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इस 22 अगस्त से दुनिया एक बार फिर से पृथ्वी की लूट-खसोट में लग गई है

-सत्यहिंदी,

दुनिया के लगभग हर देश की सरकारें करों आदि से होने वाले अपने राजस्व से अधिक ख़र्च करती हैं. अपने अतिरिक्त ख़र्च के लिए उन्हें ऋण लेने पड़ते हैं. उदाहरण के लिए, भारत की सरकारों द्वारा लिए गये ऋण, भारत के हर नागरिक पर इस समय औसतन 1,400 डॉलर से भी अधिक बैठते हैं. एक डॉलर इस समय लगभग 75 रूपये के बराबर है.

घाटे के बजट की ही तरह दुनिया अपने प्राकृतिक संसाधनों को अपनी औकात से अधिक ख़र्च कर रही है! लेकिन यह खर्चा वह कोई कर्ज लेकर नहीं चला रही हैं. हम इसे पृथ्वी से ही इस तरह से वसूल रहे हैं जैसे अपना घाटा कम करने के लिए कोई देश जनता को इतने करों से लाद दे कि उसके पास ठीक से खाने तक के पैसे न बचें. यानी कि हर वर्ष दुनिया कई-कई महीनों के बराबर पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का अतिरिक्त दोहन करती है! इस जबर्दस्ती की उगाही की कीमत अंततः कभी न कभी और किसी न किसी रूप में हमें देनी ही होगी.

संसाधनों के दोहन की समय-सीमा

इस वर्ष शनिवार, 22 अगस्त वह दिन था, जब दुनिया पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का इस साल का कोटा लांघ गयी. इसके बाद अब 2020 के बाक़ी दिनों और महीनों में पृथ्वी की नोच-खसोट का समय शुरू हो गया है. दूसरे शब्दों में, 22 अगस्त वह दिन था, जब हम पृथ्वी-वासियों ने अपने जीने-रहने के लिए प्रकृति से मिलने वाले सारे आवश्यक संसाधन सवा चार महीने पहले ही खपा दिये. ये इतने संसाधन थे जिन्हें पैदा करने के लिए पृथ्वी को पूरा एक वर्ष चाहिये. इस दौरान हमने इतना प्रदूषण - खासकर कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस - हवा में छोड़ा जिससे ज्यादा को एक साल में सोखने की क्षमता हमारी धरती और उसकी पर्यावरणीय व्यवस्था में नहीं है.

ग़नीमत यह रही कि कोरोना वायरस के विश्वव्यापी प्रकोप ने दुनिया भर में आर्थिक-औद्योगिक गतिविधियों को जिस तरह और जितने समय तक पंगु बनाए रखा, उसकी कृपा से पृथ्वी का यह दोहनकाल, 2020 के पूर्वानुमान से क़रीब साढ़े तीन महीने देर से शुरू हुआ. कोरोना वायरस का प्रकोप यदि नहीं होता, तो मूल गणना के अनुसार, अंग्रेज़ी में “अर्थ ओवरशूट डे” या “इकोलॉजिकल डेट डे” कहलाने वाला यह दिन, जिसे हम हिंदी में “प्राकृतिक संसाधन सीमालंघन दिवस” कह सकते हैं, तीन मई को पड़ता. पिछले और उससे पिछले वर्ष यानी 2019 और 2018 में यह दिन 29 जुलाई को पड़ा था.

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