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कोरोना संकट ने सबसे ज्यादा नुकसान जिन क्षेत्रों का किया है शिक्षा उनमें सबसे आगे है

-सत्याग्रह,

जुलाई का महीना नई कक्षा, नई किताब-कॉपियों की खुशबू के साथ नए बस्ते, यूनिफॉर्म और जूतों की रंगत और कुछ नए चेहरों से दोस्ती का मौसम होता है. बरसात की आमद कन्फर्म हो चुकने के बाद, इस सीलन-उमस भरे मौसम का मिज़ाज कुछ ऐसा हुआ करता है कि सालों पहले पढ़ाई खत्म कर चुकने वालों को भी इन दिनों स्कूल से जुड़ा नॉस्टैल्जिया रह-रह कर सताता है. लेकिन 2020 किसी भी और चीज से ज्यादा कोरोना वायरस का साल है, इसका असर गुजरे कई महीनों की तरह जुलाई पर भी है. अब जब जुलाई का पहला पखवाड़ा बीत चुका है, तब स्कूल और बच्चों से जुड़ी कुछ उन खबरों पर गौर किया जा सकता है जो पिछले दिनों देश भर में सुर्खियों का हिस्सा बनीं, मसलन –

पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए, ममता बनर्जी सरकार ने कई लॉज, स्टेडियम, रैनबसेरों समेत सरकारी स्कूलों को भी अस्पताल में बदलने के निर्देश दिए हैं. इसका सीधा मतलब है कि लंबे समय तक बच्चों की स्कूल में वापसी संभव नहीं है. आंध्र प्रदेश में सरकार ने 13 जुलाई से हफ्ते में एक दिन सरकारी स्कूलों को खोले जाने और ब्रिज कोर्स बनाए जाने की बात कही है. सिक्किम में जहां कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते सभी सरकारी और निजी स्कूलों को अनिश्चित समय के लिए बंद रखने का फैसला किया गया है, वहीं पहले से ही बाढ़ से जूझ रहे असम में शैक्षणिक कैलेंडर को आगे बढ़ा दिए जाने की बात कही जा रही है. इस बीच पंजाब सरकार निजी स्कूलों की फीस वसूली की चिंता ज्यादा करती दिखाई दे रही है तो राजस्थान में सिलेबस छोटा करने पर विचार किया जा रहा है. और महाराष्ट्र में केवल हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी के बच्चों के लिए स्कूल खोले जाने पर चर्चा हो रही है.

इन खबरों के जिक्र पर कोई भी कह सकता है कि यह तो होना ही था, कोरोना वायरस ने पढ़ाई को भी डिजिटल बना दिया है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे तो क्या वे इंटरनेट के जरिए अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. हो सकता है कि कुछ बच्चों, खासकर बड़े-महंगे, कॉन्वेंट-मिशनरी, अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह बात सही भी हो. लेकिन इसे लेकर भी काफी संशय की स्थिति है. इसके लिए कर्नाटक का उदाहरण दिया जा सकता है जहां ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर सरकार की स्थिति अभी साफ नहीं है. इसके अलावा सवाल यह भी है कि ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चे क्या सीख पा रहे हैं क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा और शिक्षण की अपनी चुनौतिया हैं. लेकिन यह बड़ा सवाल है, फिलहाल अगर सिर्फ इस पर बात करें कि कितने बच्चों तक लॉकडाउन के दौरान किसी भी तरह की शिक्षा और शिक्षण सामग्री पहुंच रही है तो कोई स्पष्ट या आधिकारिक आंकड़ा न होने के बावजूद यह पता लगाना बहुत मुश्किल नहीं है कि यह आंकड़ा बहुत छोटा ही है.

छोटे शहरों-कस्बों में बड़े कहे जाने वाले स्कूलों और बड़े शहरों के छोटे-मोटे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई अब खाना-पूर्ति भर रह गई है. लेकिन अगर हर जगह के सरकारी स्कूलों की बात करें तो उनके पहले से ही खराब हालात और भी बदतर होते दिखाई दे रहे हैं. इसका अंदाज़ा आगरा की कल्पना दुबे (बदला हुआ नाम) की बातों से लगता है, वे बताती हैं कि ‘बच्चे तो स्कूल नहीं आ रहे हैं. कहने के लिए कह सकते हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है लेकिन 100 में से सिर्फ 5 बच्चों के पास मोबाइल की सुविधा है. बाकियों के पास अगर है भी तो उनके मां-बाप के पास इतना पैसा नहीं है कि वे उसे रिचार्ज करवा कर रखें क्योंकि लॉकडाउन में सबके रोजगार बंद हो गए हैं. ऐसे में ऑनलाइन अगर कुछ हो रहा है तो वह है, मानव संपदा पर हमारी सर्विस बुक अपडेट किया जाना.’

कल्पना आगे बताती हैं कि ‘इस पर से मार यह है कि हमें रोज स्कूल जाना पड़ रहा है. मेरा स्कूल तो आगरा सिटी में ही है लेकिन बहुत सारे टीचर तो रोज बीमारी का खतरा लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट से कई-कई किलोमीटर दूर जाते हैं. इन दिनों सरकार ने कायाकल्प अभियान चला रखा है तो स्कूल बिल्डिंग में मेन्टेनेंस का काम भी चल रहा है. सिर्फ उसके लिए सभी शिक्षकों को रोज सुबह सात बजे से एक बजे तक जाकर स्कूल में बैठना है. बाकी बचे वक्त में राशन, किताबें या स्कॉलरशिप बांटना है. या फिर शारदा अभियान चलाना है जिसमें घर-घर जाकर स्कूल ना जाने वाले बच्चों की जानकारी जुटानी होती है.’

उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2018 में ऑपरेशन कायाकल्प शुरू किया था जिसके तहत स्कूल सहित आंगनबाड़ी केंद्र, एएनएम सेंटर, पंचायत भवनों की मरम्मत और सौंदर्यीकरण किया जाना था. लॉकडाउन के समय बच्चों के स्कूल ना आने के चलते सरकारी तबका इसे मौके की तरह देख रहा है और इस तरह के कामों को जल्द खत्म किए जाने पर जोर दिया जा रहा है. इसके साथ ही, शिक्षकों की भर्ती से जुड़े फर्जीवाड़े को रोकने के लिए शिक्षकों समेत अन्य सरकारी कर्मचारियों की ऑनलाइन जानकारी रखने के लिए हाल ही में मानव संपदा पोर्टल भी बनाया गया है. इन्हीं का जिक्र कल्पना अपनी बातचीत में करती हैं. वैसे तो, ये सभी काम जरूरी और सराहनीय हैं लेकिन सरकारी तबके के रवैये, पोर्टल के ठीक से काम न करने और कोरोना संकट के चलते ये शिक्षकों के लिए मुसीबत जैसे बन गये हैं. यानी, कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में इन दिनों शिक्षक कर बहुत कुछ रहे हैं लेकिन उनमें पढ़ाने शामिल नहीं हैं.

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