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कोविड-19 के मरीजों के लिए फायदेमंद हो सकता है सेल थेरेपी ट्रीटमेंट

-डाउन टू अर्थ,

सेल थेरेपी पर आधारित यह उपचार कोरोनावायरस के उन रोगियों के लिए लाभदायक हो सकता है जो सांस सम्बन्धी गंभीर समस्याओं को झेल रहे हैं। यह क्लीनिकल ट्रायल प्रोफेसर डैनी मैकॉली और प्रोफेसर सेसिलिया ओ'केन के नेतृत्व में किया गया है। जोकि क्वींस यूनिवर्सिटी के वेलकम-वोल्फसन इंस्टीट्यूट फॉर एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन में शोधकर्ता हैं।

इस क्लीनिकल ट्रायल में शोधकर्ता कोविड-19 के कारण मरीजों में होने वाली एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) नामक बीमारी के उपचार के लिए एलोजेनिक मेसेनचाइमल स्ट्रोमल सेल्स के उपयोग पर परिक्षण कर रहे हैं।

गौरतलब है कि कोरोनावायरस के चलते गंभीर रूप से बीमार मरीजों में श्वशन सम्बन्धी विकार उत्पन्न हो जाता है। जिसे एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) के नाम से जाना जाता है। इस बीमारी में मरीज के फेफड़े फूल जाते है और उनमें फ्लूइड जमा हो जाता है। जिस वजह से मरीजों के सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरूप उन्हें गहन देखभाल और वेंटिलेटर पर रखने की जरुरत पड़ जाती है। 

मरीजों पर कैसे काम करती है यह थेरेपी

इस उपचार के लिए एलोजेनिक मेसेनचाइमल स्ट्रोमल सेल्स का उपयोग किया गया है, जोकि मानव ऊतकों से निकली गयी कोशिका जैसे कि बोन मेरो या फिर गर्भनाल होती है। परीक्षणों से पता चला है कि यह सेल्स फेफड़ों की सूजन को कम करने, संक्रमण से लड़ने और ऊतकों को हुए नुकसान को भरने में काफी हद तक मददगार हैं।

इस ट्रायल को रियलिस्ट कोविड-19 का नाम दिया गया है। जिसमें मरीजों का इलाज गर्भनाल से प्राप्त उत्तकों के सेल्स 'ऑर्बसेल-सी' की मदद से किया गया है। इस थेरेपी को गॉलवे, आयरलैंड के ऑर्बसेन थेरापेयटिक्स ने विकसित किया है।

यह ट्रायल एआरडीएस वाले रोगियों में एमएससी के उपयोग की जांच के एक मौजूदा कार्यक्रम का ही हिस्सा है। इस परिक्षण के लिए पहले मरीज का चुनाव कर लिया गया है। जिसमें आगे भी बेलफास्ट, बर्मिंघम और लंदन सहित कई स्थानों पर कोविड-19 से ग्रस्त कम से कम 60 मरीजों पर और परिक्षण करने की योजना है।

गौरतलब है कि यह अध्ययन स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल अनुसंधान और विकास प्रभाग और वेलकम ट्रस्ट द्वारा वित्त पोषित है| जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ रिसर्च ने देश के लिए जरुरी एक तात्कालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य अध्ययन के रूप में मान्यता दी है।

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