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मोदी सरकार के आने बाद से नहीं हुआ किसानों की आमदनी का सर्वे

-न्यूजलॉन्ड्री,

एक तरफ जहां केंद्र सरकार साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कर रही है वहीं दूसरी तरफ साल 2013 के बाद से राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने किसानों की आय को लेकर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है. यानी नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से किसानों की आमदनी को लेकर कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया है.

बीते 8 फरवरी को कई सांसदों ने सामूहिक रूप से किसानों की आमदनी को लेकर कई सवाल पूछे थे जिसमें एक सवाल यह भी था कि देश में किसानों की आय पर अंतिम सर्वेक्षण कब किया गया. इस सवाल के लिखित जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया, ‘‘कृषि परिवारों की आय पर नवीनतम उपलब्ध अनुमान राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा इसके कृषि वर्ष जुलाई 2012- जून 2013 की संदर्भ अवधि के लिए इसके 70वें राउंड (जनवरी 2013-दिसंबर 2013) के दौरान कराए गए ‘कृषि परिवारों का स्थिति आकलन सर्वेक्षण’ पर आधारित है. सर्वेक्षण परिणामों के अनुसार सभी स्रोतों से प्रति कृषि परिवार औसत मासिक आय 6426 रुपए होने का अनुमान था.’’

इससे पहले एनएसओ ने यह सर्वे साल 2003 में किया था. उस समय देशभर के किसानों की मासिक आय करीब 2115 रुपए थी. दशक बाद हुए सर्वे में यह आमदनी 6426 रुपए हो गई. ऐसे में दस साल के करीब तीन गुनी हुई. अगर बिहार के किसानों की आय की बात करें तो कृषि मंत्री द्वारा लोकसभा में दिए गए एक जवाब के मुताबिक साल 2003 में बिहार में किसानों की आय करीब 1810 रुपए थी जो दस साल में बढ़कर 2013 में 3558 रुपए हुई यानी दोगुनी से भी कम वृद्धि हुई. इस दौरान ज़्यादातर समय बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बीजेपी और जनता दल (यू) की सरकार सत्ता में रही है.

किसानों की आमदनी को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में हर बार कृषि मंत्री ने बताया कि आखिरी बार सर्वे साल 2013 में हुआ था.

एनएसओ की आखिरी रिपोर्ट 2013 में आयी. केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार 2014 में आई उसके बाद से एनएसओ का कोई किसानों की आय से जुड़ा कोई आंकड़ा नहीं आया. एनएसओ की वेबसाइट पर यहां कहीं और यह नहीं बताया गया कि एनएसओ यह आंकड़े कितने अंतराल के बाद निकालता है. क्या अंतराल दस साल है या उससे भी कम है. इसको लेकर योगेंद्र यादव न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘एनएसओ कभी-कभार ही किसानों की आमदनी प्रकाशित करता है. ये उनका रेगुलर काम नहीं है. उनका रेगुलर काम उपभोक्ता खर्च सर्वे प्रकाशित करना होता है. इसलिए उन्होंने नहीं किया.’’

13 अप्रैल 2016 दलवाई कमेटी का गठन हुआ. इसके करीब दो साल बाद फरवरी 2018 में दिए एक इंटरव्यू में कमेटी के प्रमुख 1984 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. अशोक दलवाई कहते हैं, ‘‘अभी तक ऐसा कोई सर्वे नहीं आया है जिससे पता चले कि किसानों की आय कितनी बढ़ी है.’’

इस इंटरव्यू में दलवाई ने एनएसओ के सर्वे पर भी सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था, ‘‘किसानों की आय को मेजर करने के लिए अभी तक कोई सिस्टम नहीं है. इसे भी बनवाएंगे ताकि एक निश्चित अंतराल में किसानों की आय के बारे में सही जानकारी मिले और फिर हम उसी हिसाब से उनके लिए काम कर सकें.’’

दलवाई ने भले ही कहा कि किसानों की आमदनी बढ़ने को लेकर समय-समय पर सटीक जानकारी मिल सके इसके लिए सिस्टम बनाया जाएगा लेकिन अब तक ऐसा कोई सिस्टम नहीं बन पाया. इसको लेकर न्यूजलॉन्ड्री ने दलवाई से बात की. वे कहते हैं, ‘‘अभी तक किसानों की आय में क्या वृद्धि हुई इसको लेकर सर्वे तो नहीं आया, लेकिन हम किसानों की आमदनी बढ़ाने के जो काम करते हैं उसका समय-समय पर मूल्यांकन करते रहते हैं. जहां तक मेरी जानकारी है एनएसओ ने इसको लेकर काम शुरू कर दिया है. साल 2022-23 तक कोई सर्वे तो किया ही जाएगा तभी तो पता चल पाएगा कि किसानों की आमदनी कितनी बढ़ी है हालांकि हम सही रास्ते पर हैं. किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी हो जाएगी.’’

हालांकि योगेंद्र यादव कुछ और ही कहते हैं, ‘‘प्रधानमंत्री ने 28 फरवरी 2016 को कहा था कि किसानों की आमदनी डबल करेंगे. ऐसे में जिस चीज को आप दोगुनी करना चाहते हैं उसका नाप-जोख तो करेंगे न? नहीं तो आप कैसे बताएंगे कि डबल हुआ या नहीं हुआ? क्या हुआ? प्रधानमंत्री को घोषणा किए छठा साल शुरू हो गया, लेकिन इसको लेकर कोई आंकड़ा इकठ्ठा ही नहीं किया गया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि जिस रोज आंकड़ें इकठ्ठा किए जाएंगे वो सरकार को लज्जित करने वाला होगा.’’

नाबार्ड की रिपोर्ट: सरकार और विशेषज्ञ नहीं मानते प्रामाणिक

किसानों की आमदनी को लेकर एनएसओ ने तो कोई आंकड़ा जारी नहीं किया लेकिन राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने ज़रूर साल 2018 में अखिल भारतीय ग्रामीण व
त्तीय समावेशन सर्वेक
्षण
 2016-17 नाम से रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 के दौरान एक किसान परिवार की आय 8931 रुपए रही.

नाबार्ड ने अपना सर्वे 29 राज्यों के 245 जिलों में किया. जिसमें 40327 परिवार के कुल 1,87,518 लोग शामिल हुए. नाबार्ड की रिपोर्ट के मुताबिक कृषि परिवारों की कुल आमदनी का महज 43 प्रतिशत (3800 रुपए) ही खेती और पशुपालन से हुई. कुल आमदनी का 34 प्रतिशत यानी 8931 रुपए में से करीब 3000 रुपए की आमदनी मज़दूरी से हासिल की गई. इस तरह देखे तो खेती से करीब-करीब कृषि परिवारों में खेती और पशुपालन से ज़्यादा कमाई का जरिया का दूसरे माध्यम रहे.

हालांकि नाबार्ड के आंकड़ों को कृषि विशेषज्ञ प्रामाणिक नहीं मानते हैं. योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘‘नाबार्ड की तुलना में एनएसओ का आंकड़ा ज़्यादा प्रामाणिक था. एनएसओ के सर्वे का मेथड भी काफी बेहतर था वहीं नाबार्ड की ग्रामीण क्षेत्र को लेकर जो परिभाषा थी वो अलग थी. जिसकी वजह से कई शहरी क्षेत्र के लोग भी उसमें शामिल हो गए.’’

सिर्फ कृषि विशेषज्ञ ही नहीं सरकार भी नाबार्ड के सर्वे में जो किसानों की आमदनी की जानकारी सामने आई उसका जिक्र लोकसभा के सवाल के जवाब में करती नज़र नहीं आती है. जब भी किसानों की आमदनी को लेकर सवाल किया गया वो एनएसओ के साल 2012-2013 के आंकड़ों का ही जिक्र करती नजर आती है.

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