Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/horror-knock-of-delta-plus-3069.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | कोविड-19/तीसरी लहर/डेल्टा प्लस की डरावनी दस्तक | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

कोविड-19/तीसरी लहर/डेल्टा प्लस की डरावनी दस्तक

-आउटलुक,

“टीकाकरण में तेजी में आ रही दिक्कतों को दूर करने और स्वास्थ्य ढांचे में सुधार पर ही निर्भर है कि नए ज्यादा संक्रामक वेरिएंट का असर कितना होगा”

सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब मुश्किल। क्या कोरोना की दूसरी लहर खत्म हो गई है? तीसरी लहर कब आएगी? क्या वह भी दूसरी लहर जितनी जानलेवा होगी? डेल्टा प्लस वेरिएंट कितना खतरनाक है? पहले सवाल का जवाब हां और ना दोनों में है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “देश के बड़े हिस्से में महामारी नियंत्रण में है, 535 जिलों में पॉजिटिविटी दर 5 फीसदी से कम है।” लेकिन कुछ इलाकों में ऐसा नहीं है। भार्गव ने बताया, “दूसरी लहर अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। अभी 75 जिलों में पॉजिटिविटी दर 10 फीसदी से अधिक है।” इसलिए तीसरी लहर से बचना कई बातों पर निर्भर करता है। जैसे, बचाव के लिए लोगों का उचित व्यवहार और एक जगह पर लोगों का इकट्ठा होने से बचना।

जिन इलाकों में दो महीने की सख्ती के बाद लॉकडाउन हटाया गया वहां भी खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। कोरोनावायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट को लेकर अलर्ट जारी होने के बाद पुणे समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में रात का कर्फ्यू और सप्ताहांत में गैर-जरूरी चीजों की दुकानें बंद करने का आदेश जारी करना पड़ा। यह वेरिएंट उसी डेल्टा परिवार का हिस्सा है जो सबसे पहले भारत में पाया गया था। भारत में दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई, उसके पीछे यही डेल्टा वायरस था।

वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील बताते हैं कि इस साल भारत में अल्फा और डेल्टा वायरस ने लोगों को ज्यादा संक्रमित किया। बीटा और गामा वेरिएंट की भारत में कोई खास मौजूदगी नहीं देखी गई। जमील कहते हैं, “जहां अल्फा और डेल्टा दोनों वेरिएंट मौजूद थे, वहां अल्फा की जगह डेल्टा ने ले ली। इसका मतलब है कि डेल्टा वेरिएंट अल्फा के तुलना में ज्यादा संक्रामक है।” नई रिपोर्ट के अनुसार डेल्टा वेरिएंट दूसरे देशों में भी अन्य वेरिएंट पर भारी पड़ रहा है। इंग्लैंड में अनेक लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के कई शहरों में डेल्टा का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन लगाना पड़ा है।

देश में वायरस के फैलाव पर नजर रखने वाले जिनोम सीक्वेंसिंग प्रयोगशालाओं के नेटवर्क इंडियन सार्स कोव 2 जिनोमिक्स कंसोर्सियम (इंसाकॉग) ने जून के मध्य में डेल्टा वेरिएंट की ट्रैकिंग शुरू की। इसने वायरस के ऊपरी हिस्से पर पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन में नया म्यूटेशन देखा, जिसे के417एन नाम दिया गया। यह म्यूटेशन पहले बीटा वेरिएंट में भी देखा गया था। नए डेल्टा प्लस वेरिएंट के बारे में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने सबसे पहले जून की शुरुआत में बताया था। लेकिन अभी तक इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है। इंसाकॉग के अनुसार अप्रैल में महाराष्ट्र से लिए गए नमूनों की जब बाद में जांच की गई तो इस वेरिएंट का पता चला। अभी तक इस वेरिएंट के 51 रूप महाराष्ट्र, केरल, मध्य प्रदेश और नौ अन्य राज्यों में मिल चुके हैं। यह वेरिएंट 12 देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका है।

जमील कहते हैं, “सिर्फ 50 सीक्वेंस के आधार पर यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि यह वेरिएंट ज्यादा संक्रामक या जानलेवा है और इसकी वजह से तीसरी लहर आएगी।” अधिकारियों का कहना है कि जिन नमूनों में यह वेरिएंट पाया गया, वे कुछ खास इलाकों में ही थे। इसके बावजूद पूरे प्रदेश में अलर्ट जारी किया गया। अभी प्रयोगशालाओं में यह देखा जा रहा है कि वैक्सीन नए वेरिएंट पर काम करते हैं या नहीं।

चेन्नई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज के प्रो. सीताभ्र सिन्हा कहते हैं कि नई लहर के लिए तैयार होना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका अनुमान लगाना बड़ा मुश्किल है। आपका मॉडल चाहे जितना आधुनिक हो। नई लहर आएगी या नहीं, यह कई बातों पर निर्भर करता है। पिछले साल पहली लहर के दौरान भी जब देश में संक्रमण की संख्या घट गई थी, तब कुछ जिलों में संक्रमण बढ़ रहा था। सिन्हा के अनुसार, “अभी भारत में संक्रमण की दर 0.78 है, जो पिछले साल महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक सबसे कम है। लेकिन यह राष्ट्रीय औसत है। इससे आपको यह पता नहीं चलेगा कि किसी खास राज्य या जिले में स्थिति कितनी खराब है।”

अनुमान लगाने के ‘सूत्र’ गणितीय मॉडल पर काम करने वाले आइआइटी कानपुर के प्रो. मणिंद्र अग्रवाल भी मानते हैं कि किसी नई लहर के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। वे कहते हैं, “इसका कारण यह है कि वायरस की विशेषता लगातार बदलती रहती है। आप सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं।”

हाल ही आइसीएमआर और इंपीरियल कॉलेज, लंदन के वैज्ञानिकों ने उन परिस्थितियों का अनुमान लगाया जिनमें तीसरी गंभीर लहर आ सकती है। उन्होंने बताया कि तीसरी लहर के लिए जरूरी है कि कोई नया वेरिएंट पहले से इम्युनिटी प्राप्त कम से कम 30 फीसदी लोगों को संक्रमित करे। यह भी जरूरी है कि नए वेरिएंट की संक्रमण दर कम से कम 4.5 हो। इन वैज्ञानिकों के शोध पत्र के अनुसार अगर तीसरी लहर आती भी है तो वह दूसरी लहर जितनी गंभीर नहीं होगी, खासकर यह देखते हुए कि दूसरी लहर ने अनेक लोगों को अपनी चपेट में लिया जिससे उनमें प्रतिरोधी क्षमता विकसित हुई। इसलिए किसी गंभीर तीसरी लहर के लिए जरूरी है कि पहले से प्रतिरोधी क्षमता वाले लोगों को नया वायरस व्यापक रूप से संक्रमित करे।

आइसीएमआर ने नए सीरो सर्वे का प्रस्ताव दिया है, जिससे पता चलेगा कि आबादी का कितना हिस्सा संक्रमित हुआ। महामारीविद् जयप्रकाश मुलियिल कहते हैं कि पुराने संक्रमण से हासिल प्रतिरोधी क्षमता को लेकर सभी संशय गलत साबित हुए। यानी संक्रमण से बनी प्रतिरोधी क्षमता लंबे समय तक बरकरार रहती है। वे कहते हैं, “संभव है कि ज्यादा संक्रामक वेरिएंट सामने आए। लेकिन यह भी सच है कि जो लोग पहले संक्रमित नहीं हुए उन्हीं के लिए खतरा ज्यादा होगा।”

अभी इंसाकॉग नेटवर्क करीब 300 जगहों से जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए नमूने लेता है। बलराम भार्गव के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में बायोटेक्नोलॉजी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप ने बताया, “हमने सभी राज्यों के सभी जिलों को शामिल किया है।” परीक्षण केंद्रों की संख्या बढ़ने और नए संक्रमण कम होने के चलते कुल संक्रमण के पांच फीसदी मामलों की सीक्वेंसिंग का लक्ष्य अब संभव लग रहा है। लेकिन जैसा डॉ. जमील कहते हैं, “स्मार्ट सीक्वेंसिंग जरूरी है। ज्यादा संक्रमण दर वाले जिलों के अधिक नमूनों की सीक्वेंसिंग की जाए तो शायद बेहतर नतीजे मिलेंगे।”

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.