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एनसीआरबी के आंकड़े: दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या दर 18 से बढ़कर 24 फीसदी हुई

-गांव कनेक्शन,

आखिर क्यों दिहाड़ी मजदूर आत्महत्या करने के लिए विवश हो रहे हैं? मजदूर दिन रात कड़ी मेहनत तो करते हैं फिर भी उन्हें उनका सही पारिश्रमिक नहीं मिलता। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि भारत में वर्ष 2019 में आत्महत्या करने वाला हर चौथा शख्स दिहाड़ी मज़दूर था। लगभग समस्त आर्थिक कृया कलापों में मज़दूरों का विशेष योगदान होता है। किसी भी प्रकार का उद्योग हो, भवन या सड़क निर्माण हो बांध या पुल बनाना हो, शहर, गाँव, खेत खलिहान हर जगह इनकी मौजूदगी रहती है।

सफाई कर्मचारी, रिक्शा चालक, दर्जी,पशुपालक या फिर लोहार, बढ़ई हो, हर रूप में ये सर्वत्र विद्यमान हैं। इनके वजूद के बिना हर रोज के छोटे से छोटे या बड़े से काम की कल्पना ही नहीं की जा सकती। पर अफ़सोस कि इन्हे वह दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया जिसके वे हक़दार हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आकस्मिक मौत और आत्महत्या 2019 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि किसानों की आत्महत्या में हल्की गिरावट आई है लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या का प्रतिशत पिछले पांच वर्षों में 6 गुना बढ़ा है।

पिछले वर्ष के आंकड़े को देखें तो आत्महत्या से मरने वालों की कुल संख्या 1,39,123 में से 32,559 दिहाड़ी मज़दूर थे और प्रतिशत में इसे 23.4% आँका गया था। यानी कि खुद को मारने वाला हर चौथा इंसान दिहाड़ी मज़दूर है, जिनके बिना इस संसार की कल्पना ही नहीं की सकती। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB), भारतीय दंड संहिता व विशेष और स्थानीय क़ानून की देख-रेख में आंकड़े एकत्र करने और उस पर गहन विश्लेषण करने के लिए उत्तरदाई होता है।

एनसीआरबी के पिछले पांच वर्षों के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि आत्महत्या या खुदखुशी करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है, इनमें पुरुषों की संख्या अधिक है। वर्ष 2015 में आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों का प्रतिशत 17% (23,779) था, जो वर्ष 2016 में बढ़कर 19% (21,902) हो गया। 2017 में 22.1% (28,737) और 2018 में 22.4% (30,124) बढ़ा।

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