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ग्लासगो के संकल्प कहीं हिमालय को बर्बाद न कर दें!

-गांव सवेरा,

स्काटलैंड के शहर ग्लासगो में सीओपी26 (कान्फ्रेंस ऑफ पार्टिस 26) का आयोजन 1 नवंबर से शुरु हुआ था। भारत का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें शामिल होते हुए जिन समझौतों और संकल्पों पर हस्ताक्षर किए हैं इससे न केवल भारत पर अमेरिका, ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी देशों को शिकंजा बुरी तरह से कसा जाएगा बल्कि यह पूरे देश सहित हिमालय क्षेत्र के लिए बुरे नतीजे निकलने वाले हैं। नेट जिरो 2070, गो ग्रीन गो 2030, वन ग्रीड वन सोलर, कार्बन उत्सर्जन में कटौती, नवीकरणीय उर्जा जैसे जो नारे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुत आकर्षित और सुंदर लग रहे हैं लेकिन इससे उतर भारत में जल संकट, बाढ़ और पूरे पर्यावरण के लिए खतरा पैदा होगा। इन समझौतों से भारत में जलवायु वित्त के नाम से विदेशी निवेश के बढ़ावे से देश के जल-जंगल-जमीन जैसे मूलभूत संसाधन ज्यादा से ज्यादा विदेशी कंपनियों के हाथों के बपोती बनते जाएंगे।

मोदी ने अपना प्रस्ताव रखते हुए जो पाँच बिंदु रखे हैं उनको उन्होंने पंचअमृत भी कहा है। इस सम्मेलन में 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को 30 प्रतिशत कट करने, 2030 तक पुनर वानिकीकरण, इन्फ्रास्टक्चर फॉर रेजिलेंट आइसलेंड स्टेट (आईआरआईएस), वन सोलर वन वर्ल्ड ग्रीड जैसे संकल्पों पर विभिन्न देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इन सब की जिम्मेदारी अब धीरे-धीरे विकासशील और गरीब देशों के मत्थे मढ़ी जा रही है।

दरअसल विकसित देश की मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के जिम्मेदार हैं। औद्योगिक क्रांति और उसके बाद पूरी दुनिया को अपने माल के निर्यात से इन देशों ने अकूत धन संपत्ति जमा की है। उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारी पैमाने पर जिंवाश्म ईंधन का इस्तेमाल इन्होंने ही शुरू किया था। उद्योगों के लिए बिजली, परिवहन और इसके लिए कोयला, पेट्रोल और डीजल इन्हीं पूंजीवादी देशों की उपज है। दुनिया के बाजार को अपने-अपने कब्जे में करने के लिए दो-दो विश्व युद्ध और बाद में मध्य एशिया की लड़ाइयां इन्हीं के देन है। 1850 से 2019 तक लगभग 2500 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड पैदा हुई। इसके लिए विकसित देशों के 18 प्रतिशत घर, 60 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। विकासशील और गरीब देशों में खनन, बाँध, जल विद्युत, थर्मल पावर जैसी तकनीक और निवेश का निर्यात कर इन देशों से भारी मात्रा में पूंजी लूट कर इन्होंने अपना विकास किया है। जब ग्लोबल वार्मिंग इनके दुनिया के अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है तो फिर यही साम्राज्यादी देश एक बार फिर गरीब देशों को लूटने का जाल बिछा रहे हैं।

कार्बनडाई आक्साईड से 80 गुणा खतरनाक होती है मीथेन गैस। ग्रीन गैस हाउस में इसका हिस्सा करीबन 17 प्रतिशत है। खेती, पशु और बाँध और जींवाश्म ईंधन इसके मुख्य स्रोत माने जाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी  ने 2030 तक 500 गिगावाट क्लीन एनर्जी का उत्पादन करने का संकल्प लिया जो अभी मात्र 100 गिगावाट है वहीं कार्बन उत्सर्जन में 1 खरब टन की कटौती करने की घोषणा की है जबकि भारत हर साल 3 खरब टन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन करता है जोकि 2030 में 40 खरब टन होगा।

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