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बिहार के गांवों में कोरोना का कहर: क्या बंद स्वास्थ्य केंद्रों को खोलने से सुधरेंगे हालात?

-डाउन टू अर्थ,

कुछ माह पहले बिहार में 1451 ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र बंद कर दिये गये थे, अब उन्हें खोला जा रहा है। मंगलवार, 18 मई को खुद राज्य के अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने यह घोषणा की है। उन्होंने कहा कि जब राज्य में कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो इन 1451 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को बंद कर इनके चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटरों में ड्यूटी के लिए तैनात कर दिया गया था। अब उन्हें वापस भेजकर इन केंद्रों को फिर से खुलवाया जा रहा है। मगर उनका यह बयान स्वास्थ्य सेवाओं के जानकार एवं विशेषज्ञों को पच नहीं रहा। इस फैसले पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

अपर मुख्य सचिव ने मीडिया को संबोधित करते हुए जानकारी दी थी कि इन 1451 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को 17 अप्रैल, 2021 को बंद कर दिया गया था। इस वजह से इन केंद्रों में ओपीडी समेत अन्य सेवाएं बंद थीं। ऐसी जानकारी है कि इन केंद्रों में 3000 आयुष चिकित्सक पदस्थापित थे और यहां का प्रभार एमबीबीएस डॉक्टरों के पास था।

अपर मुख्य सचिव और स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख प्रत्यय अमृत की इस घोषणा पर पहला सवाल तो यह उठ रहा है कि कोरोना काल में जब जगह-जगह अस्थायी किस्म के अस्पताल और कोविड सेंटर खोले जा रहे थे, सरकार ने इन्हें बंद करने का फैसला क्यों लिया। लोक स्वास्थ्य के मुद्दे पर लगातार सक्रिय रहने वाले मुजफ्फरपुर के चिकित्सक डॉ. निशिंद्र किंजल्क कहते हैं कि अगर सरकार के पास चिकित्सकों का अभाव था तो वे इन अस्पतालों को कुछ चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति कोविड सेंटरों में कर लेते। इन अस्पतालों को न्यूनतम स्वास्थ्य कर्मियों के सहारे चलने देते। आखिरकार ग्रामीण इलाकों में भी तो कोरोना फैल रहा है। यहां भी तो मरीजों को इलाज की जरूरत थी। इसके अलावा गैर कोविड मरीजों, खास तौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए तो इन अस्पतालों की सख्त जरूरत थी। ऐसे में इसे बंद करने का फैसला तो समझ से परे है।

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