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किसान बढ़े तो अर्थव्यवस्‍था उबरे

-आउटलुक,

“मंदी के दुश्चक्र से, देश की अर्थव्यवस्‍था किसान की हालत सुधरने से ही निकलेगी, लेकिन खेती-किसानी की आय में इजाफे के लिए सरकारी बैसाखी नाकाफी, किसानों की संगठित पहल जरूरी”
हाल में आए देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू साल की तीसरी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर 4.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जो सात साल में सबसे कमजोर है। इस दौर में ग्रामीण भारत की क्रय शक्ति भी काफी कमजोर रहने के आंकड़े सामने आए हैं। इसी तरह के माहौल में आयोजित आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स 2020 में यह बात केंद्र बिंदु बनकर उभरी कि देश की अर्थव्यवस्था को गति कृषि क्षेत्र से ही मिल सकती है। इसके लिए किसानों और ग्रामीण भारत के हाथ में अधिक पैसा पहुंचना चाहिए। उसके तरीके और प्रयास कई हो सकते हैं लेकिन विकल्प यही है। 24 फरवरी को आयोजित कॉनक्लेव में दिन भर के मंथन से यही बात निकल कर आई कि किसानों की आय में बढ़ोतरी समय की जरूरत है और इसके लिए फसलों के विविधीकरण से लेकर मूल्यवर्धन, टेक्नोलॉजी को बढ़ावा और किसानों को आंत्रप्रेन्योर के रूप में खुद खड़ा होना।

असल में सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य पर काम कर रही है। यह लक्ष्य हासिल करने का समय भी करीब आ रहा है, लेकिन अभी परिणाम बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं। सरकार ने इस मसले पर एक समिति गठित की थी जिसकी रिपोर्ट भी आ चुकी है। हालांकि किसानों की आय को दोगुना करने का कोई एक फार्मूला ईजाद नहीं किया सकता है, इस बात का नीति निर्धारकों, विशेषज्ञों, सरकार और किसानों को भी खुद एहसास है। यही वजह है कि केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को भी अब इसका हल नहीं माना जा रहा है, क्योंकि एमएसपी तो केवल करीब दो दर्जन फसलों का तय होता है, जबकि अब फसलों का मिक्स बदल रहा है। मसलन, हॉर्टिकल्चर उपज अब खाद्यान्न पैदावार को पार कर गई है और उनका कोई एमएसपी नहीं होता है। साथ ही बाजार का दायरा भी बड़ा होता जा रहा। इसमें स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय के साथ अंतरराष्ट्रीय कारक भी जुड़ते जा रहे हैं।

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