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भय, आशंका और अफवाहों ने मिलकर रचा पालघर का हत्याकांड

-न्यूजलॉन्ड्री,

"रात के 10:30 बजे थे. अचानक एक काले कपड़े पहने हुए, ऊंची कद-काठी के आदमी ने दरवाजा खोला, उसने अपना मुंह कपड़े से ढंक रखा था. वो तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ा पर जब मैं चिल्लाई तो वो भाग गया."

ये 34 वर्षीय रेणुका देशक का 12 अप्रैल की रात का विवरण है. रेणुका महाराष्ट्र में पालघर की दहानु तहसील के निकने गांव की निवासी हैं. वो कहती हैं कि मैं चिल्लाई और गांव वाले दौड़ते हुए मेरे घर की तरफ आ गए, बकौल रेणुका "वो एक चोर था".

गांव वालों ने पूरे इलाके को खंगाला, पर कोई नहीं मिला. उस रात बहुत से लोगों ने सारनी के पड़ोस के गांव में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को फोन कर आग़ाह किया कि, "चोर पहाड़ियों में भाग गये हैं और सारनी की तरफ आ सकते हैं."

अगले चार दिनों में, लंबे और हट्टे-कट्टे चोरों की अफवाहें पालघर जिले में दहानु से शुरू होकर तालसरी से लेकर विक्रमगढ़ तहसील तक, फोन और व्हाट्सएप के ज़रिए तेज़ी से फैल गईं. डर, आग की तरह फैला जिसमें उन्माद ने घी का काम किया. ये सब 16 अप्रैल की रात को दहानु में, गढ़चिंचली के गांव वालों के हाथ दो साधुओं और उनके ड्राइवर की निर्मम हत्या के रूप में फलीभूत हुआ.

ये सभी गांव गढ़चिंचली से 50 से 70 किलोमीटर की दूरी पर हैं.

दोनों साधू, 70 वर्षीय महंत कल्पवृक्ष गिरी और 35 वर्षीय सुशील गिरी महाराज कांदिवली के आश्रम में रूके हुए थे. 16 अप्रैल को, अपने गुरु महंत श्री राम गिरी के अंतिम संस्कार में सूरत जाने के लिए, इन दोनों ने एक गाड़ी किराए पर ली जिसका ड्राईवर 30 वर्षीय नीलेश येलगड़े था.

इन लोगों को पहले पालघर में गढ़चिंचली के पास वन विभाग के अधिकारियों ने रोका था. उसके कुछ ही देर बाद गाड़ी को पत्थर, डंडों और कुल्हाड़ियों से लैस गांव वालों ने घेर लिया. पुलिस वालों के होते हुए भी तीनों पर भीड़ ने हमला किया, और उनकी हत्या कर दी गई.

इस हत्या ने पूरे देश की भावनाओं को उद्वेलित कर दिया. मृतकों में हिंदू साधुओं के होने की वजह से सोशल मीडिया पर कई प्रभावशाली लोगों ने इस घटना को साम्प्रदायिक मोड़ दिया, बावजूद इसके कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने आधिकारिक तौर पर स्पष्ट कर दिया था कि गिरफ्तार किए गए 101 लोगों में से एक भी मुसलमान नहीं है. रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी इस मौके पर कुछ ज्यादा ही आगे निकल गए. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पर इटली के लोगों के साथ साज़िश करके "साधुओं की हत्या" करवाने का आरोप लगाया.

पर असल में उस पूरे हफ्ते क्या हुआ जिसकी परिणति एक सामूहिक हत्याकांड में हुई?

अफवाहों की श्रृंखला

रेणुका न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं कि 12 अप्रैल की रात जब "चोर" उनके घर में घुस आया, "जब मैं चिल्लाई तो वो निकल भागा और गा़यब हो गया". गांव वालों ने करीब आधे घंटे तक इलाके में ढूंढा पर कोई नहीं मिला.

अगले दिन, एसएम देशक, निकने ग्राम पंचायत के सरपंच इस घटना की रिपोर्ट लिखाने कासा थाने पर गए, न्यूज़लॉन्ड्री ने इस रिपोर्ट की प्रति देखी. वे अपनी रिपोर्ट में कहते हैं, "12 अप्रैल की रात को एक अनजान व्यक्ति निकने गांव में घूमता देखा गया. गांववासियों ने उसे पकड़ने की कोशिश की पर वो निकल भागा. गांव के अंदर एक डर का माहौल बन गया है, अतः मेरी आपसे विनती है कि इस मामले की जांच करें."

दो घंटे बाद पुलिस पूछताछ के लिए गांव गई और 14 अप्रैल को लौटी. "उसके बाद हमारे गांव में कोई अजनबी नहीं दिखा पर लोग रात को पहरा देते रहे". सरपंच देशक आगे कहते हैं, "15 अप्रैल को पुलिस ने ग्राम पंचायतों की एक बैठक की जिसमें उन्होंने हमें समझाया कि अगर हम चोर को पकड़ लें तो उसे पीटें नहीं, बल्कि उसको पुलिस के हवाले कर दें."

रात को डर चरम पर पहुंच जाता था. बहुत से गांव वाले डंडे और मशालें लेकर सुबह तक गांव के चारों ओर गश्त लगाते थे. जैसा कि देशक बताते हैं, “पूरे दहानु और तालसरी में अफवाहों ने घर कर लिया था.”

सारनी गांव के सरपंच शांताराम दागला कहते हैं कि अफवाहें 12 अप्रैल को सारनी पहुंचीं जिससे गांव के लोग बहुत "भयाक्रांत और आक्रोशित" हो गए थे. "12 अप्रैल की रात, बहुत से गांव के लोगों को निकने में रहने वाले उनके मित्रों के फोन आये, उन लोगों ने बताया कि चोर यहां से निकल भागे हैं और पहाड़ियों के रास्ते सारनी में घुस सकते हैं." "कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने चोरों को देखा पर पकड़ नहीं पाये, कुछ कह रहे हैं कि उन्होंने चोरों का पीछा किया पर वो गायब हो गए. ये अफवाहें पालघर के कई घरों में फैल गईं, और सब यही कहती थीं कि चोर लंबे-चौड़े, हट्टे-कट्टे हैं और मुंह पर कपड़ा बांधे रहते हैं."

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