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धारावी: मुंबई के हॉटस्पॉट में कोरोना कंट्रोल की कहानी

-द क्विंट,

जब अप्रैल और मई में धारावी में हर दिन एक मौत और दो दर्जन से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव केस लगातार सामने आ रहे थे, तब यह महाराष्ट्र सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया था. हालांकि अब यहां स्थिति में थोड़ा सा सुधार होने लगा है. कोविड-19 के इस हॉटस्पॉट धारावी से जून के पहले हफ्ते में कोरोना से मौत का एक भी मामला सामने नहीं आया.

मई 2020 में सामने आए 43 केस के मुकाबले, जून के पहले हफ्ते में हर दिन औसतन 27 केस ही सामने आए हैं. आठ जून को धारावी से 12 केस रिकॉर्ड किए गए, जबकि सात जून को 13 केस सामने आए. हालांकि नौ जून को यहां 26 नए केस सामने आए, जिनमें दो की मौत भी हो गई.

लेकिन धारावी के मामले में बीएमसी के अधिकारियों की तारीफ करनी होगी, जिन्होंने मामले सामने आने के तुरंत बाद ही स्क्रीनिंग और लोगों के आइसोलेशन का काम शुरू कर दिया.

जी नॉर्थ वार्ड के बीएमसी असिस्टेंट म्युनिसिपल कमिश्नर किरण दिघावकर का कहना है कि प्रशासन ने शुरुआत में इलाके में रहने वालों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी. इसके साथ ही हम हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे क्वॉरन्टीन सेंटर आदि का निर्माण भी कर रहे थे.

“हमने शुरुआत से ही क्वॉरन्टीन सेंटर के लिए स्कूलों का अधिग्रहण कर लिया। हमने धारावी म्युनिसिपल स्कूल, मनोहर जोशी विद्यालय का अधिग्रहण किया। हमने स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स और दूसरी अन्य चीजों का भी अधिग्रहण किया। इसके अलावा अप्रैल के दूसरे हफ्ते में जब हर दिन 16 से 20 मामले आ रहे थे, तब हमने अस्पतालों का अधिग्रहण किया.”

धारावी के 2.5 वर्ग किलोमीटर के घने इलाके में तकरीबन 15 लाख लोग रहते हैं. इसमें करीब 1,830 लोग कोरोना पॉजिटिव हुए, जबकि 71 की जान गई है. जब सबसे पहले एक अप्रैल को इलाके के बलिगा नगर में एक 56 वर्षीय शख्स कोराेना पॉजिटिव मिला, तब ही प्रशासन के लिए यह एक तरह से वेकअप कॉल था.

एक के बाद एक मौतें हो रही थीं, जिसके बाद बीएमसी ने स्क्रीनिंग में तेजी ला दी. संपर्क के आधार पर लोगों को आइसोलेट किया गया. बीएमसी के आंकड़ों के मुताबिक, 7 जून तक धारावी में करीब 3,60,000 लोगों की स्क्रीनिंग की गई. हाई रिस्क इलाकों को सील किया. तकरीबन 8,500 लोगों को प्रशासन के क्वॉरन्टीन सेंटर भेजा गया. वहीं 38,000 लोगों को उनके घर में ही क्वॉरन्टीन किया गया.

महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार उत्तरे ने बताया कि संदिग्ध मरीजों की टेस्टिंग करने से प्रशासन का काम आसान हुआ.

“सबसे पहले स्थानीय निजी डॉक्टरों या आम डॉक्टर या यूं कहें कि फैमिली डॉक्टरों ने ऐसे मरीजों को जांचा, जिन्हें बुखार या खांसी या सांस से जुड़े लक्षण हों। क्लीनिक में ही इन मरीजों के आगे के ट्रीटमेंट के लिए छंटनी की गई। मरीजों को बीएमसी के क्लीनिक में कोरोना की जांच के लिए भेजा गया।’
डॉ. शिवकुमार उत्तरे, अध्यक्ष (महाराष्ट्र मेडिकल कांउसिल), सदस्य(नेशनल मेडिकल कमिशन)

धारावी के इलाकों में पिछले 35 सालों से काम कर रहे डॉ. अनिल पचनेकर भी डाॅ. उत्तरे के दावों का समर्थन करते हैं. डॉ. पचनेकर के अनुभव से धारावी के हर घर में स्क्रीनिंग और कोविड-19 के टेस्ट संभव हो सके. इस दौरान वह मुख्य भूमिका में थे. उन्होंने बताया कि हमने धारावी में बहुत मेहनत की. शुरुआती चरणों में कई कदम उठाए गए, इसलिए संक्रमण के केस में कमी आई.

घर-घर जाकर स्क्रीनिंग करते बीएमसी के कर्मचारी
डॉ. पचनेकर ने बताया, “करीब 15 दिन पहले तक हम मरीजों की जांच कर रहे थे. तब उनका ऑक्सीजन लेवल 90% से नीचे था. यह लेवल बेहद जोखिमभरा होता है. हमने इसी तरह 60%, 65 से 80 और 85% ऑक्सीजन लेवल वाले मरीज भी देखे, लेकिन अब बीते हफ्ते से स्थिति में सुधार है. मरीजों में ऑक्सीजन लेवल में 93% तक पहुंचा है. यह दिखाता है कि धारावी में काेरोना वायरस केस में कमी आ रही है. यह सब हमारे डॉक्टर और उनकी रात-दिन मेहनत का नतीजा है.”

बीएमसी की ओर से धारावी के रहवासियों को हाथों और वॉशरूम को सैनिटाइज करने के लिए जागरूक किया जा रहा है. पब्लिक टॉयलेट को सैनिटाइज करने के निर्देश दिए जा रहे हैं. ऐसे में डॉक्टर्स ने भी इलाके में काेरोना के मामलों में कमी लाने के लिए बड़ी भूमिका अदा की है.

बीएमसी और निजी क्लीनिक में तालमेल
अप्रैल में बीएमसी ने स्थानीय मरीजों के इलाज के लिए तीन अस्पताल लिए थे। घर-घर जाकर स्क्रीनिंग करने के अलावा क्लीनिक भी तैयार कराए। जहां अब तक 3,200 से ज्यादा लोगों की जांच की जा चुकी है। लेकिन कोविड-19 मरीजों की पहचान करने और उनके इलाज की प्रक्रिया में इलाके के निजी डॉक्टरों और क्लीनिकों ने तालमेल बनाया।

डॉ. शिवकुमार उत्तरे ने बताया कि पीपीई किट की कमी के कारण शुरुआत में प्राइवेट क्लीनिक के डॉक्टर इलाके में जाने से डर रहे थे. लेकिन बाद में सब ठीक हो गया. बीएमसी के मुताबिक, सात जून तक धारावी में नौ डिस्पेंसरी और 350 प्राइवेट क्लीनिक हैं.

“इसका फायदा ये हुआ कि एक बार क्लीनिक खुलने के बाद स्थानीय लोग, जो इन डॉक्टरों को सालों से जानते हैं, इनके पास बेहिचक जा रहे हैं। इन लोगों को हल्का बुखार या दूसरा कोई लक्षण दिखाई देता है तो वह डॉक्टर से संपर्क करते हैं। इससे हमारे सदस्यों को बहुत आसानी होती है और वह आगे की जांचों के लिए इन मरीजों को संबंधित अधिकारियों के पास भेज देते हैं।’

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