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मनरेगा में लगातार दूसरी बार बजट कटौती, गांव कैसे बनेंगे आत्मनिर्भर

-न्यूजलॉन्ड्री,

कोरोनाकाल के तीसरे वर्ष में जब रोजगार संकट चरम पर है और लोगों की जेबें खाली हैं तब गांवों में श्रमिकों का सहारा बनने वाले महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) में लगातार दूसरे वर्ष बजट प्रावधान में कटौती की गई है. बजट कम होने का सीधा मतलब श्रमदिवस के कम होने और रोजगार के अवसरों में कमी से भी है.

01 फरवरी, 2022 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट पेश किया. इस बार यानी वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मनरेगा के मद में 73000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. यह बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट 98000 करोड़ रुपए से 25.5 फीसदी कम है.

यह लगातार दूसरा वर्ष है जब भारी काम की मांग के बावजूद मनेरगा में बजट कटौती की गई है. इससे पहले बीते वित्त वर्ष में मनरेगा बजट में 34.5 फीसदी की कमी की गई थी.

किसानों के संयुक्त संगठन आशा स्वराज की ओर से कविता कुरुगंती ने कहा कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने वाला एक प्रमुख औजार है. खासतौर से भूमिहीन श्रमिकों और सीमांत किसानों के लिए यह एक बड़ा सपोर्ट सिस्टम है. एक्सपर्ट की मांग के बावजूद इसके बजट में कटौती की गई है.

एक दिन पहले 31 जनवरी, 2022 को पेश आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में यह साफ हुआ था कि न सिर्फ श्रम दिवस बल्कि फंड आवंटन में भी कमी आई है. वित्त वर्ष 2020-21 में कुल 1,11,171 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया गया था, जिसके तहत 11.2 करोड़ लोगों को 389.2 करोड़ श्रम दिवस के तहत काम मिला था.

वहीं, वित्त वर्ष 2021-22 में 68,233 करोड़ रुपए का फंड रिलीज करते हुए 25 नवंबर 2021 तक 8.85 करोड़ लोगों को 240 करोड़ श्रम दिवस के तहत काम दिया गया, जबकि इस वित्त वर्ष के लिए संशोधित बजट 73000 करोड़ रुपए है.

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में यह कहा भी गया कि ऐसे राज्य जो प्रवासी श्रमिकों के श्रम का अस्थाई ठिकाना हैं 2021 में उन्हीं राज्यों में मनरेगा के तहत काम मांगने में बढोत्तरी हुई है. जैसे पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु प्रमुख हैं. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि यह गुत्थी सुलझ नहीं सकी है कि ऐसा क्यों हुआ.

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