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कोरोना लॉकडाउन: राहत शिविरों में रहने के बजाय पैदल ही निकले मज़दूर

-बीबीसी,

छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन के महीने भर बाद अब दूसरे राज्यों के मज़दूरों को राहत शिविरों में रखे जाने के बजाय उन्हें पैदल उनके घरों की ओर रवाना किया जा रहा है.

हर दिन बड़ी संख्या में मज़दूर ओडिशा और महाराष्ट्र की सीमा से छत्तीसगढ़ में दाख़िल हो रहे हैं और पैदल ही अपने राज्यों के लिये रवाना हो रहे हैं. राहत शिविरों में रहने वाले मज़दूर भी अब अपने राज्यों की ओर पैदल ही निकल पड़े हैं.

हालांकि सूरजपुर ज़िले के राहत शिविर में रखे गये दूसरे राज्यों के कुछ मज़दूरों के कोरोना से संक्रमित होने की ख़बरों के बीच, राज्य के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने बीबीसी से बातचीत में स्वीकार किया कि जो मज़दूर अपने राज्य जा रहे हैं, उन्हें सरकार रोक नहीं रही है.

जय सिंह अग्रवाल ने कहा, "हम मज़दूरों को रोक नहीं रहे हैं. जो जहां जाना चाहता है, उसे जाने दे रहे हैं. कल हमने कोरबा ज़िले से कुछ मज़दूरों को झारखंड की सीमा तक पहुंचवाया भी है."

लेकिन तेज़ गर्मी और बारिश के बीच सैकड़ों मज़दूर बोरे और थैलों में अपना पूरा वजूद समेटे, अपने-अपने घरों की ओर लौटने की उम्मीद में पैदल ही चले जा रहे हैं.

इधर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि राज्य में हज़ारों की संख्या में प्रवासी मज़दूर आ रहे हैं, किसी की रास्ते में मौत हो जा रही है तो कोई नदी पार करते बह जा रहा है.

डॉ. रमन सिंह ने बीबीसी से कहा, "सीमा में प्रवेश करने वाले मज़दूरों की मेडिकल जांच और वहीं उनके रहने-खाने का प्रबंध राज्य सरकार को करना चाहिये. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. सरकार की लापरवाही का ही नतीजा है कि महाराष्ट्र से चल कर राजनांदगांव तक पहुंचे मज़दूरों को सूरजपुर ज़िले में पहुंचा दिया गया और अब उनमें से 10 लोगों के कोरोना संक्रमित होने की बात सामने आ रही है."

1300 किलोमीटर पैदल चलने का हौसला
घरों की ढलाई में मिस्त्री का काम करने वाले बंगाल के मुर्शिदाबाद के गोइरीपुर गांव के रहने वाले हलीम शेख़ अपने साथी मज़दूरों के साथ सोमवार को नागपुर से पैदल निकले और मंगलवार को छत्तीसगढ़ पहुंचे.

32 साल के हलीम कहते हैं, "तीन महीने गांव में गुज़ारने के बाद नागपुर पहुंचा ही था कि चार दिन बाद लॉकडाउन हो गया. काम-धाम सब ठप्प. कुछ दिन तो सरकार से राशन मिला. उम्मीद थी कि कोई रास्ता निकलेगा. लेकिन जब दिक़्क़त होने लगी तो हमारे पास गांव लौटने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं था."

हलीम और उनके 21 साथी, थोड़े पैसे और बड़े हौसले के साथ महाराष्ट्र के नागपुर से पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद की लगभग 1300 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने का फ़ैसला कर के नागपुर से रवाना हो गये.

हलीम शेख़ और उनके साथियों ने बताया कि मंगलवार को जब वे छत्तीसगढ़ की सीमा में पहुंचे तो उन्हें सीमा पर उपस्थित पुलिसकर्मियों ने राजनांदगांव के राहत शिविर में खाना खिलाया. इसके बाद उन्हें वहां से रवाना कर दिया गया.

मंगलवार की दोपहर में जब रायपुर पहुंचे तो रायपुर में पुलिस ने उन्हें रोका और उन्हें एक बस में बिठा कर रायपुर के लाभांडी स्थित राहत शिविर में भेज दिया.

लाभांडी स्थित राहत शिविर का कामकाज देख रहीं मनजीत कौर बल कहती हैं, "पश्चिम बंगाल के 21 लोगों को लेकर पुलिस राहत शिविर में आई थी, जहां हमने उन्हें सूखा नाश्ता और पानी उपलब्ध कराया. इसके बाद पुलिसकर्मियों ने ही बताया कि ऊपर का आदेश है कि उन्हें ओडिशा की सीमा तक छोड़ दिया जाये."

मज़दूरों को पुलिस ने बस ड्राइवर के हवाले किया और बस वाले ने कुछ किलोमीटर दूर ले जाकर उन्हें बीच रास्ते में छोड़ दिया.

हलीम कहते हैं, "हमें ऐसी सड़क पर छोड़ दिया गया, जिसका कोई ओर-छोर ही नहीं था. कई घंटों तक चलने के बाद पता चला कि हम ग़लत रास्ते पर हैं. फिर किसी तरह हम दूसरे रास्ते पर पहुंचे."

बुधवार की शाम तक हलीम शेख़ और उनके साथ 600 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर किसी तरह झारसुगुड़ा तक पहुंचे थे.

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