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बनारस के मुसहर गांवों में चिंता का सबब बन रहा है कुपोषण का दोहरा बोझ

-जनपथ,

आर्थिक मशीनरी की विफलता के कारण बच्‍चों के अस्तित्व, स्वास्थ्य और पोषण पर कोविड-19 का प्रभाव व्यापक रहा है। वाराणसी जिले के बड़ागांव प्रशासनिक ब्लॉक के अन्‍नाई और पड़ोसी गांवों में पाया गया कि वहां के निवासी दलितों के बीच सबसे ज्यादा हाशिये वाले मुसहर समुदाय के बच्चे आम तौर से कुरकुरे, चिप्स और क्रीम बिस्कुट सहित सस्ते पैकेज्ड खाद्य पदार्थ खाते हैं, जिनमें नमक और चीनी का स्तर अधिक होता है। ज्‍यादा नमक, चीनी और वसा के स्तर के साथ अनियमित और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड पैकेज्ड खाद्य पदार्थों ने कुपोषण के दोहरे बोझ को बढ़ाने का काम किया है और असंचारी रोगों के प्रति (एनसीडी) उनकी संवेदनशीलता में वृद्धि की है। खासकर युवा माताएं इस बात से ज्‍यादा चिंतित हैं कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों को लेकर उनके बच्चों की लत जिगर की बीमारियों का कारण बन रही है जिसके कारण उनके दिमाग कमजोर हो रहा है और उनमें हताशा और अवसाद घर कर रहा है।

अन्‍नाई गांव की मुसहर बस्‍ती में 56 परिवार हैं जो दासता की हालत में ईंट भट्ठों में काम करते थे। अब वे बटाई पर खेती करते हैं। सामाजिक समूहों के हस्तक्षेप को इस बात का श्रेय जाता है कि जिन लोगों को कभी चूहा पकड़ने वाला कह के कलंकित किया जाता था और जिनके साथ छुआछूत बरती जाती थी, आज वे चार बिस्वा (5400 वर्ग फुट) भूमि के मालिक हैं। इनके जीवन में आया बदलाव साफ दिखता है।

इसके बावजूद 25 साल की सविता, जिनका दो साल का एक बेटा और पांच साल की बेटी अंशि‍का है, कहती हैं, ”मेरी बेटी कुरकुरे के लिए रोती थी और तरह-तरह के नाटक करती थी। उसकी नानी और दादी उसे चुप कराने के लिए एक दिन में 14 पैकेट कुरकुरे खिला देती थीं। फिर पीएचसी के डॉक्टरों ने मुझे उसको कुरकुरे खिलाने से रोकने की सलाह दी।वह अभी बोल भी नहीं पाती और हमेशा अपनी दादी की गोद से चिपकी रहती है।”

अंशिका गंभीर रूप से कुपोषित थी। उसे लंबे समय से बुखार आ रहा था। कुरकुरे की लत ने उसके मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर असर डाला है। पहले वह बोलती थी, लेकिन अब वह सुन्‍न पड़ी रहती है और दिन भर रोती है।” उसकी दादी शमा कहती हैं, “जन्‍म के समय वह गंभीर रूप से कुपोषित थी और ज्‍यादा कुरकुरे खाने ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बना दिया है। वह दिन भर रोती रहती है और मेरी गोद से तब तक नीचे नहीं उतरती है जब तक मैं उसे बिस्कुट या टॉफी न दे दूं। मैं जानती हूं कि यह ठीक नहीं है, लेकिन मैं क्या करूं?”

अंशिका की हालत देखकर सविता ने अपने दो साल के बेटे को डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से दूर रखा है, चाहे वह कुरकुरे हों, चिप्स हो या बिस्कुट। “मेरे बेटे को प्रोटीन और वसा की जरूरत है तो मैं उसे एक अंडा रोज़ खिलाती हूं। वह भी कम वजन का पैदा हुआ था, लेकिन अब वह सामान्‍य है।

27 वर्षीय संतरा बताती हैं:

मेरी देवरानीअपने डेढ़ साल के बेटे आकाश को रोज़ कुरकुरे के 10 पैकेट खिलाती थीं। रोज़ कुरकुरे खाने से उसका लिवर खराब हो गया और लंबे समय तक डायरिया से पीड़ित होकर वह मर गया।

स्‍वास्‍थ्‍य जर्नल लैंसेट में प्रकाशित 16 दिसंबर, 2019 की रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण का दोहरा बोझ हमारे सामने अल्‍पपोषण (रुग्‍णता और कम वजन) और अतिपोषण (अधिक वजन और मोटापे) के मिलेजुले रूप में सामने आता है और यह जनसंख्या के सभी स्तरों- देश, शहर, समुदाय, परिवार और व्यक्तियों में देखा जा सकता है।” इस  रिपोर्ट में यह पता लगाया गया है कि यह दोहरा कुपोषण कैसे कम आय और मध्यम आय वाले देशों को प्रभावित कर रहा है

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