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चारधाम समिति के प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- पनबिजली प्रोजेक्ट, सड़क चौड़ीकरण से आई आपदा

-द वायर,

उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष ने उच्चतम न्यायालय को लिखा है कि पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण और सड़क को चौड़ा करने से हिमालयी परिस्थितिकी (इकोलॉजी) को अपूरणीय नुकसान पहुंच रहा है, जिसके कारण चमोली जिले में अचानक बाढ़ रूपी आपदा आई.

समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने सर्वोच्च न्यायालय को लिखे पत्र में कहा कि 2013 में केदारनाथ में हुए हादसे के बाद एक विशेषज्ञ समिति ने पनबिजली परियोजनाओं के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए एक रिपोर्ट सौंपी थी और उसमें व्यक्त की गई चिंताओं और अनुशंसाओं पर ध्यान दिया जाता तो ऋषिगंगा और तपोवन-विष्णुगाड परियोजनाओं में जान-माल के व्यापक नुकसान से बचा जा सकता था.

उन्होंने कहा, ‘उपलब्ध साक्ष्यों और 2013 में हुए हादसे के मद्देनजर वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारिक हमारी रिपोर्ट की सराहना करने के बजाय, यह बेहद खेदजनक है कि 15 जनवरी 2021 के अपने हलफनामे में रक्षा मंत्रालय ने मकसद की असंवेदनशीलता पर सवाल उठाए.’

चोपड़ा ने न्यायालय से मांग की है कि रक्षा मंत्रालय उनके एवं समिति के दो अन्य सदस्यों के खिलाफ लगाए गए इन आरोपों को वापस ले.

इसे लेकर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बीते बुधवार को शीर्ष न्यायालय से कहा कि वह उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के पत्र का जवाब दाखिल करेंगे.

दरअसल, सड़क को चौड़ा करने के कार्य और राज्य में आई हालिया आपदा के बारे में चोपड़ा ने 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था और इसमें कई ‘आरोप’ लगाए गए हैं. 

यह समिति उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा तक सड़कों को चौड़ा करने पर चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अटॉर्नी जनरल के हवाले से केंद्र ने अदालत से कहा कि चारधाम हाईवे परियोजना का धौलीगंगा हादसे से कोई लेना-देना नहीं है.

उन्होंने जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस बीआर गवई की पीठ से उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने सरकार को लिखे पत्र में आपदा का संबंध चारधाम परियोजना से होने का जिक्र किया और खा कि चोपड़ा का दावा सही नहीं है.

वेणुगोपाल ने कहा कि चोपड़ा ने स्वयं सरकार को यह पत्र लिखा है और वो इस पर रक्षा मंत्रालय का जवाब लिखित में देंगे.

उनकी दलील पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, ‘आप इस पर जवाब दाखिल करिए.’ साथ ही पीठ ने मामले पर अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दी.

सरकार का दावा है कि रणनीतिक महत्व वाली करीब 900 किमी लंबी चारधाम राजमार्ग परियोजना यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तक बारहमासी सड़क संपर्क मुहैया कराएगी.

समिति के अध्यक्ष चोपड़ा ने शीर्ष न्यायालय से कहा है कि जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य से और सड़क चौड़ी किए जाने से हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी को अपूर्णीय क्षति हुई है. इसके परिणामस्वरूप चमोली जिले में अचानक बाढ़ (आपदा) आई.

शीर्ष न्यायालय को लिखे पत्र में चोपड़ा ने कहा है कि 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद एक विशेषज्ञ इकाई ने एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें जल विद्युत परियोजनाओं के प्रभावों का उल्लेख किया गया था. उन्होंने पत्र में कहा, ‘यदि इन चिंताओं और सिफारिशों पर ध्यान दिया जाता तो ऋषि गंगा और तपोवन विष्णुगाड परियोजनाओं में जानमाल को हुए नुकसान को टाला जा सकता था.’

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