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झारखंड में गढ़वा के रपुरा गांव के प्रजापतियों को सड़क नहीं दे रहे राजपूत, कहते हैं मुख्यमंत्री की औकात नहीं कि खुलवा लें रास्ता

-कारवां,

झारखंड के गढ़वा जिले के कांडी प्रखंड मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर रपुरा गांव के नवडीहवा टोले के लोग सड़क की समस्या को लेकर एक बार फिर 15 जून को अंचल कार्यालय प्रदर्शन करने पहुंचे थे. लेकिन तीन-चार घंटे के बाद उन्हें लॉकडाउन का हवाला देकर और बाद में रास्ते का हल निकालने की बात कह कर चलता कर दिया गया.

टोले वालों के मुताबिक यह लोग इसी तरह पिछले साल 21 दिसंबर को भी अंचल कार्यलय के समक्ष आमरण अनशन पर बैठे थे लेकिन उसी दिन रास्ते का हल निकाले जाने के लिखित आश्वासन के बाद उनका अनशन खत्म कर दिया गया था. सड़क के सवाल पर टोले वालों को पहले भी कई बार आश्वासन मिले हैं मगर मसले का हल अब तक नहीं निकल पाया है.

इनकी मुश्किल यह है कि इन्हें बाजार से जोड़ने वाली जो कच्ची सड़क थी उसे अब इतना सकरा बना दिया गया है कि उससे एक बच्चे का पार होना भी मुश्किल है. 30 घर से अधिक वाले इस टोले के लोगों के मुताबिक पहले यही रास्ता 8-10 फिट चौड़ा हुआ करता था. इसी से हरिहरपुर पंचायत के बाजार-हाट और कांडी ब्लॉक टोले के लोग तीन पीढ़ियों से आवाजाही करते रहे हैं लेकिन पिछले साल अप्रैल से उसे गांव के दो राजपूत परिवारों में से एक के 41 वर्षीय सदस्य संतोष कुमार सिंह ने रास्ते को अपनी जमीन बता कर कंटीले तार से बांध दिया. रास्ता बंद हो जाने के बाद बमुश्किल एक बार में एक ही व्यक्ति रास्ता पार कर सकता है. अगर दो पहिया वाहन लेकर गांव में इस रास्ते से जाते हैं तो बरसाती किचड़ के कारण वाहन के चक्के जाम हो जाते हैं.

मैं इसी कंटीले रास्ते से खुद को संभालते हुए टोले के उन वादी परिवारों तक पहुंचा, जो इसके समाधान के लिए गुहार लगाकर राज्य के मंत्री, विधायक और पदाधिकारी तक के संज्ञान में मामले को ला चुके हैं. बावजूद इसके सारे प्रयास अभी तक टोले वालों की परेशानियों का हल नहीं निकाल पाए हैं.

50 साल के बटेश्वर प्रजापति उन्हीं परेशान लोगों में से एक हैं जिन्होंने अपनी पीड़ा सुनाते हुए मुझसे कहा, “एक साल से भी ज्यादा हो गया है. हम लोग कैसे आना-जाना करते हैं आपने देखा होगा. इसी साल फरवरी में हमारी बेटी की मौत हुई है. उसे टीबी था. इलाज के बाद अस्पताल से वह अपनी बुआ के पास कदवन में थी लेकिन ज्यादा दिन तक नहीं रही. जब उसके शव को हम लोग कमांडर गाड़ी से लेकर गांव आए तो उसका शव ऐंठ गया था. सोचा कि खाट, खटोले पर उसे कमांडर से उतार कर घर तक लाएंगे लेकिन कांटे से बंद रास्ते के कारण शव को जानवर की तरह कांधे पर रख कर लाना पड़ा. उन लोगों ने उसके शव को लाने तक के लिए जगह नहीं छोड़ी. जैसे हम अपनी बेटी को लाए वैसे तो जानवर को भी लोग नहीं लाते-ले जाते हैं.”

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