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वेतन में कटौती, ‘फीस मिलने में मुश्किलें आ रहीं’—कोविड का लंबा खिंचना निजी स्कूलों की चिंता का सबब बना

-द प्रिंट,

कोविड महामारी के कारण पिछले करीब एक साल से अधिक समय से स्कूल बंद हैं, और कक्षाएं ऑनलाइन लग रही हैं, इससे देशभर में शैक्षणिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ा है—और ऐसा नहीं है कि इसका खामियाजा अकेले छात्रों को भुगतना पड़ रहा है.

इससे निजी स्कूल विशेष रूप से प्रभावित हुई हैं, और कई स्कूलों के लिए तो अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करना भी मुश्किल हो गया है. लागत घटाने के उपायों के तहत कुछ स्कूलों ने अन्य कर्मचारियों के अलावा खेल और आर्ट्स कला जैसी पाठ्य संबंधी और पाठ्यक्रम से इतर गतिविधियों से जुड़े शिक्षकों की सेवाएं ‘अस्थायी रूप से’ समाप्त कर दी हैं.

दिप्रिंट ने जिन स्कूलों से बात की उन्होंने फंड की इस कमी के लिए राज्य सरकारों के उन विभिन्न दिशा-निर्देशों को जिम्मेदार ठहराया जो फीस कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किए गए थे कि छात्रों और उनके माता-पिता से उन सुविधाओं के लिए शुल्क न वसूला जाए जिनकी वर्चुअल कक्षाओं के कारण स्कूलों को जरूरत नहीं है.

अधिकांश राज्यों ने स्कूलों को निर्देश दिया है कि अभिभावकों से केवल ट्यूशन फीस वसूलें और परिवहन शुल्क, डेवलपमेंट फी और एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टीविटीज के लिए कोई शुल्क न लें.

हालांकि, कई स्कूलों ने कहा कि सिर्फ ट्यूशन फीस ही लेना भी एक चुनौती बना हुआ है, खासकर दूसरे साल भी महामारी जारी रहने के कारण.

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित ओडीएम पब्लिक स्कूल के निदेशक स्वॉयन सत्येंदु ने दिप्रिंट को बताया कि स्कूल की देनदारी बढ़ गई है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे मामले में बैड लोन या दूसरे शब्दों में डिफॉल्ट अमाउंट तेजी से बढ़ा है. हमारे पास लागत घटाने के हरसंभव उपाय करने अलावा और कोई चारा नहीं है. महामारी लगातार दूसरे वर्ष जारी रहने से हम अभिभावकों से फीस लेने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.’

उन्होंने कहा कि इसका खामियाजा शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है, जो दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. लेकिन पिछले दो वर्षों से वेतनवृद्धि तो छोड़िए उन्हें अपना वेतन भी ठीक से नहीं मिल पा रहा है.

कई स्कूलों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें न केवल अपने कर्मचारियों को भुगतान करना है, बल्कि कुछ ऊपरी खर्च और रखरखाव संबंधी खर्चों को भी वहन करना है, भले ही परिसर का उपयोग हो या नहीं.

ऑनलाइन कक्षाओं ने भी कुछ स्कूलों पर खर्च का बोझ बढ़ाया है, क्योंकि स्कूल प्रशासन को उन शिक्षकों के लिए लैपटॉप खरीदने पड़े और इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए भुगतान करना पड़ा, जिसके पास ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं था.

दिप्रिंट ने देशभर के तमाम निजी स्कूलों से बात की और उन सभी ने एक ही बात कही—वित्तीय प्रबंधन इस समय एकदम दुरूह कार्य हो गया है.

निजी स्कूलों को अब तक थोड़ी-बहुत राहत अदालतों से ही मिली है.

इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के स्कूलों को शैक्षणिक सत्र 2020-21 में अभिभावकों से 100 प्रतिशत शुल्क वसूलने की अनुमति दी, जो कि 2019-20 सत्र के शुल्क के बराबर था.

हालांकि बाद में 3 मई को शीर्ष कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जो सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं, उनके हिसाब से स्कूल 15 प्रतिशत की कमी के साथ फीस जमा कर सकते हैं, वैसे बाकी 85 प्रतिशत राशि सिर्फ ट्यूशन फीस से अधिक है जिसे महामारी के दौरान ज्यादातर निजी स्कूल को लेने की अनुमति मिली थी.

सुप्रीम कोर्ट की नजीर के आधार पर कुछ हाई कोर्ट, जैसे दिल्ली हाईकोर्ट ने भी निजी स्कूलों को अभिभावकों से ट्यूशन फीस से कुछ ज्यादा फीस लेने की अनुमति दे दी.

हालांकि, देशभर के सभी निजी स्कूलों को इस तरह की राहत नहीं मिली है.

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