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‘सरकार के नए कृषि बाज़ार में क्या बेचें, जब आवारा पशुओं से हमारी फसल बचती ही नहीं’

-द वायर,

रात के करीब 10 बज चुके हैं, ऊपर आसमान में तारे एकदम साफ दिखाई दे रहे है, सनसनाती हवाएं चल रही है और आस-पास एकदम सन्नाटा पसरा हुआ है.

इसी बीच गांव से करीब दो किलोमीटर दूर अपने खेत के एक कोने में फूलचंद ने कांपते हुए आग जलाई और गीली मिट्टी से सने अपने पैरों को गर्म करने लगे. कुछ देर पहले ही करीब 50 पशुओं का एक झुंड उनके सरसों के खेत में आया था, जिसे भगाने के लिए उन्हें पानी से भरे खेत में उतरना पड़ा था.

आवारा पशुओं को रोकने के लिए उन्होंने अपने खेत में ही उचान पर एक छोटी-सी झोपड़ी बना रखी है, जिसमें रखवाली करते हुए अपनी रात बिताते हैं. लेकिन सर्द हवाएं सरपत को पार कर उनके शरीर को बहुत लगती हैं.

वे दांत किटकिटाते हुए कहते हैं, ‘भाई साहब पिछली बार बहुत फसल बर्बाद हुई थी, घर के खाने का भी इंतजाम नहीं हो सका, इसलिए इस बार दिन-रात लगा हूं कि कम से कम खाने के लिए फसल बच जाए.’

फूलचंद उत्तर प्रदेश में चित्रकूट जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर अतरी मजरा गांव के निवासी है. वे दूसरे का खेत पट्टे (अधिया) पर लेकर खेती करते हैं, जो परिवार के जीवन-यापन का एकमात्र जरिया है. पशुओं को रोकने के लिए उन्होंने खेत को कंटीले तारों से घेर रखा है, लेकिन इसके बावजूद ढेरों जानवर इसमें घुस आते हैं.

इस बार उन्होंने दस बीघे खेत में चना, गेहूं, सरसों और मसूर की बुवाई की है. लेकिन नाउम्मीदी भरे लहजे में कहते हैं, ‘इनमें से कुछ होगा नहीं, बहुत डाड़ (घाटा) पड़ता है. दूध देने वाले पशुओं को छोड़कर अन्य को कोई बांधता नहीं है. एक तो यहां पानी नहीं है, हम पहले ही भगवान भरोसे हैं, जो भी थोड़ा पैदावार होने की आस होती है, उसे गाय-भैंस चर ले रहे हैं.’

फूलचंद कहते हैं कि इस क्षेत्र में उनके जैसे किसान अपनी उपज को बेचने का सोच भी नहीं सकते हैं, यहां खाने का इंतजाम हो जाए यही बहुत है.

उन्हें केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों की जानकारी नहीं थी, हालांकि इसके प्रावधानों के बारे में बताने पर वे कहते हैं, ‘हां, ये सुना है कि दिल्ली में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार चाहे मंडी के भीतर या मंडी के बाहर बेचने के लिए कानून लाए, हमारी फसल तो आवारा पशुओं के कारण बचती ही नहीं है, हम क्या ही बेच सकेंगे!’

ये महज किसी एक किसान की पीड़ा नहीं है, बल्कि साल 2017 में योगी सरकार द्वारा कड़े गोहत्या कानून लाने के बाद से ही बुंदेलखंड का पूरा क्षेत्र आवारा पशुओं की समस्या से पीड़ित है.

किसी भी गांव में घुसते ही लोग अपनी ये तकलीफ बयां करने लगते हैं. इस जगह की अब ये प्राथमिक पीड़ा बन चुकी है. इस समस्या के समाधान के लिए जनवरी 2019 में प्रदेश सरकार ने अस्थाई गोशालाएं स्थापित की थीं. हालांकि फंड की कमी के चलते इनकी स्थिति बेहद दयनीय है.

यही वजह है कि पिछले महीने बांदा जिले के कई पंचायत प्रमुखों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि अप्रैल 2020 के बाद से उन्हें गो कल्याण के लिए कोई फंड नहीं दिया गया है, जिसके कारण कई पशुओं की भूख से मौत हुई हैं.

प्रधानों ने चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि सरकार पैसे नहीं देती है तो उन्हें गायों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में इस कार्य के लिए 613 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष के लिए ऐसा कोई राशि फिलहाल तय नहीं की गई है.

साल 2019 के शुरूआत में सरकार द्वारा किए गए वादे के मुताबिक एक गाय की देखभाल के लिए एक दिन में 30 रुपये दिए जाएंगे.

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