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किसानों की फसलों से आय 48 फीसदी से गिर कर 38 फीसदी रह गई -एनएसओ

-रूरल वॉइस,

केेंद्र की मोदी सरकार ने 2016 में घोषणा की थी कि साल 2022 तक किसानों की आय को दो गुना कर दिया जाएगा। यह बात खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश की एक रैली में कही थी। लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे की सिचुएशन असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल हाउसेज एंड लैंड एंड लाइवस्टॉक होल्डिंग्स ऑफ हाउसेज इन रूरल इंडिया (एसएएस ) रिपोर्ट, 2019 के  जारी किए गये आंकड़े बताते हैं कि खेती में किसानों की दिलचस्पी कम हो रही है। दिलचस्प बात यह है कि  किसान की इनकम में अधिकांश वृद्धि मजदूरी और पशुपालन से आई है। खेती से होने वाली आय का हिस्सा वास्तव में 48 फीसदी  से घटकर 38 फीसदी  हो गया है ।

यह आंकडे नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस  (एनएसओ) के अन्तर्गत  आने वाले एसएएस द्वारा साल 2019 में लिए गये आंकड़ों के आधार पर जारी  किया गए हैं।  इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार एक किसान कृषि सीजन जुलाई 2018-जून 2019 के दौरान हर महीने औसतन 10,218 रुपये कमाता था। जिसमें  वह मजदूरी से 4023 रुपये कमा रहा था। जबकि फसलों से उनकी आय 3798 रुपये ही रही । इसकी तुलना अगर साल 2012 में लिए गये आंकड़ों से करें तो उस समय एक किसान परिवार हर महीने औसतन 6,021.45 रुपये कमा रहा था। उसमें से सिर्फ 621.69 रुपये मजदूरी से ही कमाए गए। जाहिर है कि 7 साल में किसानों की मजदूरी पर निर्भरता बढ़ी है। यानि  किसान अब धीरे-धीरे मजदूर बन रहे हैं ।

किसान परिवार की  मासिक कमाई (रुपये में)

मजदूरी              -                             4063

भूमि का पट्टा       -                              134

फसल के माध्यम से शुद्ध आय-           3798

पशुपालन -                                        1582

गैर-कृषि व्यवसाय -                               641

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कुल कमाई-                                      10218

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फसल की तुलना में पशुपालन और मजदूरी से ज्यादा आय

एक किसान परिवार कृषि के अलावा अन्य स्रोतों से कमा सकता है, 2018-19 में मजदूरी, खेती, पशुपालन और गैर-कृषि व्यवसाय की हिस्सेदारी 40फीसदी , 38 फीसदी, 16 फीसदी  और 6 फीसदी  थी। 2012-13 में ये शेयर 32 फीसदी, 48 फीसदी,12 फीसदी और 8 फीसदी जैसे मजदूरी या गैर-कृषि व्यवसाय से आई थे । इससे पता चलता है कि एक व्यवसाय के रूप में फसल  उत्पादन से  आय़  में गिरावट आ रही है। इससे यह पता चलता है कि यह उनकी आय का सबसे बड़ा स्रोत भी नहीं है और किसान परिवार  केवल खेती से  आय अर्जित नहीं करते हैं।

साल 2012 के दौरान किसानों की कुल मासिक आय 6021.45 रुपये थी। इस मासिक आय में जुलाई-दिसंबर सीजन के दौरान 50 प्रतिशत फसलों से अर्जित करता था। लेकिन 2019 में फसलों से होने वाला आय़ घटकर 38 फीसदी रह गया है। क्योकि कुल मासिक आय 10218 रुपये में  फसल से केवल 3798 रुपये कमा रहे हैं।

अगर आंकडों पर गौर करें तो प्रति किसान के परिवार की फसल उत्पादन से आय 2018-19 में 3,798 रुपये थी, जो 2012-13 की तुलना में 23  फीसदी अधिक है। हालांकि, वास्तविक रूप में इसमें 8.9 फीसदी की गिरावट आई है।

निश्चित रूप से, इस तरह की गिरावट तब भी हो सकती है जब किसान परिवार खेती के साथ पशुपालन करते  पशुपालन में रुचि लेकर  आगे बढ़ते हैं, लेकिन वे फसलों के उत्पादन से कमाई नहीं करते हैं। इसलिए वास्तव में प्रत्येक  किसान परिवार जो केवल  फसल उत्पादन में लगे  है इस तरह  आय में हो रहे  परिवर्तन जरूर देखना चाहिए । अकेले फसलों की खेती  और इससे संबंधित गतिविधियों से, लगे परिवारों की वास्तव में शुद्ध नाममात्र आय जो 2012-13 में 3,350 रूपये थी और 2018-19 में 4,001 रुपये थी,इस  तरह 19 फीसदी  अधिक है। वास्तविक रूप में इस तरह की आय में 11.7फीसदी की गिरावट आई है।

आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल कृषि का प्रदर्शन खराब नहीं रहा है, हालांकि  वे इस तथ्य को नाकरा नही जा सकता की फसल  औऱ उससे संबद्ध गतिविधियों के आय में वास्तविक रूप से गिरावट आई है जबकि पिछले सात सालो  किसानो को  मानसून ने धोखा  नहीं किया है

किसान पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है 

सर्वे  के अनुसार, 2018-19 में एक किसान परिवार का औसत कर्ज 58 फीसदी बढ़कर 74,100 रुपया हो गया, जो 2012-13 के दौरान 47,000 रूपया था। वास्तविक रूप में यह 16.5 फीसदी की वृद्धि है। लेकिन बकाया ऋण वाले कृषि परिवारों की हिस्सेदारी 51.9फीसदी से घटकर 50.2 फीसदी हो गई।

जुलाई 2018-जून 2019 की अवधि के किसान परिवारों की स्थिति लिए डेटा सबसे व्यापक है । इस सर्वेक्षण का पिछला दौर 2013 में आयोजित किया गया था और जुलाई 2012-जून 2013 की अवधि के लिए डेटा एकत्र किया गया था। मोदी सरकार के तहत किसानों की स्थिति का यह पहला कंप्रेसिव अकाउंट है।

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