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जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से पहाड़ों पर बढ़ी भुखमरी

-डाउन टू अर्थ,

जलवायु में आ रहे बदलावों और जैव विविधता के घटने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में खाने की कमी लगातार बढ़ती जा रही है। यह जानकारी हाल ही में एफएओ द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट 'वल्नेरेबिलिटी ऑफ माउंटेन पीपल टू फूड इन्सेक्युरिटी' में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार हालांकि दुनिया की ज्यादातर सबसे महत्वपूर्ण फसलें और मवेशियों की प्रजातियां इन पहाड़ी क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं, इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता को हो रहे नुकसान के चलते पहाड़ों और उन पर निर्भर लोगों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। 

विकासशील देशों में स्थिति कुछ ज्यादा ही ख़राब है, यहां खाद्य सुरक्षा की स्थिति लगातार बद से बदतर होती जा रही है। जहां वर्ष 2000 में इन इलाकों में रहने वाले 24.3 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे, वो संख्या 2017 में बढ़कर 35 करोड़ पर पहुंच गई है। 2017 में जारी आंकड़ों के अनुसार पहाड़ करीब 110 करोड़ लोगों का घर है, जोकि वैश्विक आबादी का 15 फीसदी हैं। इसमें से 100 करोड़ (91 फीसदी) विकासशील देशों में रहते हैं।

दुनिया के करीब 27 फीसदी भूभाग पर पहाड़ हैं, जोकि 3.9 करोड़ वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। इनका 54 फीसदी हिस्सा विकासशील देशों में है। यह पहाड़ हमारी भोजन, पानी और ऊर्जा जैसी जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं। यह कितने जरुरी हैं इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दुनिया का 60 से 80 फीसदी मीठा पानी इन्हीं पहाड़ों से मिलता है, जोकि हमारे जीवन का आधार है। इसके साथ ही कई महत्वपूर्ण फसलें और मवेशी भी इन्हीं पहाड़ों पर मिलते हैं। जो भोजन और दवा सम्बन्धी जरुरत को पूरा करते हैं।

इसके बावजूद इनपर इंसानी दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और भूमि उपयोग में होते बदलाव का खामियाजा इन पहाड़ों और वहां रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है। यही वजह है कि इन पहाड़ों का बहुत ही नाजुक इकोसिस्टम आज दबाव का सामना कर रहा है। ऊपर से यहां के संसाधनों का जिस तरह से दोहन हो रहा है उसके चलते आज यहां रहने वाले लोगों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। उनपर भुखमरी और रोजगार के छिनने का खतरा लगातार बढ़ रहा है।  

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