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लॉकडाउन : जो घर पहुंचने के लिए 1274 किलोमीटर के सफर पर पैदल निकल पड़े हैं!

-सत्याग्रह,

सुरेश नौटियाल (बदला हुआ नाम) दिल्ली के एक नाइट क्लब में काम करते हैं. राजधानी में कोरोना वायरस के मामले बढ़ने पर बीते हफ्ते जब राज्य सरकार ने 31 मार्च तक नाइट क्लब बंद करने का आदेश दिया तो उन्होंने उत्तराखंड स्थित अपने गांव जाने की सोची. सुरेश ने दिल्ली के आईएसबीटी से बस पकड़ी और छह घंटे की यात्रा के बाद ऋषिकेश पहुंच गए.

लेकिन इसी बीच उत्तराखंड सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था. अब सुरेश नौटियाल ऋषिकेश में फंसे थे और गांव अब भी पौने दो सौ किलोमीटर दूर था. कोरोना वायरस संक्रमण की जांच के लिए स्थानीय बस अड्डे पर उनकी स्क्रीनिंग हो चुकी थी और वे आगे जाने के लिए आजाद थे. लेकिन इसके लिए कोई साधन नहीं था.

उनके जैसे कई दूसरे लोगों की भी यही हालत थी. इनमें से जिनके फोन की बैटरी बची थी वे बार-बार अपने रिश्तेदारों को फोन लगा रहे थे. ऐसे ही एक शख्स के किसी रिश्तेदार ने कहीं से एक प्राइवेट एंबुलेंस का जुगाड़ कर दिया. एंबुलेंस इस लिहाज से भी मुफीद थी कि उसे कोई रोकता नहीं है. बहुत चिरौरी करने पर सुरेश को भी उसमें जगह मिल गई. रास्ते में जब भी कोई पुलिस पोस्ट आता इनमें से एक मरीज बन जाता. इस तरह से किसी तरह वे अपने गांव पहुंच गए. बाद में उत्तराखंड सरकार ने इस तरह के लोगों के लिए विशेष बसों और जीपों की व्यवस्था भी कर दी.

बिहार के सुपौल जिले के रहने वाले सुधीर कुमार की किस्मत इतनी इच्छी नहीं रही. एक महीने पहले वे अपने 14 साथियों के साथ जयपुर के एक कोल्ड स्टोरेज में काम करने पहुंचे थे. लॉकडाउन का ऐलान हुआ तो मालिक ने उन्हें दो हजार रु देकर जवाब दे दिया. शहर में कर्फ्यू जैसे हालात थे. घबराकर वे और उनके साथी पैदल ही जयपुर से सुपौल के लिए निकल पड़े. 21 मार्च को चले ये सभी लोग 24 मार्च तक करीब 230 किलोमीटर की दूरी तय कर आगरा पहुंच गए थे. जयपुर से सुपौल 1274 किलोमीटर दूर है.

20-वर्षीय अवधेश कुमार की भी यही कहानी है. वे उत्तर प्रदेश के उन्नाव की एक फैक्ट्री में काम करते हैं. लॉकडाउन के चलते फैक्ट्री बंद हुई तो उन्होंने मंगलवार रात को ही 80 किलोमीटर की दूरी पर बसे बाराबंकी में अपने गांव की तरफ चलना शुरू कर दिया था. ऐसे ही चलते रहे तो वे गुरुवार सुबह घर पहुंच पाएंगे. उनका साथ देने के लिए 20 और बुजुर्ग और जवान भी हैं जो उन्नाव की उसी फैक्टरी में काम करते हैं.

चौथा किस्सा दिल्ली में दिहाड़ी पर काम करने वाले बंटी का है. वे भी अपने छोटे भाई, पत्नी और चार बच्चों समेत दिल्ली छोड़कर अपने गांव अलीगढ़ पैदल जा रहे हैं. उनका एक बच्चा तो 10 महीने का ही है. दिल्ली से बुधवार सुबह चले बंटी का कहना है, ‘यहां रुककर क्या पत्थर खाएंगे. गांव जाएंगे तो वहां तो रोटी-नमक मिल जाएगा.’ उनके मुताबिक अगर वे ऐसे ही चलते रहे तो कल शाम तक उनका परिवार अलीगढ़ पहुंच जाएगा.

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