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दिल्ली दंगा: खुद को गोली लगने की शिकायत करने वाले साजिद कैसे अपने ही मामले में बन गए आरोपी

-न्यूजलॉन्ड्री, 

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कर्दमपुरी इलाके में एक किराए के कमरे में 34 वर्षीय साजिद खान अपनी बीमार पत्नी और तीन साल की अपाहिज बेटी के साथ रहते हैं. संकरी सीढ़ियों से गुजरते हुए हम उनके कमरे में पहुंचे तो उनकी पत्नी एक कोने में बैठकर सिलाई का काम कर रही थीं. दंगे के दौरान गोली लगने के बाद साजिद को डॉक्टर ने मेहनत का काम करने से मना कर दिया है. डॉक्टर्स की मनाही के बावजूद उन्होंने अपना पुराना काम, ठेला चलाने की कोशिश की, लेकिन उनसे हो नहीं पाया. वे थक जाते थे, दर्द बढ़ जाता था. इस कारण उनका पुराना काम तो छुट गया जिसके बाद कभी-कभार रंग-रोगन का काम मिल जाता है. ऐसे में परिवार को चलाने में उनकी पत्नी की सिलाई से हुई कमाई ही एक बड़ा सहारा है.

साजिद खान को दंगे के दौरान 25 फरवरी को पेट में गोली लगी थी. गोली लगने की घटना के पांच दिन बाद 2 मार्च को उन्होंने वेलकम थाने में एफआईआर दर्ज कराई, लेकिन आगे चलकर पुलिस ने दूसरे और आरोपियों के साथ-साथ साजिद को भी उनकी एफआईआर में आरोपी बना दिया. हालांकि वे जेल तो नहीं गए. उन्हें पुलिस थाने से ही जमानत मिल गई, लेकिन उसके बाद कोर्ट की भाग दौड़ ने उन्हें बर्बादी की राह पर लाकर खड़ा कर दिया.

साजिद पेट में गोली का निशान दिखाते हुए कहते हैं, ‘‘23 और 24 फरवरी को बवाल हुआ था. 25 फरवरी की सुबह सबकुछ शांत था तो मैं ठेला लेकर निकल गया. जब वापस लौट रहा था तो मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास पत्थरबाजी हो रही थी. मौजपुर-बाबरपुर मेट्रो स्टेशन की तरफ से एक भीड़ मेरे पीछे दौड़ी तो मैं अपना ठेला छोड़कर श्मशान घाट की तरफ भागा. तभी मेरी पीठ में कुछ लगा और मैं बेहोश होकर गिर गया. फिर कुछ लोग मुझे उठाकर पास के अस्पताल में ले गए. वहां होश आने पर मुझे पता चला की गोली लगी है. मैंने पांच दिनों तक उसी डॉक्टर की दवाई खाई.’’

साजिद आगे कहते हैं, ‘‘पांच दिन बाद कुछ स्टूडेंट आए और उन्होंने बोला तो मैं सेंट स्टीफेंस अस्पताल गया. वहां अस्पताल वालों ने पुलिस को बुलाया. जो मैं आपको बता रहा हूं, वहीं बात उनको बताई. मैंने किसी को गोली चलाते देखा नहीं था तो मैं कैसे कह देता कि हिंदू या मुस्लिम लोगों ने गोली चलाई. मेरा ठेला तक वापस नहीं मिला और उल्टा एक दिन पुलिस वालों ने मुझे ही दंगे में शामिल होने का दोषी बता दिया.’’

साजिद कहते हैं, ‘‘मैं उनसे कहता रहा कि जिनकी दुकान पर मैं ठेला चलाता हूं, आप उनसे बात कर लीजिए, लेकिन पुलिस ने मेरी एक नहीं सुनी. मुझे पूरे दिन थाने में बैठाए रखा. आज भी मैं कोर्ट में आता जाता हूं.’’

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