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कुछ लोगों का कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित होना हमारे लिए कितनी चिंता की बात होनी चाहिए?

-सत्याग्रह,

अगस्त और सितंबर में देश में कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित होने के तीन मामले दर्ज किए गए हैं. बीते महीने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव ने मीडिया को इसकी जानकारी देते हुए बताया था कि दोबारा कोरोना संक्रमण (कोविड रिइन्फेक्शन) का एक मामला अहमदाबाद में और दो मुंबई में पाए गए हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि आईसीएमआर ने देश में दोबारा संक्रमण के मामलों की पहचान के लिए 100 दिनों की समय सीमा भी तय कर दी गई है. यानी, अगर कोरोना संक्रमण ठीक होने के 100 दिनों बाद किसी को दोबारा संक्रमण होता है तो ही इसे कोविड पुनर्संक्रमण (रिइन्फेक्शन) का केस माना जाएगा. इस बातचीत में डॉक्टर भार्गव का यह भी कहना था कि 100 दिनों के बाद, पहले कोरोना संक्रमित हो चुके लोगों में एंटीबॉडीज (वायरस से लड़ने वाली कोशिकाएं) घटने लगती हैं जिसके कारण उन्हें दोबारा यह संक्रमण हो सकता है. इसलिए ऐसे लोगों को खुद को इम्यून मानने के बजाय मास्क लगाने, हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग जैसी सावधानियों का पालन बाकी लोगों की तरह ही करते रहना चाहिए.

हालांकि जानकार आईसीएमआर के इस निर्देश को बिना सोच-समझे लिया गया फैसला बता रहे हैं. इसके पीछे वे तर्क देते हैं कि दुनिया भर में महज 15-20 दिनों के बाद ही दोबारा कोरोना संक्रमण होने के मामले सामने आए हैं. भारत में ही, अगस्त में तेलंगाना में 2 और मुंबई में 4 ऐसे मामले देखने को मिल चुके हैं लेकिन चूंकि ये आईसीएमआर की 100 दिनों की सीमा में नहीं फिट होते हैं, इसलिए इन्हें रिइन्फेक्शन का मामला नहीं माना जा रहा है. महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ शुरूआती शोधों के आधार पर आईसीएमआर ने मान लिया है कि कोरोना संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज की उम्र दो-तीन महीने होती है और इसी के आधार पर 100 दिनों का कटऑफ घोषित कर दिया गया है. जानकारों के मुताबिक कोरोना एक नया वायरस है जिसके बारे में अभी भी लगातार नई जानकारियां सामने आ रही हैं और रिइन्फेक्शन इसमें सबसे नई बात है. इसलिए इस तरह के मामलों में फिक्स्ड कटऑफ सही आंकड़ों तक पहुंचने में बाधा साबित हो सकता है. वैज्ञानिकों की सलाह है कि कटऑफ पर निर्भर रहने के बजाय कोविड रिइन्फेक्शन के मामलों की पहचान के लिए, इस पर बारीक समझ विकसित करने और रिइन्फेक्शन को कंफर्म करने वाले मौजूदा तकनीकी उपायों को हासिल करने पर विचार किया जाना चाहिए.

कोविड रिइन्फेक्शन से जुड़ी सबसे शुरुआती खबर अगस्त में हांगकांग से आयी थी जहां एक मामले में साढ़े चार महीने बाद कोरोना संक्रमण फिर लौटा था. इसके बाद अगस्त और सितंबर में अमेरिका, भारत और यूरोप में दोबारा संक्रमण के मामले दर्ज किए गए. इस पर बात करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन का कहना था कि ‘एक बार ठीक होने के बाद भी कोरोना संक्रमण हो सकता है. लेकिन अच्छी बात यह है कि बहुत कम लोगों के साथ ही ऐसा हुआ है. दुनिया भर में अब तक महज दो दर्जन लोग ही दोबारा कोविड संक्रमण का शिकार हुए हैं.’

डब्ल्यूएचओ की वैज्ञानिक द्वारा बताए गए इन आंकड़ों पर कितना भरोसा किया जा सकता है, यह सोचने वाली बात होनी चाहिए. वह भी तब, जब भारत का उदाहरण सामने है जहां ठीक होने के बाद 100 दिनों तक होने वाले संक्रमणों को कोविड रिइन्फेक्शन के मामलों में नहीं गिना जा रहा है. इसके अलावा, यह बात भी ध्यान खींचने वाली हैं कि भारत में कोविड रिइन्फेक्शन की पहचान के लिए जहां 100 दिनों की समयसीमा रखी गई है, वहीं अमेरिका ने इसके लिए 90 दिन निर्धारित किए हैं. अन्य देशों के मामले में भी समय सीमा अलग-अलग हो सकती है, इसलिए डब्ल्यूएचओ के बयान के बावजूद यह कह पाना मुश्किल लगता है कि इस समय दुनिया भर में दोबारा कोविड संक्रमण के कुल कितने मामले हैं.

कोविड रिइन्फेक्शन पर बढ़ रही चिंताओं पर वैज्ञानिकों के एक तबके का कहना है कि कुछ मामलों के सामने आने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो रही है. वे कहते हैं कि कोरोना संक्रमण की जांच में अभी कई त्रुटियां हैं जो संक्रमण होने या ना होने की गलत सूचना दे सकती हैं. यानी किसी संक्रमित व्यक्ति में कोरोना वायरस के जीनोम बहुत कम रह जाने पर भी उसकी जांच रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है. ऐसे में कुछ दिनों में फिर कोविड-19 के लक्षण उभर सकते हैं. विषाणु विज्ञानी कहते हैं कि किसी को दोबारा संक्रमण हुआ है या नहीं, इस बात का पता केवल वायरस के जीनोम (जेनेटिक कोड) की सीक्वेंसिंग करके ही लगाया जा सकता है. इसकी तकनीक अभी बहुत सीमित पैमाने पर ही उपलब्ध है, इसलिए कोविड रिइन्फेक्शन के मामलों की संख्या बता पाना अभी व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है.

सौम्या स्वामीनाथन समेत दुनिया भर के कई वैज्ञानिक बताते हैं महामारियों के मामले में अक्सर ही दोबारा संक्रमण देखने को मिलता है. लेकिन ऐसा होने पर आम तौर पर इसके बहुत हल्के-फुल्के लक्षण ही उभरते हैं. तो फिर कोरोना वायरस से जुड़े कुछ मामलों में इसका गंभीर असर देखने को क्यों मिल रहा है, इस पर किसी शोध के अभाव में वैज्ञानिक अंदाज़ा लगाते हुए यह तो बताते हैं कि ऐसा एक ही वायरस के अलग स्ट्रेन्स से होने वाले संक्रमण की वजह से हो सकता है लेकिन उससे बचाव या इलाज का कोई तरीका फिलहाल वे नहीं सुझा पाते हैं. कुल मिलाकर, कोविड रिइन्फेक्शन की पहचान से लेकर इससे बचाव तक के बारे में, वैज्ञानिक तबका अभी कोई भी ठोस बात कहता नहीं दिख रहा है.

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