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अडानी के खनन से हसदेव का जंगल बचाने के लिए आदिवासियों की ऐतिहासिक पदयात्रा

-जनपथ,

कोयला खनन के विरोध में सरगुजा और कोरबा जिले के 30 गांवों के 350 से अधिक आदिवासी ‘हसदेव बचाओ पदयात्रा’ के बैनर तले पदयात्रा कर रहे हैं। ग्रामीणों ने अपनी यात्रा मदनपुर ग्राम से शुरू की और 10 दिनों में 300 किमी से अधिक की दूरी तय करते हुए वे राजधानी रायपुर पहुंच रहे हैं, जहां वे अपनी मांगों को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपेंगे। आदिवासियों ने इसका नाम हसदेव बचाओ पदयात्रा दिया है। रायपुर पहुंचकर ये लोग विरोध जताएंगे। इनका आरोप है कि कोल परियोजनाओं के लिए अवैध रूप से भूमि का अधिग्रहण हो रहा है।


हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति दो जिलों के प्रदर्शनकारियों का एक संयुक्त मंच है। इनके विरोध के बावजूद इस क्षेत्र में छह कोल ब्लॉक आवंटित किए गए हैं। इनमें से दो में खनन चालू हो गया है। परसा पूर्व और केटे बसन ब्लॉक और चोटिया के ब्लॉक 1-2 हैं। इसके साथ ही परसा के दूसरे कोल ब्लॉक को पर्यावरण मंत्रालय से क्लियरेंस मिल गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि जमीन अधिग्रहण का काम बिना ग्राम सभा की अनुमति के किया गया है। साथ ही भूमि अधिग्रहण का काम भी जारी है। संघर्ष समिति के प्रमुख सदस्य उमेश्वर सिंह आर्मो ने आरोप लगाया है कि परसा में पर्यावरण मंजूरी के लिए जाली दस्तावेज का प्रयोग किया गया है। साथ ही मंत्रालय को गलत जानकारी दी गयी है।

छत्तीसगढ़ राज्य में सरगुजा जिले का हसदेव अरण्य क्षेत्र अपनी जैव विविधता, विशेषकर हाथियों के झुंडों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां हजारों प्रजाति के वन्य जीवों का बसेरा है और इनके साथ माइग्रेटरी पक्षियों का भी आगमन होता है। पर्यावरण की दृष्टि से यह अतिमहत्वपूर्ण वन इस समय कोयला खदान की व्यावसायिक खनन सक्रियता की वजह से अस्तित्व का संकट झेल रहा है। यह माना जाता है कि इस कोयला खनन कार्य से राज्य के वन पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है। ध्यातव्य है कि यह क्षेत्र जैव विविधता में समृद्ध है और यह हसदेव और मांड नदियों के लिए जलग्रहण क्षेत्र भी है। हसदेव, बांगो बैराज का कैचमेंट क्षेत्र है जहां से छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी और मध्य मैदानी इलाकों की 4 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की जाती है।

हाल ही में छत्तीसगढ़ के सरगुजा स्थित परसा कोल ब्लॉक से उत्खनन के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अनुमति दे दी है। इस कोल ब्लॉक से अदानी समूह की कंपनी ओपनकास्ट माइनिंग के जरिये कोयला निकालेगी। 2100 एकड़ में फैला यह कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित हुआ है, लेकिन एमडीओ यानी खदान के विकास और ऑपरेशन का अधिकार अडानी के पास है। संरक्षित व सघन वन क्षेत्र होने के कारण इस कोल ब्लॉक के आवंटन का शुरू से विरोध हो रहा है। इस निर्णय के बाद जंगल क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं और आवंटन रद्द करने की मांग को लेकर बीते 14 अक्टूबर से धरने पर बैठे थे।

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