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भारत का वित्त संकट टैक्स रेवेन्यू के 12.5 प्रतिशत गिरने से और बढ़ेगा

-द प्रिंट,

इस सप्ताह के शुरू में जो आंकड़े जारी किए गए वे जीएसटी के मद में अगस्त माह में हुई आय में गिरावट दर्शाते हैं. टैक्स से होने वाली आय में कमी का अनुमान लगाया भी जा रहा था. भारत में कोविड-19 के हमले के बाद लागू किए गए लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हो गई थीं. नतीजतन, उत्पादन में कमी और इसके चलते टैक्स में गिरावट होनी ही थी. हमारा अनुमान है कि पूरे साल के लिए टैक्स से आने वाले राजस्व में 12.5 प्रतिशत की कमी आएगी.

जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक अगस्त में जीएसटी के मद में कुल 86,449 करोड़ रुपये की आमदनी हुई, जो कि अगस्त 2019 में इस मद में हुई आमदनी से 12 प्रतिशत कम है.

बजटीय अनुमान के मुताबिक, 2020-21 के लिए टैक्स से 16.3 लाख करोड़ रुपये की आमदनी का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया था, जो कि पिछले साल के 15 लाख करोड़ के लक्ष्य से ज्यादा था. यह अनुमान कोविड के हमले से पहले इस आधार पर लगाया गया था कि जीडीपी में 10 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. महामारी के हमले और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण जीडीपी में सांकेतिक वृद्धि और टैक्स उगाही में गिरावट संभव है. हाल के एक दस्तावेज़ के मुताबिक 2020-21 के लिए टैक्स से आमदनी का हमारा अनुमान नीची वृद्धि दर पर आधारित है.

महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को दोहरा झटका लगा है. एक तो सप्लाई व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई. दूसरे, कुल मांग में भारी गिरावट आ गई. हालांकि जून 2020 के बाद से लॉकडाउन में धीरे-धीरे ढील दी जाती रही है, लेकिन अर्थव्यवस्था में काफी सुस्त गति से जान लौट रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो तेजी से ढील लागू हुई मगर शहरों में आर्थिक गतिविधियां अभी भी सुस्त हैं. इसके कारण 2020 की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी दर 23.9 प्रतिशत दर्ज की गई.

जीडीपी में सांकेतिक वृद्धि शून्य रहेगी
केंद्र सरकार को मूख्य रूप से पांच तरह के टैक्स से कमाई होती है. इन पांचों से आय के कुल योग को ‘सकल कर राजस्व’ (जीटीआर) कहा जाता है. इनमें ये प्रत्यक्ष कर शामिल हैं- कॉर्पोरेट मुनाफे पर टैक्स और आयकर (‘जीटीआर’ में इनका क्रमशः 28 और 26 प्रतिशत योगदान होता है). इनके अलावा ये अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं- जीएसटी, तेल छोड़कर दूसरे आयातों पर सीमा शुल्क और तेल के आयात पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क (जिनका जीटीआर में क्रमशः 28, 6, और 12 प्रतिशत का योगदान होता है).

2020-21 के लिए जीटीआर का अनुमान हम तमाम संबंधित आंकड़ों के आधार पर लगा रहे हैं. शुरुआत हम जीटीआर के अलग-अलग तत्वों (कॉर्पोरेट टैक्स, आयकर, जीएसटी, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क) से करते हैं और जीडीपी, कॉर्पोरेट मुनाफा और आयातों आदि के प्रासंगिक योगों के मुक़ाबले इन तत्वों के अनुपातों के दीर्घकालिक औसतों का हिसाब लगाते हैं. इसके बाद हम इन दीर्घकालिक औसतों को 2020-21 के लिए प्रासंगिक योगों के अनुमानित मूल्यों से गुना करते हैं.

हालांकि, महामारी के कारण, जीडीपी का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन कई अर्थशास्त्रियों और विश्लेषणकर्ताओं ने 2020-21 के लिए जीडीपी की वास्तविक दर –5 प्रतिशत रहने की उम्मीद जताई है. हाल में बढ़ी महंगाई के कारण उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआइ) में 5 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है. इन सबके कारण सांकेतिक जीडीपी वृद्धिदर शून्य रह सकती है.

टैक्स की उगाही पिछले साल जैसे नहीं
दूसरे शब्दों में, हमारा अनुमान है कि सांकेतिक जीडीपी 2019-20 वाले स्तर पर ही रहेगी और महामारी के कारण, टैक्स से उगाही पिछले साल के स्तर से नीची रहेगी. इस तरह, हम यह मान कर नहीं चल रहे कि सांकेतिक जीडीपी अगर पिछले साल वाले स्तर पर रहेगी तो आयकर तथा जीएसटी से उतना ही राजस्व मिलेगा जितना पिछले साल मिला था. बल्कि हम उम्मीद करते हैं कि इन टैक्सों से उगाही दीर्घकालिक औसत के अनुपात में होगी.

आयकर/ जीडीपी के अनुपात के पिछले नौ साल के (2011-12 से, जबसे जीडीपी के नये डेटा उपलब्ध होने लगे) औसत को अनुमानित सांकेतिक जीडीपी पर लागू किया जाए तो 2020-21 के लिए आयकर से आय में 7 प्रतिशत की कमी का अनुमान मिलता है, और जीएसटी में 4.1 प्रतिशत की कमी का.

हमें लगता है कि 2020-21 में कॉर्पोरेट मुनाफे में पिछले साल की तुलना में 20 प्रतिशत की कमी आएगी. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध निफ्टी-50 की कंपनियों के मुनाफे में जनवरी-मार्च की तिमाही में 15 फीसदी की गिरावट आई. लॉकडाउन के कारण, अप्रैल-जून की तिमाही में यह स्थिति और गंभीर हो सकती है. साल में आगे चलकर बिक्री और मुनाफे में सुधार हुआ तो भी इस साल के लिए कॉर्पोरेट मुनाफे में 15 फीसदी की गिरावट आ सकती है. यह कॉर्पोरेट टैक्स में 17.6 फीसदी की गिरावट का संकेत देता है.

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