुद्दों पर किसी का क्या रुख है कैसे पता चल सकता है?," बिहार युवा कांग्रेस के अध्यक्ष गुंजन पटेल सवालिया अंदाज में कहा. फिर कहा, “हम अपना नजरिया स्पष्ट करने के लिए मुख्यधारा के मीडिया कार्यालयों में प्रेस विज्ञप्ति भेजते रहते हैं लेकिन हमें चार लाइन की कवरेज पाने के लिए जैसे जूझना पड़ता है. ज्यादातर अखबार बीजेपी और सरकार के समर्थक हैं.” पटेल का ट्विटर पर सत्यापित अकाउंट है. वह बिहार में एकमात्र युवा कांग्रेस नेता है जिसका अकाउंट है. लेकिन उनका फेसबुक अकाउंट सत्यापित नहीं है.

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