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कोरोना और सर्दी के बीच एम्स के बाहर रात गुजारने को मजबूर मरीज

-न्यूजलॉन्ड्री, 

राजधानी दिल्ली में स्थित देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में अच्छे व सस्ते इलाज की उम्मीद में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं. यहां आम आदमी ही नहीं बल्कि नेता, मंत्री और देश की जानी मानी हस्तियां भी इलाज के लिए अखिल भारतीय आयुविज्ञान संस्थान (एम्स) को प्रमुखता देती हैं. एक आम आदमी जो प्राइवेट अस्पताल का खर्च वहन नहीं कर सकता, वह एम्स को अपनी आखिरी उम्मीद के रूप में देखता है. लेकिन दूरदराज से इलाज के लिए आए मरीजों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. अभी दिल्ली में कोरोना के कहर और बढ़ती ठंड के बावजूद मरीज और उनके परिजन बाहर खुले में सोने को मजबूर हैं. देश के अलग- अलग हिस्सों से इलाज करवाने आए लोगों का रात में ठिकाना यहां एम्स मेट्रो स्टेशन, बस स्टॉप, फुटपाथ और अंडरपास ही है.

अस्पताल में रात गुजारने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण मजबूरी में इन लोगों में से किसी को बस स्टॉप पर तो किसी को मेट्रो स्टेशन के बाहर सोना पड़ रहा है. इन लोगों में कोई बिहार से इलाज करवाने आया है तो कोई राजस्थान, यूपी और बंगाल व अन्य राज्यों से. लेकिन अस्पताल और एम्स धर्मशाला में पर्याप्त जगह न होने के कारण इन लोगों को सर्दी में इस तरह रात गुजारनी पड़ रही है.

दरअसल कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए बीते 24 मार्च को एम्स में ओपीडी सेवाएं भी अस्थाई रूप से बंद कर दी गई थीं. ऐसा पहली बार हुआ था जब देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में ओपीडी विभाग को मरीजों के लिए बंद किया गया था. इससे मरीजों को ओर परेशानी का सामना करना पड़ा. कुल मिलाकर यहां रोजाना ही सैकड़ों लोग इसी तरह मेट्रो स्टेशन और बस स्टॉप के बाहर खुले में सोते हैं. और खाने के लिए दानदाताओं और एनजाओ पर निर्भर हैं, जो यहां आकर खाना बांट जाते हैं.

कोरोना वायरस और बढ़ती ठंड के बीच देश के कोने-कोने से आए ये लोग कैसे रात गुजार रहे हैं. हमने एम्स जाकर इसे जानने की कोशिश की. शाम लगभग 6 बजे जब हम यहां पहुंचे तो काफी चहल-पहल थी. एम्स की तरफ जाने के लिए हमें अंडरपास से गुजरना था. जब हम सीढ़ियों से उतर कर अंडरपास पर पहुंचे तो वहां दुकानों के बीच सैंकड़ों की तादाद में मरीज और उनके रिश्तेदार जमीन पर कपड़ा बिछाए लेटे हुए थे. कोरोना और सोशल डिस्टेंसिंग की वहां शायद ही किसी को परवाह थी. क्योंकि उससे पहले शायद उन्हें अपने रात गुजारने की परवाह थी. जो आमतौर पर इसी तरह सिकुड़ते, जागते और सामान चोरी के डर में आधी-अधूरी नींद लेते हुए गुजरती है. दूर दराज से आने वाले उन सैंकड़ों लोगों का यही ठिकाना था जो दिल्ली जैसे शहर में किराए पर नहीं रह सकते.

बिहार के दरभंगा से आए 45 साल के दिनेश मंडल अंडरपास में कंबल ओढ़ कर लेटे हुए थे. पास में ही उनकी पत्नी शीला देवी बैठी हुईं थीं. पेट की बीमारी से परेशान दिनेश 15 दिन पहले एम्स में इलाज कराने आए थे. तब से ये अंडरपास ही उनका रात का ठिकाना है. दिनेश का कहना है, “हमने रैन बसेरे में सोने के लिए जगह मांगी थी मगर वहां जगह नहीं मिली. कीमती सामान सिर के नीचे रख लेते हैं और जब सब सो जाते हैं तब सोते हैं, जिससे सामान चोरी न हो जाए. जब इलाज करा कर थक गए तब एम्स आए हैं.”

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