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केंद्र-राज्य के बीच जारी जीएसटी विवाद से ज्यादा जरूरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और उधार की व्यवस्था बनाना है

-द प्रिंट,

केंद्र और राज्यों की सरकारें जीएसटी के मद में मुआवजे में कमी की भरपाई को लेकर विवाद में उलझ पड़ी हैं. अच्छे समय में किए गए वादे में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह राज्यों को इस कमी की भरपाई करेगी. लेकिन केंद्र अब राज्यों से कह रहा है कि वह इस भरपाई के लिए उधार ले. ज़्यादातर राज्य, खासकर गैर-भाजपा सरकारों वाले राज्य विरोध कर रहे हैं कि यह तो अपने वादे से मुकरना हुआ.

राज्यों ने देशभर में जीएसटी लागू करने के लिए इस शर्त पर सहमति दी थी कि पहले पांच वर्षों में इसे लागू करने में अगर राजस्व में कमी आई तो केंद्र उसकी पूरी भरपाई करेगा. ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि जीएसटी में ऐसे कई करों का विलय कर दिया गया जिन्हें पहले राज्य वसूलते थे.

जीएसटी से राज्यों की कमाई में 2015-16 में आई रकम में सालाना 14 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया था. सहमति यह बनी थी कि अगर 14 प्रतिशत सालाना वृद्धि में कमी रह गई तो केंद्र उसकी भरपाई करेगा. यह भरपाई उस कोश से की जाएगी जिसका निर्माण उन चीजों पर उपकर (सेस) लगाकर किया जाएगा जिन पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगाने का फैसला किया गया है.

कोविड ने खेल बिगाड़ा
चालू वर्ष में कोविड के कारण लगे लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियों को बाधा पहुंची. अर्थव्यवस्था पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत सिकुड़ गई. आगे की तिमाहियों में कुछ सुधार हो सकता है लेकिन आशंका यह है कि इस वित्त वर्ष में गहरी सिकुड़न हो सकती है. इसके कारण जीएसटी और ‘सेस’ से उगाहियों में भारी गिरावट आई है. जीएसटी या सेस में अपेक्षित 14 प्रतिशत की वृद्धि इस साल तो मुमकिन नहीं लगती. इस कमी को पूरा करने के लिए केंद्र या राज्यों को उधार लेना पड़ सकता है. सवाल यह है कि उधार कौन ले और ब्याज कौन भरे?

केंद्र ने कमी की भरपाई के दो विकल्प सुझाए हैं. पहला यह कि राज्य केंद्र की मध्यस्थता से रिजर्व बैंक की विशेष खिड़की से रियायती दर पर 97,000 करोड़ (जीएसटी लागू करने से कमाई में अनुमानित कमी) का उधार ले सकते हैं. मूलधन और ब्याज का भुगतान मुआवजा ‘सेस’ से किया जा सकता है यानि राज्यों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा.

दूसरा विकल्प यह है कि राज्य कोविड-19 के कारण जीएसटी के मद में करों में कुल 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी रिजर्व बैंक से उधार लेकर पूरी करें. राज्यों को तब ब्याज का बोझ उठाना पड़ेगा. ‘सेस’ लागू करने से जो मुआवजा कोश बनेगा उसका उपयोग मूलधन के भुगतान में किया जाएगा.

राज्य अगर पहले वाले विकल्प को चुनेंगे तो ‘फिस्कल रेस्पोंसीबिलिटी ऐंड बजट मैनेजमेंट एक्ट’ (एफआरबीएम) के तहत उधार लेने की उनकी सीमा में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.5 प्रतिशत के बराबर की वृद्धि की जा सकती है. लेकिन दूसरे विकल्प में यह सुविधा नहीं मिलेगी.

अर्थव्यवस्था की खातिर कौन ले सकता है उधार
केंद्र का कहना है कि राज्य उधार लेने की बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि ‘एफआरबीएम’ के तहत उन्हें ज्यादा सुविधा हासिल है. कोविड-19 महामारी के कारण बढ़े हुए खर्चों को पूरा करने के लिए उनके लिए उधार लेने की सीमा 3 से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दी गई. केंद्र अगर अतिरिक्त उधार लेगा तो सरकारी प्रतिभूतियों पर लाभ प्रभावित होगा जो कि राज्यों के अलावा दूसरे उधारों के लिए सीमा तय करता है.

राज्यों का कहना है कि केंद्र को उधर लेना चाहिए क्योंकि उसने राज्यों को करों से होने वाली कमाई में कमी की भरपाई करने का वादा किया है. अगर उसने ऐसा नहीं किया तो यह वादे से मुकरना होगा. केंद्र का तर्क यह है कि इससे कोई वादाखिलाफी नहीं होगी. उसने केवल जीएसटी के मामले में राजस्व की कमी की भरपाई का वादा किया था, सभी तरह के राजस्व में कमी की भरपाई का नहीं.

केंद्र ले या राज्य लें, अतिरिक्त उधार जो भी लेगा उससे भारत पर सरकारी कर्ज का बोझ बढ़ेगा ही.

सवाल यह नहीं है कि केंद्र उधार ले या राज्य लें, बल्कि यह है कि अर्थव्यवस्था को ज्यादा ताकत किस कदम से मिलेगी. केंद्र ने इस साल के लिए उधार लेने की सीमा में पहले ही 4 लाख करोड़ का इजाफा कर लिया है. और अधिक उधार लेने से अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए खर्च की उसकी योजना में बाधा आएगी.

अगर पहले वाले विकल्प के तहत राज्य उधार लेते हैं तो मूलधन और ब्याज का भुगतान जीएसटी मुआवजा उपकर को पांच साल से आगे बढ़ाकर किया जा सकता है. सावधानी यह बरतनी होगी कि ‘सेस’ स्थायी न हो जाए.

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