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तमिलनाडु में लॉकडाउन के दौरान जातीय अत्याचारों में पांच गुना वृद्धि : दलित संगठन

-कारवां,

29 मार्च को तिरुवनमन्नई जिले के मोर्रप्पाथंगल गांव में भीड़ ने कुल्लथुर समुदाय के 24 वर्षीय सुधाकर मुरुगेसन की हत्या कर दी. यह समुदाय तमिलनाडु में अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत है. सितंबर 2019 में सुधाकर ने हिंदू जाति की गौंडर समुदाय की एक महिला शर्मिला से शादी की थी. यह समुदाय तमिलनाडु में पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत है. सुधाकर के पिता मुरुगेसन ने बताया, ''सुधाकर और पड़ोस के गांव की शर्मिला ने बिना किसी को बताए शादी कर ली थी.'' उन्होंने कहा, "वह उच्च जाति की थी और उसका परिवार हमें परेशान करता रहा." मार दिए जाने के डर से दोनों चेन्नई भाग गए जहां सुधाकर राजमिस्त्री का काम करने लगे. शादी के 16 दिन बाद शर्मिला के परिवार ने उन्हें ढूंढ निकाला और उन्हें अपने माता-पिता के घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया. सुधाकर अपनी जान के डर से चेन्नई में ही रुके रहे. “वह लॉकडाउन के कारण घर वापस आ गया.'' मुरुगेसन ने कहा, ''उसकी पत्नी के परिवार वालों ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी. वह मौके की तलाश में थे.''

उस सुबह सुधाकर खेतों पर जाने के लिए अपने घर से निकले थे. "उसके जाने के पंद्रह मिनट बाद हमें एक फोन आया कि उस पर हमला हुआ है" मुरुगेसन ने कहा. “जब तक हम मौके पर पहुंचे तब तक वह मर चुका था. उसकी मां तब से ही बिस्तर पर पड़ी है. वह खाना नहीं खा रही है और हर समय रोती रहती है,'' मुरुगेसन ने मुझे बताया जो फोन पर बात करते हुए अक्सर रो पड़ते थे. "हम अपने बेटे के लिए न्याय चाहते हैं."

कोरोनोवायरस महामारी से निपटने के लिए राष्ट्रीयव्यापी लॉकडाउन के बीच सुधाकर की हत्या तमिलनाडु में दलितों पर बढ़ते अत्याचार के मामलों में से एक है. लॉकडाउन राज्य में दलितों के लिए ना केवल भोजन और रोजगार के लिए रोजाना का संघर्ष बन गया है बल्कि जाति आधारित हत्याओं और सार्वजनिक अपमानों के मामलों में भी तेज वृद्धि हुई है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत पुलिस महानिदेशक की अध्यक्षता में राज्य के एससी/एसटी संरक्षण सेल को अत्याचारों की संख्या पर हर महीने डेटा एकत्र करने और प्रकाशित करने की आवश्यकता होती है. लेकिन इस निकाय ने चल रहे लॉकडाउन की अवधि के कोई भी प्रासंगिक आंकड़ां प्रकाशित नहीं किया है. डीजीपी जेके त्रिपाठी के कार्यालय ने असिस्टेंट डीजीपी फॉर वेलफेयर थमारई कन्नन से बात करने को कहा. कन्नन के कार्यालय ने राज्य में होने वाले अत्याचारों की संख्या और प्रशासन द्वारा डेटा प्रकाशित नहीं किए जाने के बारे में पूछे गए हमारे प्रश्नों का जवाब नहीं दिया.

हालांकि दलित अधिकारों के लिए काम करने वाले मदुरै के एक संगठन, एविडेंस, ने राज्य में बढ़ने दलित विरोधी अत्याचारों के गुमशुदा आंकड़ों को सावधानीपूर्वक एकत्र किया है. एविडेंस के संस्थापक और आमतौर पर ऐविडेंस काथिर कहे जाने वाले विंसेंट राज ने मुझसे कहा, “हम वर्षों से पुलिस और दलित संगठनों से जुड़े अत्याचार के आंकड़े एकत्र कर रहे हैं. लॉकडाउन में क्रूर अत्याचारों की संख्या में स्पष्ट वृद्धि देखी गई है. यदि आप एससी और एसटी समुदायों के खिलाफ क्रूर अत्याचारों की गिनती करें, जैसे बलात्कार, हत्या और लिंचिंग तो इनमें बेतहाश बढोतरी हुई है.” काथिर ने मुझे बताया कि इस साल जनवरी, फरवरी और मार्च में राज्य में बर्बर अत्याचारों की संख्या क्रमशः पांच, आठ और छह थी. "हमारे अध्ययनों के अनुसार, जो हम नियमित रूप से करते हैं, तमिलनाडु में हर महीने अत्याचार अधिनियम के तहत लगभग 100 से 125 मामले दर्ज किए जाते हैं, उनमें से पांच से सात मामले जघन्य होते हैं. इस लॉकडाउन अवधि के दौरान अकेले जघन्य मामलों की संख्या तीस तक पहुंच गई है."

राज्य के कई दलित संगठनों ने मुझे बताया कि यह बढ़ी हुई संख्या तो तब है जब लॉकडाउन के दौरान ​व्यवस्थित रूप से अत्याचारों के मामलों को कम दर्ज किया जा रहा है और तमिलनाडु पुलिस अत्याचारों के मामले दर्ज करने में अनिच्छुक है. "बंद के कारण पीड़ितों के लिए पुलिस स्टेशनों तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो जाता है," काथिर ने कहा. ''दूसरी ओर पुलिस एफआईआर दर्ज करने या कार्रवाई करने से बचने के लिए महामारी का हवाला देती है. दलितों के खिलाफ आज तक किसी ना किसी रूप में अत्याचार हो रहा है. अपराधी इस तालाबंदी को कमजोर समुदायों के खिलाफ अत्याचार करने के मौके के रूप में देखते हैं, “उन्होंने कहा.

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