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कोरोना वायरस का सबसे पहला टीका शायद जर्मनी में बने लेकिन पूरी दुनिया फिलहाल लगी इसी जुगत में है

-सत्याग्रह,

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और कुछ जानते हों या न जानते हों, शेखी बघारना खूब जानते हैं. कोरोना वायरस के कहर के बारे में 11 मार्च को उन्होंने बड़े ताव में कहा था कि उससे निपटने की ‘’जितनी अच्छी तैयारी अमेरिका ने कर रखी है, उतनी किसी और देश ने नहीं की है.’’ इससे पहले तक वे कह रहे थे कि यह चीन और यूरोप वालों का सरदर्द है. लेकिन जब अमेरिका में उससे संक्रमित लोगों का आंकड़ा 3000 को पार कर गया और 60 लोग इस दुनिया से विदा भी हो गये, तो उन्हें भी लगने लगा कि अब तो कुछ करना ही पड़ेगा. फिलहाल अमेरिका कोरोना वायरस का नया केंद्र हो गया है जिसने संक्रमण के 85 हजार मामलों के साथ चीन और इटली को पीछे छोड़ दिया है. वहां कोरोना वायरस के कारण मौतों का आंकड़ा 1200 के ऊपर पहुंच गया है.

इन हालात से निपटने के लिए अमेरिका अब तरह-तरह के हथकंडे अपना रहा है. जर्मन मीडिया के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले दिनों यह किया कि अपने सबसे विश्वस्त लोगों से कहा कि वे जर्मनी में ट्यूबिंगन शहर की टीके बनाने वाली एक नामी कंपनी ‘क्योरवैक’ से संपर्क करें. यह कंपनी कोविड-19 का टीका बनाने की दौड़ में संभवतः बहुत आगे है. ढेर सारे डॉलर का लालच दिखा कर ‘क्योरवैक’ से कहा गया कि या तो वह अपना टीका केवल अमेरिका को दे, या अपने वैज्ञानिकों को अमेरिका भेजे. वे अपना काम वहां पूरा करेंगे. ‘क्योरवैक’ कंपनी की ओर से कहा गया कि टीके के उपयोग या उत्पादन का अधिकार केवल अमेरिका को देने का अनुबंध करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है. इसका प्रश्न ही नहीं उठता.

जनवरी से टीके पर काम चल रहा है

जर्मन दैनिक ‘मानहाइमर मोर्गनपोस्ट’ के अनुसार, ‘क्योरवैक’ के सहसंस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी इंगमर होर ने इस दैनिक से कहा, ‘’हम पूरी दुनिया के लिए, न कि किसी एक देश के लिए टीका बनाना चाहते हैं.’’ उन्होंने बताया कि जनवरी महीने से ही इस टीके पर काम चल रहा है. इस कंपनी के एक दूसरे अधिकारी ने एक दूसरे जर्मन दैनिक से कहा कि ‘’अमेरिका या किसी अमेरिकी कंपनी द्वारा ‘क्योरवैक’ का अधिग्रहण करने या ख़रीद लिये जाने जैसी कोई बात नहीं है.’’ फ़्रांत्स-वेर्नर हास नाम के इस अधिकारी ने बताया कि उन्हें आशा है कि इस वर्ष के मध्य तक उनके टीके का क्लीनिकल परीक्षण शुरू हो जायेगा.

‘क्योरवैक’ जर्मनी के सरकारी ‘पाउल-एयरलिश संस्थान’ के साथ मिल कर काम कर रही है. यह संस्थान भी टीकों और दवाओं के लिए शोधकार्य करता है. जर्मनी के विज्ञान और शोध मंत्रालय की ओर से कहा गया कि वह भी ‘क्योरवैक’ को उसकी खोज के लिए धन दे रहा है. सारा शोधकार्य ‘सीआईपीए’(सेन्टर फ़ॉर इन्टरनैश्नल प्राइवेट एन्टरप्राइज़) नामक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन के अंतर्गत किया जा रहा है. ‘क्योरवैक’ को कोविड-19 का टीका बनाने का काम ‘सीआईपीए’ ने ही सौंपा है. यूरोपीय संघ के कार्यकारी आयोग की नयी प्रमुख जर्मनी की उर्ज़ुला फ़ॉन देयर लाइएन ने 16 मार्च को घोषित किया यूरोपीय संघ भी ‘क्योरवैक’ को आठ करोड़ यूरो के बराबर ऋण देगा.

‘जर्मनी बिकाऊ नहीं है’

जर्मनी के उद्योगमंत्री पेटर अल्टमायर ने अमेरिका के प्रलोभनों को ठुकराने के ‘क्योरवैक’ के साहसिक निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, ‘’यह एक ज़बर्दस्त निर्णय है. हम देखेंगे कि उसे सारी आवश्यक सहायता मिले. जर्मनी बिकाऊ नहीं है. बात जब बड़े महत्व की अधारभूत संरचानाओं की, राष्ट्रीय और यूरोपीय हितों की हो, तो हम ज़रूरी क़दम भी उठायेंगे.’’ जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी कहा कि जर्मन सरकार चाहती है कि नये प्रकार के कोरोना वायरस के विरुद्ध टीका और कोई दवा जर्मनी या यूरोप में ही बने. इस उद्देश्य से सरकार ‘क्योरवैक’ के साथ घनिष्ठ संपर्क में है.

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