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क्या दिल्ली के रैनबसेरों में मजदूर ठीक-ठाक से रह रहे हैं?

-न्यूजलॉन्ड्री,

राष्ट्रीय राजधानी में काम के अवसरों पर ताला लगते ही मजदूरों की बड़ी संख्या वापस अपने गांव-कस्बों में पहुंच चुकी है. लेकिन कुछ ऐसे भी मजदूर परिवार थे जो पुलिसिया सख्ती के कारण दिल्ली की सीमा को भेद नहीं पाए. आखिर यह सभी कहां हैं और कोरोना विषाणु से भयभीत इस दुनिया में उनके लिए क्या इंतजाम हो पाए हैं?

"सर, यह रैनबसेरा काट रहा है? दो दिन हो गए. घर-परिवार साथ हो तो अलग चीज होती है. यहां से न बाहर निकल सकता हूं और न ही मुझे जाने दिया जा रहा है. मैं यही नहीं समझ पा रहा कि सड़क पर अकेले दिल्ली से लखनऊ तक पैदल चलूंगा तो कैसे किसी को कोरोना हो जाएगा? ऐसे ही 14 अप्रैल तक यहां रुका रहा तो खुद ही बहुत बीमार पड़ जाऊंगा."

यह बातें 24 वर्षीय मोहम्मद यूनुस ने कहीं. वे लखनऊ के निवासी हैं औरदिल्ली में ड्राइवर का काम करते हैं. अब उन्हें पूर्वी दिल्ली स्थित गाजीपुर लैंडफिल साइट के पास सी ब्लॉक-192 में बने एक रैनबसेरे में रोका गया है. यूनुस 29 मार्च को आनंद विहार के रास्ते लखनऊ पैदल जाने वाले थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें डीटीसी बस में बिठाकर यहां छोड़ दिया.

इसी गाजीपुर स्थित रैनबसेरे में 70 से अधिक लोगों को लॉकडाउन की अवधि तक रोकने के लिए पुलिस के जरिए भेजा गया है. यहां रुके 50 से अधिक पुरुष, महिलाएं, बच्चे मध्य प्रदेश के हैं. जबकि 15 से अधिक उत्तराखंड और कुछ उत्तर प्रदेश के हैं. हमने रैनबसेरे में पहुंचकर यह पाया कि इन सभी लोगों को रैनबसेरे के दो बड़े कमरों में रोका गया है. टाट के बोरे हैं और उसी परसभी को लेटना है. कुछ फर्श पर भी लेटे हैं तो कुछ के पास अपनी चटाई है. बच्चे चहलकदमी कर रहे हैं. कुछ बुजुर्ग और जवान मजदूर दरवाजे पर ही खड़े होकर समय काट रहे हैं. उनकी मनोदशा खुद को एक चारदीवारी में कैद पाती है.

बाहर से लैंडफिल साइट से आती बदबूदार हवा के कारण भी वे घुटन महसूस करते हैं. कमरे में सोशल डिस्टेंसिंग का कोई खयाल नहीं है. कुछ के मुंह पर मॉस्क है तो कुछ ने अपने कपड़ों से ही मुंह ढंक रखे हैं. महिलाएं एक-दूसरे के बेहद नजदीक हैं और बेपरवाह बातचीत में व्यस्त हैं. सब एक दूसरे के सामान को बिना झिझक छू रहे हैं. हाथ धोने को न सेनेटाइजर है, नही साबुन. इनमें से एक भी व्यक्ति की स्क्रीनिंग नहीं हुई और ना ही किसी तरह की मेडिकल जांच की गई है.

इन रैनबसेरों की जिम्मेदारी दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड की है. बोर्ड के अधीन समूची दिल्ली में कुछ आरसीसी, कुछ अस्थायी, पोर्टा केबिन और टेंटवाले करीब 225 रैनबसेरे हैं. कोरोना संक्रमण के दौरान मजदूरों को रोकनेके लिए एक मीटर के फासले के साथ इनकी व्यक्ति क्षमता का आकलन भी किया गया है. इस आधार पर इन रैनबसेरों में 23,478 लोगों को रुकवाया जा सकता है. यदि दिल्ली से पलायन करने वाले लाखों लोग यहीं रुक जाते तो शायद यह रैनबसेरे उनकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होते.

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