Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/experiences-of-social-and-political-movements-turning-to-elections/.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | आंदोलनकारियों का चुनावी राजनीति में जाना: अन्ना आंदोलन से किसान आंदोलन तक के अनुभव | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

आंदोलनकारियों का चुनावी राजनीति में जाना: अन्ना आंदोलन से किसान आंदोलन तक के अनुभव

-गांव सवेरा, 

किसान आंदोलन स्थगित हो गया है लेकिन किसानों के कुछ संगठन और किसान नेताओं की तरफ से हरियाणा और पंजाब में चुनाव लड़ने की खबर आ रही है। वैसे तो संयुक्त किसान मोर्चा ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है लेकिन हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी, जो मूलतः पंजाब के हैं, उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी है तो दूसरी ओर प्रतिष्ठित किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने भी चुनाव में उतरने का ऐलान किया है।

आंदोलनकारियों का चुनाव लड़ने का फैसला हमेशा से विवादास्पद रहा है। छात्र युवा संघर्ष वाहिनी, नक्सल आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ के शंकर गुहा नियोगी के नेतृत्व में आंदोलन, सीपीआइ(एमएल) लिबरेशन, अन्ना आंदोलन जैसे कई आंदोलन हुए हैं जहां बाद में उनके एक गुट के द्वारा चुनाव लड़ने का फैसला किया गया। पंजाब में वामपंथी संगठन जो “नागी रेड्डी गुट” के नाम से जाना जाता है, उसने चुनाव लड़ने का फैसला नहीं किया है लेकिन सीपीआइ(एमएल) बिहार में कुछ सीटों पर हमेशा जीतने की स्थिति में रहती है और इस बार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन करके उसने अपनी सीटों की संख्या दो अंकों में कर ली।

सवाल यह है कि आंदोलनकारियों का चुनाव में उतर के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का उद्देश्य कितना सफल हो पाता है। एक आंदोलनकारी के रूप में हमने महसूस किया है कि आंदोलनकारी कुछ बुनियादी लक्ष्य को लेकर आंदोलन करते हैं जिनके मन में ढेर सारे सपने रहते हैं। ऐसे में जब यह चुनाव में उतरने का फैसला करते हैं तो उसी सपने या आदर्श को लेकर सामने आते हैं लेकिन उनके सामने वहां पर एक अलग तरह की परिस्थिति नजर आती है जो उनके आदर्श से बिल्कुल विपरीत रहती है। चुनाव लड़ने वाली मुख्यधारा की पार्टियों ने भी चुनाव को बहुत महंगा कर ऐसी परिस्थिति बना दी है। यह भी प्रत्यक्ष देखने को मिलता है यही आंदोलनकारी पार्टी भविष्य में ऐसी पार्टी से गठबंधन करती है जो पूरी तरह आदर्श से विमुख हो चुकी होती है। जब आंदोलनकारी राजनीति में उतरने का फैसला करते हैं तो उसी संगठन में कई गुट सामने आते हैं! कुछ गुट को यह फैसला पसंद नहीं आता है और आंदोलन में विभाजन भी हो जाता है और बाद में आंदोलन का पराभव भी हो जाता है।

जब अन्ना आंदोलन के गर्भ से निकलकर आम आदमी पार्टी बनी तो उसमें भी विभाजन हुआ और भारत के कई सामाजिक संगठनों के लोगों के लिए वह आकर्षण का केंद्र बन गया। इलाहाबाद स्थित आजादी बचाओ आंदोलन के महानायक स्वर्गीय डॉ. बनवारी लाल शर्मा ने उस आंदोलन तथा बाद में बनी पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ने से इनकार कर दिया लेकिन देशभर के कुछ साथी उस आंदोलन में जुड़ गए। उस घटना को उस वक्त छात्र आंदोलनकारी के रूप में आजादी बचाओ आंदोलन में रहकर मैंने नजदीक से महसूस किया कि किस प्रकार सामाजिक संगठन को आर्थिक संसाधन मुहैया कराने वाले संवेदनशील लोग भी उस धारा में बह कर सामाजिक संगठन को पैसे न दे कर अन्ना आंदोलन तथा आम आदमी पार्टी को पैसे देने लगे। यह चीज इस बात को भी जाहिर करती है कि इस देश का मानस अंततः यही सोचता है कि राज्य सत्ता पाकर ही हम अंतिम लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं जो बिल्कुल गलत है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.